बसंत पंचमी के उल्लास के बीच 40 दिन पहले से ही जमेगा होली का रंग, यह होगी वजह
बसंत पंचमी न सिर्फ सर्दी जाने और गर्मियों के आगमन की सूचक होती है बल्कि इससे इतर अपना विशेष महत्व है। इस बार बसंत पंचमी के बीच ही होली पर्व का जश्न शुरू हो जाएगा। जानिए क्या है वह वजह।
मेरठ, जेएनएन। बसंत पंचमी न सिर्फ सर्दी जाने और गर्मियों के आगमन की सूचक होती है बल्कि इससे इतर अपना विशेष महत्व है। सभी छह ऋतुओं बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर में बसंत को ऋतुराज कहा जाता है। जो यह दर्शाता है कि सभी ऋतुओं में इसके क्या मायने हैं। जिसमें मौसम परिवर्तन के साथ-साथ ही प्रकृति का अनेखा श्रृंगार देखने को मिलता है।
पेड़ों पर नई कोपलें, पेड़-पौंधों पर फूलों का खिलना और मनमोहक बासंतिक हवाओं का बहना आदि इसे सुहावना बनाता है। जिसमें मानव से लेकर पशु-पक्षी पर आनंदित होते हैं। इसके अलावा यह दिन शुभ कार्यों के लिए खास दिन होता है। इसी कड़ी में ज्योतिषविद् कौशल वत्स ने बताया कि बसंत के दिन से ही होली पर्व का आरंभ हो जाता है। इसी के तहत शहर में होली का ठुड्डा गाडऩा का चलन शुरू हो जाता है। यह गतिविधि होली के दहन से ठीक चालीस दिन पहले यानि कि बसंत पंचमी पर्व से ही होली बनाने की प्रक्रिया का क्रम शुरू हो जाता है। इस दिन गूलर वृक्ष की टहनी को गांव या मोहल्ले में या जिस भी जगह होलिका दहन होना होता है उस स्थान पर गाड़ दिया जाता है। इसे ही क्षेत्रीय बोलचाल में होली का ठुड्डा गाडऩा कहते हैं।
होली पर्व को लेकर पूजन का विशेष महत्व होता है। इसीलिए ठुड्डा गाडऩे से पहले बुजुर्ग व आयोजन से जुड़े लोग शुभ मुहूर्त को ज्योतिष आदि से पूछकर पूजन अर्चन करके इस दिन से होली का ठुड्डा गाड़ देते हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि बसंत पंचमी को विवाह, मुंडन आदि का अबूझ मुहूर्त माना जाता है। बसंत पंचमी की पूजा में अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11.30 से साढ़े बारह तक रहेगा जो सभी के लिए शुभ है।