मेरठ नहीं आजाद हिन्द फौज की सब डिविजन कहिए
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के कमांडरों का मेरठ से कुछ खास ही जुड़ाव रहा है। आइए, नेताजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में आपका परिचय कराते हैं।
मेरठ, [संदीप शर्मा]। स्वतंत्रता आंदोलन की प्रथम चिंगारी 1857 में मेरठ से ही भड़की थी। जंगे आजादी के लिए लड़ने वाली हर विचारधारा से जुड़े नेता, सशस्त्र क्रांतिकारी, नरम-गरम दलों के नेता प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से मेरठ से जुड़े रहे थे लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के कमांडरों का मेरठ से कुछ खास ही जुड़ाव रहा है। आइए, नेताजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में आपका परिचय कराते हैं आजाद हिन्द फौज के नायकों से, उनके क्रियाकलापों से और मेरठ के साथ उनके जुड़ाव से।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
आजाद हिन्द फौज के कमांडर-इन-चीफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने जिन सैनिकों में जोश भरने को कहानियां सुनाते थे, उनमें मंगलपांडे भी एक थे। नेताजी ने अपने भाषणों में कई बार मेरठ का जिक्र करते हुए इसे क्रांतिधरा बताया था। सुभाष चंद्र बोस 1929 में घंटाघर आए थे, जहां उन्होंने शहरवासियों को संबोधित किया था। देश आजाद हुआ तो घंटाघर का नाम नेताजी के नाम पर रख दिया गया। नेताजी ने कहा था कि मेरठ की मिट्टी वीरों को पैदा करती है। अगर बाहर का आदमी यहां का पानी पी ले तो उसका साहस सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर आधारित फोटो प्रदर्शनी लगाने, उनके साहित्य को निश्शुल्क बांटने वाली संस्था नेताजी सुभाष चंद्र बोस जन्म महोत्सव समिति सालभर सक्रिय रहती है। इसके सदस्य स्कूल, कॉलेज और सार्वजनिक स्थानों पर नेताजी का जीवन परिचय सुनाते हैं। उनके प्रसिद्ध वक्तव्यों के बैनर सार्वजनिक स्थानों पर लगाते हैं। स्कूल के बच्चों और नाट्य संस्थाओं से नेताजी के जीवन पर नाटकों का मंचन कराते हैं।
जनरल शाहनवाज खान
नेताजी के बाद आजाद हिन्द फौज में दूसरा नाम मेजर जनरल शाहनवाज खान का आता है। आजादी से पहले करांची जिले के मटौर गांव में जन्मे जनरल खान ने बंटवारे के बाद कहा था कि-मैं हिन्दुस्तानी हूं, पैदा यहीं हुआ औैर दफन भी यहीं होना है। ब्रिटिश सेना में बड़ा अफसर होने के बाद भी जब नेताजी ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया तो शाहनवाज को मेजर जनरल जैसा बड़ा ओहदा सौंपा था। दुनिया के मशहूर मुकदमों में से एक था 'रेड फोर्ट ट्रायल'। जनरल शाहनवाज खान, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों और कर्नल प्रेम सहगल को लालकिले में नजरबंद कर मुकदमा चलाया गया था। मुकदमे की सुनवाई के दौरान जनता लालकिले के बाहर खड़ी होकर नारा लगाती थी कि 'लालकिले से आई आवाज, ढिल्लन-सहगल-शाहनवाज'। दूसरा नारा था-'लाल किले को तोड़ दो, ढिल्लन-सहगल-शाहनवाज को छोड़ दो'। मुकदमे में तीनों को बाइज्जत बरी किया गया था और तीनों ही देश में नायक बनकर उभरे थे। आजादी मिली तो पंडित नेहरू के कहने पर जनरल शाहनवाज ने मेरठ से लगातार चार बार चुनाव लड़ा और जीते। इस दौरान वह उद्योग, रेलवे और कृषि सरीखे मंत्रालयों