मेरठ नगर निगम में निकला मकान किराया घोटाले का जिन्न

नगर निगम के मकानों में काबिज हैं अवैध किरायेदार। एक दशक से जमा नहीं हुआ किराया, आवंटन भी रद नहीं हुआ।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 24 Jun 2018 01:42 PM (IST) Updated:Sun, 24 Jun 2018 01:42 PM (IST)
मेरठ नगर निगम में निकला मकान किराया घोटाले का जिन्न
मेरठ नगर निगम में निकला मकान किराया घोटाले का जिन्न

मेरठ। नगर निगम का एक नया घोटाला सामने आया है। नगर निगम को उसके अधिकारी-कर्मचारी ही हर साल लाखों का घाटा पहुंचा रहे हैं। नगर निगम के मकानों में एक दशक से अवैध किरायेदार काबिज हैं, जो बिना किराया दिए ही वहां रह रहे हैं। वहीं विभाग की लापरवाही देखिए कि आज तक किसी मकान का आवंटन भी रद नहीं किया गया है।

नगर निगम में वर्षों पहले एक एक्सईएन थे, जोकि कई साल पहले यहां से स्थानांतरित हो गए थे। वहां से उनकी सेवानिवृत्ति भी हो चुकी है, लेकिन उनका मकान अभी भी है और उस मकान पर उनके रिश्तेदार और परिचित रहते हैं। ये रिश्तेदार और परिचित भी किराया नहीं चुकाते। इसी तरह से एक कर्मचारी 2010 में सेवानिवृत्त हो गया था। अब भी वह उसी मकान में रह रहा है और उसका किराया भी नहीं देता। ये तो महज चंद उदाहरण हैं। तमाम मकानों में इसी तरह से अवैध किरायेदार रह रहे हैं और नगर निगम को हर साल लाखों की आय से वंचित रह जाना पड़ता है।

किरायेदारों ने भी रख लिए किरायेदार

नगर निगम में कई ऐसे कर्मचारी हैं जिन्होंने निगम का मकान किराये पर लिया और उसमें किरायेदार रख दिया। कुछ दिन बाद उस किरायेदार ने अपने स्तर से किरायेदार रख लिया। ऐसे कई मकान हैं और इसी तरह से भ्रष्ट तंत्र वहां फल-फूल रहा है।

दो मकानों में अकेले रहता है एक कर्मचारी

नगर निगम का एक कर्मचारी ऐसा भी है जिसने दो मकानों पर कब्जा कर रखा है। ये दोनों मकान तीन बेड रूम वाले हैं। वह अकेले रहकर इतने कमरों का क्या प्रयोग करता है इसकी जानकारी किसी को नहीं है। यह जांच का विषय है।

क्यों कोई नहीं बोलता अवैध कब्जेदारी पर

नगर निगम के मकानों पर अवैध किरायेदार काबिज हैं और किराया भी नहीं देते। इन बातों को निगम के अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी जानते हैं, लेकिन ये लोग भी किसी न किसी रूप में इसमें शामिल हैं। या तो उन्होंने भी स्वयं अवैध कब्जा कर रखा है या फिर उनके रिश्तेदार या परिचित काबिज हैं। ऐसे में कोई भी मुंह नहीं खोलता।

ये है किराये की प्रतिमाह दर

अधिकारी - छह हजार रुपये

लिपिक व अन्य कर्मचारी - चार हजार रुपये

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी - 2100 रुपये

छह माह तक रह सकता है सेवानिवृत्त

यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी निगम के मकान में किराये पर रहता है और वह सेवानिवृत्त हो जाता है, तो उस स्थिति में तत्काल उससे मकान खाली नहीं कराया जाता। नियम है कि सक्षम अधिकारी की संस्तुति पर वह कर्मचारी सेवानिवृत्ति के छह माह बाद तक भी उसमें किराये पर रह सकता है। इस सहूलियत वाले नियम की आड़ में तमाम सेवानिवृत्त कर्मचारियों-अधिकारियों के मकान में वह खुद या फिर उनके रिश्तेदार काबिज हैं।

अपर नगर आयुक्त की जांच से खुली पोल

इस तरह की शिकायत अपर नगर आयुक्त अली हसन कर्नी को मिली थी। जिस पर उन्होंने शनिवार को जांच की। कई मकानों में वह सुबह स्वयं गए और किरायेदारों से बात की। इसमें अवैध किरायेदारी की पोल खुलती चली गई। अपर नगर आयुक्त, नगर निगम अली हसन कर्नी ने बताया कि नगर निगम के कई मकानों पर अवैध किरायेदार काबिज हैं। वर्षो से किराया भी नहीं जमा किया है। मैंने कई मकानों की मौके पर जाकर जांच की है। इस पूरे प्रकरण की पड़ताल करके इस फर्जीवाड़े को समाप्त किया जाएगा।

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