आओ हस्तिनापुर चलें : बाराखंबा... जहां खेली थी कौरव-पांडवों ने चौसर Meerut News

कौरव-पांडव समेत अनेक योद्धाओं से भरी सभा में जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था उस समय उनकी प्रत्येक सिसकी का साक्षी प्राचीन वट वृक्ष आज भी हस्तिनापुर की धरा पर विद्यमान है।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Wed, 04 Mar 2020 03:47 PM (IST) Updated:Wed, 04 Mar 2020 03:47 PM (IST)
आओ हस्तिनापुर चलें : बाराखंबा... जहां खेली थी कौरव-पांडवों ने चौसर Meerut News
आओ हस्तिनापुर चलें : बाराखंबा... जहां खेली थी कौरव-पांडवों ने चौसर Meerut News

मेरठ, [सचिन गोयल]। कौरव-पांडव समेत अनेक योद्धाओं से भरी सभा में जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, उस समय उनकी प्रत्येक सिसकी का साक्षी प्राचीन वट वृक्ष आज भी हस्तिनापुर की धरा पर विद्यमान है। बताते हैं कि इसी वृक्ष से भगवान कृष्ण ने द्रौपदी का चीर बढ़ाकर नारी की अस्मिता को बचाया था। इन स्थानों के बारे में कम ही लोग ही जानते हैं। आओ हस्तिनापुर चलें अभियान में आज आपको लेकर चलते है ऐसे ही पौराणिक स्थलों की ओर।

मेरठ से लगभग चालीस किमी की दूरी तय कर हम हस्तिनापुर पहुंचते हैं। इसके बाद जंबूद्वीप के सामने से होते हुए निशियां जी वन की ओर चलें। जंबूद्वीप से लगभग एक किमी की दूरी तय कर हम पहुंचते हैं दुर्वासा ऋषि आश्रम व संत हरिदास कुटी पर। जानकारी करने पर पता चला कि यहां वह वृक्ष आज भी मौजूद है, जहां से महाभारतकाल में भगवान कृष्ण ने द्रौपदी का चीर बढ़ाया था। अब हमारी जिज्ञासा और बढ़ी और हमने उनसे उस स्थान के बारे में पूछा, जहां कौरव व पांडवों के बीच चौसर खेला गया था। इसी आश्रम से एक व्यक्ति हमारे साथ वापस जंबूद्वीप की ओर चला। कुछ दूरी चलकर हम एक पहाड़ीनुमा जंगल की ओर चले। काफी तलाशने पर वह स्थान मिल गया, जहां चौसर खेला गया था। इसी स्थान को बाराखंबा के नाम से जाना जाता है। जहां मामा शकुनि के छल से चले गए प्रत्येक दांव में पांडव अपना सब कुछ हारते चले गए और अंत में उन्होंने द्रौपदी को ही दांव पर लगा दिया। अंतत: पांडव आखिरी चार चाल में द्रौपदी को भी हार गए।

अपनी इस जीत से कौरव इतने उत्साहित हुए कि उन्हें मर्यादा को लांघ दिया और द्रौपदी के चीरहरण करने तक पर उतर आए। इस स्थान पर कई शिलाएं मिलीं और कई सुरंग जैसी जगह दिखाई दीं। इस स्थान पर खोदे गए गहरे गड्ढों के बारे में जानकारी करने पर पता चला कि लोग खजाने के लालच में यहां खोदाई कर देते हैं। हालांकि यह स्थान घने जंगलों के बीच होने के कारण हर कोई यहां आने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। इस स्थान पर बड़ी संख्या में अजगर भी बताए जाते हैं। यह स्थान रहस्यों से भरा हुआ लगा, परंतु यहां आंखों को सुकून पहुंचाने वाला कुछ नहीं मिला। खैर, हम जल्द ही इस स्थान से वापस आ गए और पुन: आश्रम पहुंचे। बताते हैं कि इस स्थान पर पड़ी शिलाओं की समानता, द्वारिका में मिली शिलाओं से होती है। हालांकि प्रशासन, पर्यटन विभाग द्वारा भी इस स्थान का आम जनमानस के बीच प्रचार-प्रसार नहीं किया गया। जिस कारण यह स्थान लोगों से अनभिज्ञ है।

पांडव टीला पांडवान क्षेत्र में

राजस्व अभिलेखों के अनुसार पांडव टीला हस्तिनापुर के पांडवान क्षेत्र में स्थित है। इसी के साथ साथ पांडवेश्वर मंदिर, द्रौपदी मंदिर, द्रौपदेश्वर मंदिर आदि भी पांडवान क्षेत्र में ही है, जबकि जिस बाराखंबा का हमने भ्रमण किया, वह स्थान कौरवान क्षेत्र में आता है। इसके अलावा श्रीकर्ण मंदिर भी कौरवान क्षेत्र में ही स्थित है। 

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