CAA Protest In Meerut : सोचें, कांच का घर और हाथ में पत्थर Meerut News

क्रांतिधरा पर शुक्रवार दोपहर बाद भड़की हिंसा के तीसरे दिन रविवार को सभी प्रभावित क्षेत्रों में आम जनजीवन धीरे-धीरे सामान्य की ओर बढ़ चला।

By Prem BhattEdited By: Publish:Mon, 23 Dec 2019 02:00 PM (IST) Updated:Mon, 23 Dec 2019 02:00 PM (IST)
CAA Protest In Meerut : सोचें, कांच का घर और हाथ में पत्थर Meerut News
CAA Protest In Meerut : सोचें, कांच का घर और हाथ में पत्थर Meerut News

मेरठ, [जय प्रकाश पांडेय]। क्रांतिधरा पर शुक्रवार दोपहर बाद भड़की हिंसा के तीसरे दिन रविवार को सभी प्रभावित क्षेत्रों में आम जनजीवन धीरे-धीरे सामान्य की ओर बढ़ चला। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में भड़की हिंसा के चलते मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, आदि जनपदों में जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। आर्थिक क्षति का अभी आकलन किया जा रहा है।

ऐसा था हाल 

मौतें : पांच

घायल : 12

वाहन राख : 12

नुकसान : आकलन जारी

नामजद दर्ज : 180

अज्ञात दर्ज : 5000

गिरफ्तार : 52

पुन: पढ़कर जरा सोचें

ऊपर दिए आंकड़ों को एक बार पुन: पढ़कर जरा सोचें, इतना भारी नुकसान ङोलने के बाद कुल जमा हासिल क्या हुआ। ..और, यह आंकड़े केवल मेरठ के हैं। आसपास के जनपदों में हुई जान-माल की क्षति भी यदि इसमें जोड़ दी जाए तो तस्वीर और भयावह दिखने लगेगी। उपद्रव पूर्व नियोजित था, इसकी परतें अब खुलने लगी हैं। एडीजी प्रशांत कुमार और मेरठ के एसएसपी अजय साहनी पहले से यह कह रहे हैं कि उपद्रव करवाने के लिए दिल्ली समेत दूसरे शहरों से बवालियों को बुलाया गया था। बवाल के ये मास्टर माइंड क्यों और कैसे हमारे शहर तक, हमारे घरों तक पहुंच गए ..आखिर इसपर मंथन हम कब करेंगे। शनिवार रात हापुड़ रोड पर खड़े एक बुजुर्गवार ने शहर का दर्द कुछ यूं सामने रखा ..हमारे घर शीशे के हैं और हमें पत्थर भी थमाया जाता है, कोढ़ में खाज यह कि पत्थर थमाने वाले को यह पता है कि सारे घर शीशे के हैं और पत्थर फेंकने वाला है अनाड़ी। चार पत्थर सामने तो एक पत्थर कभी न कभी यह अपने ही घर की ओर फेंकेगा जरूर, हो यही रहा है।

आखिर कब तक भड़काते रहेंगे

देखिए, गोली-पत्थर चलाने वाले चेहरे पहचाने जाने लगे हैं। बेशक, पुलिस और प्रशासन अपना काम कर रहा है, आगे भी कार्रवाइयां होंगी ही लेकिन, एक जिम्मेदार शहरी होने के नाते हमें सोचना होगा कि आखिर मुट्ठी भर लोगों के भड़काने पर हम कब तक उत्तेजित होते रहेंगे। शहर में होने वाली तमाम बैठकों, गोष्ठियों और सेमिनारों का अब यह विषय होना चाहिए कि आखिर हम कब तक दूसरों के भड़काने पर भड़कते रहेंगे, आखिर कब तक हम अमन और तरक्की की राह छोड़कर हाथ में पत्थर उठाए रहेंगे, आखिर कब तक मुट्ठी भर लोगों के पीछे-पीछे भेड़ की तरह चलते रहेंगे। उपद्रवियों को चिन्हिृत कर उन्हें उनके हाल-मुकाम तक पहुंचाने में हम सभी कैसे सक्रिय भूमिका अदा करें, वस्तुत: बैठकों, गोष्ठियों और सेमिनारों का अब यह विषय होना चाहिए।

कितनों ने इसे समझा है

यह भी जरूर सोचें, विरोध का पत्थर-बंदूक हाथ में उठाए कितने लोगों को नागरिकता संशोधन कानून की हकीकत पता है, कितनों ने इसे पढ़ा है, कितनों ने इसे समझा है। जाहिर है कि अभी यह संख्या बहुत छोटी है। हमें सबसे पहले यह समझना ही होगा कि नागरिकता संशोधन कानून ..नागरिकता देने के लिए है, लेने के लिए नहीं। अब यह सोचना जरूर चाहिए कि इस उत्पात का हासिल क्या रहा। 

chat bot
आपका साथी