के मंत्री भी रहे। अंतिम सांस तक मेरठ से जुड़े रहे। जनरल शाहनवाज ने आजादी के बाद हुए लगातार चार चुनावों में मेरठ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। जनरल शाहनवाज खान के पोते आदिल शाहनवाज कहते हैं कि एक बार इंदिरा गांधी ने जनरल खान का नाम राष्ट्रपति पद के लिए भी चलाया था। बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान के पिता मीर ताज मोहम्मद और मां लतीफ फातिमा का निकाह भी जनरल शाहनवाज खान ने कराया था। शाहनवाज खान अभिनेता शाहरुख की मां लतीफ फातिमा को अपनी मुंहबोली बेटी मानते थे। कई इंटरव्यू में शाहरुख खान अपने पिता के साथ जनरल शाहनवाज खान के रिश्तों के बारे में तफ्सील से बता चुके हैं।
कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों
आजाद हिन्द फौज में कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों की गिनती बेहद खतरनाक कमांडरों में होती थी। कर्नल साहब आजाद हिन्द फौज की नेहरू ब्रिगेड का नेतृत्व करते थे। 1981 में कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों मेरठ आए थे, जहां उनकी मुलाकात मेरठ कॉलेज प्रबंध समिति के पूर्व अध्यक्ष जेके अग्रवाल से हुई थी। इसके बाद कर्नल ढिल्लों मेरठ के जेके अग्रवाल को अपना मुहंबोला बेटा मानने लगे। कर्नल साहब ईस्टर्न कचहरी रोड स्थित जेके अग्रवाल के घर महीनों ठहरते थे। जेके अग्रवाल कर्नल ढिल्लों को कई-कई महीने नहीं जाने देते थे। कर्नल ढिल्लों ने अपनी आत्मकथा 'फ्रॉम माई बोंस' मेरठ में ही रहकर लिखी थी। 'फ्रॉम माई बोंस' आजाद हिन्द फौज और मेरठ में बिताए उनके दिनों का जीवंत दस्तावेज है। इसमें उन्होंने लिखा है कि-जिंदादिली मेरठ की रूह में बसती है। यह दिलेरों की धरती है तो दरियादिलों की भी। जेके अग्रवाल बताते हैं कि कर्नल ढिल्लों जब आजाद हिन्द फौज और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में बताना शुरू करते थे तो रात कब बीत जाती थी, पता ही नहीं चलता था। कर्नल ढिल्लों की बातें सुनकर आखें भर आती थीं। आजाद हिन्द फौज ने किन परिस्थितियों में लड़ाई लड़ी और कम संसाधनों के बावजूद ब्रिटिश सेना की नाक में दम कर दिया था, यह शोध का विषय हो सकता है। रेड फोर्ट ट्रायल का पूरा किस्सा भी उन्होंने आत्मकथा में लिखा है।
देश की पहली महिला जासूस नीरा आर्य
नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज और देश की पहली महिला जासूस थीं। उनके पिता सेठ छज्जूमल खेकड़ा (तत्कालीन मेरठ जिला) के बड़े व्यापारी औैर आर्य समाज के अनुयायी थे। आजादी से काफी पहले छज्जूमल कोलकाता जाकर बस गए थे। इसके बाद श्रीकांत जयरंजन दास से नीरा की शादी हो गई, जो ब्रिटिश सेना में खुफिया अधिकारी था। नीरा के मन में जंगे आजादी में शामिल होने की इच्छा हुई तो वह आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गईं। नीरा की चतुराई और सक्रियता को देखते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें इंटेलीजेंस विंग में शामिल कर लिया। उधर, ब्रिटिश सेना ने नेताजी की हत्या का जिम्मा जयरंजन को सौंप दिया था। इसकी भनक नीरा को लगी तो उन्होंने अपने पति जयरंजन दास को मार दिया था। नीरा आर्य ने कार्यकुशलता और बहादुरी की ऐसी मिसाल कायम की, जिसे दुनिया देखती रह गई थी। नीरा आर्य ने नेताजी की जान बचाने के लिए अपने पति को कुर्बान कर दिया था। इसके बाद वह देश की महिलाओं में नायिका बनकर उभरी थीं। नीरा आर्य ने जासूसी के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद ही भारतीय दुनिया के दूसरे देशों ने अपनी खुफिया एंजेसियों में महिलाओं को शामिल करना शुरू कर दिया था। नीरा के जीवन पर मशहूर बॉलीवुड डायरेक्टर संजय लीला भंसाली फिल्म भी बना रहे हैं।