सियासी भंवर में फंसी ओवरब्रिज निर्माण की मंजूरी

शहर के तीन लाख लोगों की रोज-रोज की घुटन को दूर करने के लिए हाईकोर्ट के निर्देश पर रेलवे क्रासिग संख्या जीरो-बी पर ओवरब्रिज निर्माण की मंजूरी का मामला एक बार फिर से सियासी भंवर में फंसता नजर आने लगा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 17 Apr 2019 06:41 PM (IST) Updated:Wed, 17 Apr 2019 06:41 PM (IST)
सियासी भंवर में फंसी ओवरब्रिज निर्माण की मंजूरी
सियासी भंवर में फंसी ओवरब्रिज निर्माण की मंजूरी

जागरण संवाददाता, मऊ : शहर के तीन लाख लोगों की रोज-रोज की घुटन को दूर करने के लिए हाईकोर्ट के निर्देश पर रेलवे क्रासिग संख्या जीरो-बी पर ओवरब्रिज निर्माण की मंजूरी का मामला एक बार फिर से सियासी भंवर में फंसता नजर आने लगा है। बीते 21 जुलाई को जिला प्रशासन की ओर से प्राथमिक लागत लगभग 95 करोड़ रुपये का आकलन करते हुए तथा ओवरब्रिज निर्माण के लिए 296 अतिक्रमण तोड़ कर निर्माण करने की जरूरत बताते हुए शासन से ओबी निर्माण की अनुमति मांगी थी, लेकिन मंजूरी अब तक नहीं मिली। जबकि, शहर के तीन लाख लोगों के सामने ओवरब्रिज का विरोध करने वालों की संख्या मुठ्ठी भर से कम है। इसके प्रति राज्य सरकार से जो दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाने की लोगों की अपेक्षा थी, वह उसे अब तक दिखा नहीं सकी है।

शहर के बालनिकेतन तिराहे के पास स्थित रेलवे क्रासिग संख्या जीरो-बी का फाटक प्रतिदिन कम से कम 50 बार तक बंद होता है। इस दौरान शहर के अनेक मुहल्लों से सुबह स्कूल निकले बच्चे, बीमार, बुजुर्ग, अस्पतालों, दफ्तरों, स्कूलों को निकले कर्मचारी रोजाना फाटक बंद होने के बाद जाम में फंसे रहते हैं। यही सिलसिला कई दशकों से चला आ रहा है। दशकों से यह हर संसदीय चुनाव में मुद्दा भी बनता आया है। सामाजिक कार्यकर्ता देवप्रकाश राय ने ओवरब्रिज निर्माण न होने पर जब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट के आदेश पर बीते 26 जून को जिला प्रशासन व रेलवे प्रशासन की संयुक्त बैठक हुई थी। बैठक के बाद ओबी निर्माण की संभावनाओं को टटोलते हुए ओवरब्रिज निर्माण मार्ग की पक्की पैमाइश हुई और 296 अतिक्रमण चिह्नित किए गए। इसके बाद कोर्ट में हलफनामा देकर जिला प्रशासन ने ओवरब्रिज निर्माण कराने की बात कही। इसके साथ ही बीते 21 जुलाई को जिला प्रशासन की ओर से ओबी की प्राथमिक लागत लगभग 95 करोड़ रुपये आने का स्टीमेट बनाकर उसकी मंजूरी के लिए फाइल प्रमुख सचिव लोक निर्माण को भेज दिया। उधर, जब देवप्रकाश राय ने आरटीआइ लगाकर फाइल का पीछा किया तो पता चला शासन से अब तक मंजूरी ही नहीं दी गई है। इनसेट ..

आखिर क्यों नहीं तोड़े जा सकते अवैध निर्माण

हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले देवप्रकाश राय ने कहा कि फोरलेन निर्माण के लिए जिले में सैकड़ों लोगों के मकान तोड़े गए हैं। हजारों लोग मकान टूटने से बेघर हुए और अन्यत्र जाकर मिले हुए मुआवजे से अपना आशियाना बनाने में लगे हैं। कहा कि जीरोबी ओबी के मार्ग में तो अवैध निर्माण चिह्नित किए गए हैं, वह भी खुद जिला प्रशासन द्वारा। ऐसे में अवैध निर्माणों को क्यों नहीं तोड़ा जा सकता।

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सीएम और राज्यपाल से मिला था सिधी समाज का प्रतिनिधिमंडल

चिह्नित अतिक्रमण में कुछ सिधी समाज के लोगों के भी घर हैं, जिन्हें आजादी के समय ही पाकिस्तान से शरणार्थियों के रूप में आने के बाद सरकार ने रहने के लिए दिया था। हालांकि, सिधी समाज के लोग उस जमीन के मालिकाना हक के लिए लड़ते रहे जो उन्हें आज तक सरकार की तरफ से नहीं दिया गया है। तब से अधिकांश सिधी समाज के लोगों ने काफी प्रगति की है। अनेक के पास अब आलीशान होटल, बंग्ला, दुकानें और शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में कीमती जमीने हैं। अतिक्रमण में चिह्नित किए गए इनके आवास न टूटें, इसके लिए सिधी समाज के लोगों ने सीएम और राज्यपाल से मिलकर गुहार लगाई थी। माना जा रहा है कि तभी से ओवरब्रिज निर्माण की तेजी से शुरू हुई कवायद ने अपनी रफ्तार खो दी।

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