क्रांतिधरा के सपूत : 1947 में दौराला के कर्नल महावीर सिंह ने दी थी पहली शहादत Meerut News
मेरठ के कस्बा दौराला पर हमेशा नाज रहेगा। आजाद भारत में जम्मू-कश्मीर में हुई पहली लड़ाई में वर्ष 1947 में कर्नल महावीर सिंह पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे।
मेरठ, [अमित तिवारी]। यह क्रांतिधरा की माटी है। इसमें जन्म लेने वाले वीरों पर जन्मभूमि को भी नाज है। मेरठ का ऐसा ही कस्बा है दौराला। आजाद भारत में जम्मू-कश्मीर में हुई पहली लड़ाई में वर्ष 1947 में कर्नल महावीर सिंह पुत्र चौ. रघुवीर सिंह पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। वह राजपूताना रायफल्स में सेना में भर्ती हुए और शहादत के समय जाट रेजीमेंट में थे। वीरता और पराक्रम के लिए मेरठ का पहला वीरता पदक ‘वीर चक्र’ शहीद कर्नल महावीर सिंह को ही मिला था।
‘सैंड हर्स्ट’एकेडमी से निकले थे ब्रि. बलजीत सिंह
आजाद भारत में पश्चिम यूपी सब-एरिया के पहले भारतीय कमांडर ब्रिगेडियर बलजीत सिंह पुत्र भान सिंह दौराला के ही रहने वाले थे। वह अंग्रेजी हुकूमत की अफसर एकेडमी ‘सैंड हर्स्ट’(वर्तमान में इंडियन मिलिट्री एकेडमी) से वर्ष 1930 में फील्ड मार्शल जनरल केएम करियप्पा के बैच से अफसर बनकर निकले थे। उनके बेटे स्व. कैप्टन बिक्रम सिंह नौसेना में कैप्टन बने। द्वितीय विश्वयुद्ध में उनके पैर में लगी गोली, जो अंतिम समय तक पैर में ही रही। इनके बाद ब्रिगेडियर बलजीत सिंह के पोते कैप्टन रजनीश अहलावत आर्मर्ड रेजीमेंट की आठवीं लाइट कैवेलरी में शामिल हुए।
..और बढ़ता गया कुनबा
दौराला का नामकरण देवपाल सिंह अहलावत के नाम पर हुआ। वह हरियाणा के झज्जर जिले में बेरी तहसील के दीघल गांव से आए थे। उन्होंने ही यह गांव बसाया था। पहले इसका नाम देवराला था, जो समय के साथ बदलकर दौराला हो गया। अफसरों के साथ इस गांव में तकरीबन हर घर से कोई न कोई सेना में सेवाएं दे चुका है।
अफसर बनने की भी रही होड़
एक के बाद एक यहां के युवा भी गांव की परंपरा को आगे बढ़ाते गए। ब्रिगेडियर बलजीत सिंह के बड़े भाई कैप्टन मंगल सिंह लंबे समय तक जिला सैनिक बोर्ड के सचिव रहे। उनके तीन बेटों में दो कर्नल ओंकार सिंह और मेजर कृपाल सिंह सेना में रहे। कर्नल कृपाल सिंह 1965 में शहीद हुए थे। कैप्टन मंगल सिंह के दो पोते ब्रिगेडियर विश्वेंद्र सिंह और कर्नल राहुल सिंह सेना में कार्यरत हैं। इसी गांव से मेजर राजपाल सिंह पुत्र चौ. जीवन सिंह जुलाई 1953 में सेना में शामिल हुए और जून 1990 तक सेवाएं दीं। वर्तमान में मेजर राजपाल सिंह पूर्व सैनिक संगठन मेरठ के अध्यक्ष हैं। उनके बेटे नवीन अहलावत दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर हैं जबकि पोता मृदुल अहलावत एनडीए में ट्रेनिंग ले रहे हैं। इसी गांव के विंग कमांडर अशोक अहलावत पुत्र चंद्रपाल सिंह भी वायु सेना में अफसर हैं।
‘सैंड हर्स्ट’एकेडमी से निकले थे ब्रि. बलजीत सिंह
आजाद भारत में पश्चिम यूपी सब-एरिया के पहले भारतीय कमांडर ब्रिगेडियर बलजीत सिंह पुत्र भान सिंह दौराला के ही रहने वाले थे। वह अंग्रेजी हुकूमत की अफसर एकेडमी ‘सैंड हर्स्ट’(वर्तमान में इंडियन मिलिट्री एकेडमी) से वर्ष 1930 में फील्ड मार्शल जनरल केएम करियप्पा के बैच से अफसर बनकर निकले थे। उनके बेटे स्व. कैप्टन बिक्रम सिंह नौसेना में कैप्टन बने। द्वितीय विश्वयुद्ध में उनके पैर में लगी गोली, जो अंतिम समय तक पैर में ही रही। इनके बाद ब्रिगेडियर बलजीत सिंह के पोते कैप्टन रजनीश अहलावत आर्मर्ड रेजीमेंट की आठवीं लाइट कैवेलरी में शामिल हुए।
..और बढ़ता गया कुनबा
दौराला का नामकरण देवपाल सिंह अहलावत के नाम पर हुआ। वह हरियाणा के झज्जर जिले में बेरी तहसील के दीघल गांव से आए थे। उन्होंने ही यह गांव बसाया था। पहले इसका नाम देवराला था, जो समय के साथ बदलकर दौराला हो गया। अफसरों के साथ इस गांव में तकरीबन हर घर से कोई न कोई सेना में सेवाएं दे चुका है।
अफसर बनने की भी रही होड़
एक के बाद एक यहां के युवा भी गांव की परंपरा को आगे बढ़ाते गए। ब्रिगेडियर बलजीत सिंह के बड़े भाई कैप्टन मंगल सिंह लंबे समय तक जिला सैनिक बोर्ड के सचिव रहे। उनके तीन बेटों में दो कर्नल ओंकार सिंह और मेजर कृपाल सिंह सेना में रहे। कर्नल कृपाल सिंह 1965 में शहीद हुए थे। कैप्टन मंगल सिंह के दो पोते ब्रिगेडियर विश्वेंद्र सिंह और कर्नल राहुल सिंह सेना में कार्यरत हैं। इसी गांव से मेजर राजपाल सिंह पुत्र चौ. जीवन सिंह जुलाई 1953 में सेना में शामिल हुए और जून 1990 तक सेवाएं दीं। वर्तमान में मेजर राजपाल सिंह पूर्व सैनिक संगठन मेरठ के अध्यक्ष हैं। उनके बेटे नवीन अहलावत दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर हैं जबकि पोता मृदुल अहलावत एनडीए में ट्रेनिंग ले रहे हैं। इसी गांव के विंग कमांडर अशोक अहलावत पुत्र चंद्रपाल सिंह भी वायु सेना में अफसर हैं।
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