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
आजाद हिन्द फौज के कमांडर-इन-चीफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने जिन सैनिकों में जोश भरने को कहानियां सुनाते थे, उनमें मंगलपांडे भी एक थे। नेताजी ने अपने भाषणों में कई बार मेरठ का जिक्र करते हुए इसे क्रांतिधरा बताया था। सुभाष चंद्र बोस 1929 में घंटाघर आए थे, जहां उन्होंने शहरवासियों को संबोधित किया था। देश आजाद हुआ तो घंटाघर का नाम नेताजी के नाम पर रख दिया गया। नेताजी ने कहा था कि मेरठ की मिट्टी वीरों को पैदा करती है। अगर बाहर का आदमी यहां का पानी पी ले तो उसका साहस सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर आधारित फोटो प्रदर्शनी लगाने, उनके साहित्य को निश्शुल्क बांटने वाली संस्था नेताजी सुभाष चंद्र बोस जन्म महोत्सव समिति सालभर सक्रिय रहती है। इसके सदस्य स्कूल, कॉलेज और सार्वजनिक स्थानों पर नेताजी का जीवन परिचय सुनाते हैं। उनके प्रसिद्ध वक्तव्यों के बैनर सार्वजनिक स्थानों पर लगाते हैं। स्कूल के बच्चों और नाट्य संस्थाओं से नेताजी के जीवन पर नाटकों का मंचन कराते हैं।
जनरल शाहनवाज खान
नेताजी के बाद आजाद हिन्द फौज में दूसरा नाम मेजर जनरल शाहनवाज खान का आता है। आजादी से पहले करांची जिले के मटौर गांव में जन्मे जनरल खान ने बंटवारे के बाद कहा था कि-मैं हिन्दुस्तानी हूं, पैदा यहीं हुआ औैर दफन भी यहीं होना है। ब्रिटिश सेना में बड़ा अफसर होने के बाद भी जब नेताजी ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया तो शाहनवाज को मेजर जनरल जैसा बड़ा ओहदा सौंपा था। दुनिया के मशहूर मुकदमों में से एक था 'रेड फोर्ट ट्रायल'। जनरल शाहनवाज खान, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों और कर्नल प्रेम सहगल को लालकिले में नजरबंद कर मुकदमा चलाया गया था। मुकदमे की सुनवाई के दौरान जनता लालकिले के बाहर खड़ी होकर नारा लगाती थी कि 'लालकिले से आई आवाज, ढिल्लन-सहगल-शाहनवाज'। दूसरा नारा था-'लाल किले को तोड़ दो, ढिल्लन-सहगल-शाहनवाज को छोड़ दो'। मुकदमे में तीनों को बाइज्जत बरी किया गया था और तीनों ही देश में नायक बनकर उभरे थे। आजादी मिली तो पंडित नेहरू के कहने पर जनरल शाहनवाज ने मेरठ से लगातार चार बार चुनाव लड़ा और जीते। इस दौरान वह उद्योग, रेलवे और कृषि सरीखे मंत्रालयों के मंत्री भी रहे। अंतिम सांस तक मेरठ से जुड़े रहे। जनरल शाहनवाज ने आजादी के बाद हुए लगातार चार चुनावों में मेरठ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। जनरल शाहनवाज खान के पोते आदिल शाहनवाज कहते हैं कि एक बार इंदिरा गांधी ने जनरल खान का नाम राष्ट्रपति पद के लिए भी चलाया था। बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान के पिता मीर ताज मोहम्मद और मां लतीफ फातिमा का निकाह भी जनरल शाहनवाज खान ने कराया था। शाहनवाज खान अभिनेता शाहरुख की मां लतीफ फातिमा को अपनी मुंहबोली बेटी मानते थे। कई इंटरव्यू में शाहरुख खान अपने पिता के साथ जनरल शाहनवाज खान के रिश्तों के बारे में तफ्सील से बता चुके हैं।
कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों
आजाद हिन्द फौज में कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों की गिनती बेहद खतरनाक कमांडरों में होती थी। कर्नल साहब आजाद हिन्द फौज की नेहरू ब्रिगेड का नेतृत्व करते थे। 1981 में कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों मेरठ आए थे, जहां उनकी मुलाकात मेरठ कॉलेज प्रबंध समिति के पूर्व अध्यक्ष जेके अग्रवाल से हुई थी। इसके बाद कर्नल ढिल्लों मेरठ के जेके अग्रवाल को अपना मुहंबोला बेटा मानने लगे। कर्नल साहब ईस्टर्न कचहरी रोड स्थित जेके अग्रवाल के घर महीनों ठहरते थे। जेके अग्रवाल कर्नल ढिल्लों को कई-कई महीने नहीं जाने देते थे। कर्नल ढिल्लों ने अपनी आत्मकथा 'फ्रॉम माई बोंस' मेरठ में ही रहकर लिखी थी। 'फ्रॉम माई बोंस' आजाद हिन्द फौज और मेरठ में बिताए उनके दिनों का जीवंत दस्तावेज है। इसमें उन्होंने लिखा है कि-जिंदादिली मेरठ की रूह में बसती है। यह दिलेरों की धरती है तो दरियादिलों की भी। जेके अग्रवाल बताते हैं कि कर्नल ढिल्लों जब आजाद हिन्द फौज और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में बताना शुरू करते थे तो रात कब बीत जाती थी, पता ही नहीं चलता था। कर्नल ढिल्लों की बातें सुनकर आखें भर आती थीं। आजाद हिन्द फौज ने किन परिस्थितियों में लड़ाई लड़ी और कम संसाधनों के बावजूद ब्रिटिश सेना की नाक में दम कर दिया था, यह शोध का विषय हो सकता है। रेड फोर्ट ट्रायल का पूरा किस्सा भी उन्होंने आत्मकथा में लिखा है।
देश की पहली महिला जासूस नीरा आर्य
नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज और देश की पहली महिला जासूस थीं। उनके पिता सेठ छज्जूमल खेकड़ा (तत्कालीन मेरठ जिला) के बड़े व्यापारी औैर आर्य समाज के अनुयायी थे। आजादी से काफी पहले छज्जूमल कोलकाता जाकर बस गए थे। इसके बाद श्रीकांत जयरंजन दास से नीरा की शादी हो गई, जो ब्रिटिश सेना में खुफिया अधिकारी था। नीरा के मन में जंगे आजादी में शामिल होने की इच्छा हुई तो वह आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गईं। नीरा की चतुराई और सक्रियता को देखते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें इंटेलीजेंस विंग में शामिल कर लिया। उधर, ब्रिटिश सेना ने नेताजी की हत्या का जिम्मा जयरंजन को सौंप दिया था। इसकी भनक नीरा को लगी तो उन्होंने अपने पति जयरंजन दास को मार दिया था। नीरा आर्य ने कार्यकुशलता और बहादुरी की ऐसी मिसाल कायम की, जिसे दुनिया देखती रह गई थी। नीरा आर्य ने नेताजी की जान बचाने के लिए अपने पति को कुर्बान कर दिया था। इसके बाद वह देश की महिलाओं में नायिका बनकर उभरी थीं। नीरा आर्य ने जासूसी के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद ही भारतीय दुनिया के दूसरे देशों ने अपनी खुफिया एंजेसियों में महिलाओं को शामिल करना शुरू कर दिया था। नीरा के जीवन पर मशहूर बॉलीवुड डायरेक्टर संजय लीला भंसाली फिल्म भी बना रहे हैं।