नमोदेव्यै : जिद से जीत लिया जहां, लक्ष्‍य के लिए परिवार और समाज से लड़ते हुए पीसीएस अधिकारी बनीं मेरठ की संजू

Namodevyai मेरठ की संजू ने वर्ष 2008 में पहली बार आइएएस की प्रारंभिक परीक्षा पहले ही प्रयास में पास कर ली थी। परिवार का साथ मिलता तो वह शायद 2012 में आइएएस बन गई होतीं। लेकिन अपना लक्ष्‍य पाने के लिए संजू कठिन परिश्रम भी करना पड़ा।

By Prem Dutt BhattEdited By: Publish:Fri, 08 Oct 2021 08:50 AM (IST) Updated:Fri, 08 Oct 2021 08:50 AM (IST)
नमोदेव्यै : जिद से जीत लिया जहां, लक्ष्‍य के लिए परिवार और समाज से लड़ते हुए पीसीएस अधिकारी बनीं मेरठ की संजू
लक्ष्य को हासिल करने के लिए कठिन तप बेहद आवश्‍यक है।

विवेक राव, मेरठ। Namodevyai मां दुर्गा के नौ स्वरूप हैं। उनमें से एक है देवी ब्रह्मचारिणी का। देवी का यह स्वरूप ऐसी पुत्रियों का है, जो अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कठिनतम तप करती हैं। तमाम बाधाओं को दूर करते हुए वह उस लक्ष्य को पूरा भी करती हैं। संजू रानी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, रुढ़ीवादी परिवार की बेटियों को पढऩे और करियर बनाने की इजाजत नहीं थी। संजू ने पीसीएस अधिकारी बनकर उस सोच को बदला कि बेटियां चाहे तो कुछ भी कर सकती हैं।

यह है प्रोफाइल

संजू मेरठ के शास्त्रीनगर में अपने परिवार के साथ रहती थीं। उनकी तीन बहनें, तीन भाई हैं। पांचवें नंबर पर संजू हैं। उनके पिता रमेश किसान थे, फिर व्यापारी बने। उनकी सोच बेटियों को कुछ पढ़ा लिखाकर शादी करके अपने घर बसाने तक सीमित रही। वह नहीं चाहते थे कि संजू 12वीं से आगे पढ़ें। संजू पर पढ़ाई छोडऩे का दबाव डाला गया। भाई भी नहीं चाहते थे कि संजू पढ़े। थोड़ा सहारा मां भगवती देवी ने दिया। फिर संजू ने आरजी डिग्री कालेज से बीए करने के साथ सोच लिया कि उन्हें आइएएस बनना है। संजू परिवार में पहली स्नातक बनीं।

मां का साथ छूटने के बाद घर छोड़ा

संजू की मां वर्ष 2013 में चल बसीं। फिर पिता और भाइयों का दबाव शादी के लिए बहुत बढ़ गया। पिता का कहना था कि लड़कियों को नौकरी जरूरी नहीं है। पढ़ाई के लिए पैसा कहां से आएगा। संजू ने अपना खर्च खुद निकालने की बात कही, फिर भी उनकी सगाई कर दी गई। तनाव और दबाव जब हद से अधिक बढ़ा तो संजू ने घर छोड़ दिया। किराये पर कमरा लेकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च निकाला। साथ ही सिविल सेवा की तैयारी की।

पहले प्रयास में प्री सफल

संजू ने वर्ष 2008 में पहली बार आइएएस की प्रारंभिक परीक्षा पहले ही प्रयास में पास कर ली थी। परिवार का साथ मिलता तो वह शायद 2012 में आइएएस बन गई होतीं। पिता के एक्सीडेंट के बाद कोमा में जाने के बाद संजू पर पढ़ाई छोडऩे और कोई नौकरी करने का दबाव बढ़ गया, लेकिन बावजूद इसके संजू ने अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा। वर्ष 2018 में वह पीसीएस की परीक्षा में सफल रहीं। आज वाणिज्य कर अधिकारी की ट्रेङ्क्षनग कर रहीं है। उनका सपना अभी सिविल सेवा में जाने का है। संजू का कहना है कि बेटियां भी परिवार का नाम रोशन कर सकती हैं, बस उन्हें एक अवसर चाहिए। जिस पिता ने बेटी को करियर बनाने के लिए मना किया था, उन्हें बेटी की सफलता पर गर्व है।

दिव्यांग बहन का बनीं सहारा

संजू ने पढ़ाई के साथ अपनी एक छोटी बहन को भी सहारा दिया। जो जन्म से बोल नहीं पाती। भाइयों ने साथ छोड़ा, लेकिन संजू ने उसका साथ निभाया। साथ ही अपने सपने को भी पूरा किया।

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