जीका की आशंका ने बढ़ाया मेरठ में बुखार

जीका का लक्षण पूरी तरह डेंगू और चिकनगुनिया जैसा होता है, ऐसे में रोग की पहचान मुश्किल है।

By amal chowdhuryEdited By: Publish:Mon, 29 May 2017 10:10 AM (IST) Updated:Mon, 29 May 2017 10:10 AM (IST)
जीका की आशंका ने बढ़ाया मेरठ में बुखार
जीका की आशंका ने बढ़ाया मेरठ में बुखार

मेरठ (जागरण संवाददाता)। मेरठ अभी तक चिकनगुनिया के दर्द से उबरा भी नहीं था कि जीका की आशंका ने धड़कन बढ़ा दी है। प्रशासन मच्छरों पर नियंत्रण के लिए फागिंग में जुटा है, वहीं अहमदाबाद में तीन मरीजों में जीका वायरस की पुष्टि ने चुनौती बढ़ा दी। एनसीआर में जीका की जांच उपलब्ध भी नहीं है। डेंगू, चिकनगुनिया फैलाने वाले मच्छरों से ही जीका फैलता है, ऐसे में मेरठ हाईरिस्क जोन में है।

पहचान नहीं पाएंगे जीका: जीका का लक्षण पूरी तरह डेंगू और चिकनगुनिया जैसा होता है। ऐसे में रोग की पहचान मुश्किल है। गत वर्ष हर तीसरा व्यक्ति चिकनगुनिया बुखार की चपेट में आया। मरीजों में पोटेशियम की कमी हुई, और कई अपंगता के खतरे में पड़ गए। बाद में हैमरेजिक डेंगू की वजह से कई जानें गईं। इस वर्ष स्वास्थ्य विभाग जिले में सभी ग्राम पंचायतों के साथ मिलकर डेंगृू, मलेरिया और चिकनगुनिया से निपटने के लिए फागिंग की रणनीति बना रहा है। किंतु इसमें जीका की एंट्री ने शासन को भी चिंतित कर दिया है।

एक ही मच्छर से डेंगू चिकनगुनिया और जीका: मादा मच्छर एडीज से डेंगू, चिकनगुनिया और जीका संक्रमित होता है। अगर जीका के मरीज को मच्छर ने काट लिया तो यह स्वयं संक्रमित हो जाएगा। ऐसे में एक चक्र बन जाता है। जीका वायरस भी मादा एडीज मच्छर में पलते हैं। इन मच्छरों की मेरठ में भारी तादात है। कूड़ा, गंदगी, कचरा, सड़क पर जलभराव, घर में गमलों की परंपरा, ट्रकों के खराब पड़े टायरों एवं नालियों में मच्छरों के पनपने की पर्याप्त जगह मिल जाती है।

भ्रूण के लिए बेहद खतरनाक:मेरठ में हर माह करीब 30 हजार गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण होता है, जिनके लिए जीका वायरस बेहद खतरनाक होगा। यह वायरस गर्भस्थ शिशु के सिर पर हमला करता है। ज्यादातर शिशु गर्भ में दम तोड़ देते हैं, या फिर अपंग पैदा होते हैं।

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कोई इलाज नहीं: डेंगू और चिकनगुनिया का लक्षणों के आधार पर इलाज होता है। डेंगू की वैक्सीन पर काम चल रहा है, किंतु जीका का कोई इलाज नहीं है। इसमें भी मरीज को बुखार व दर्द की दवा दी जाती है। जिससे मरीज को कुछ राहत मिल जाती है।

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