ठाकुरजी ने गुलाबी मखमल हिडोला में विराजमान होकर दिए दर्शन

ठाकुरजी के अपलक दर्शन करते रहे। मंदिर प्रांगण में भगवान की जय-जयकार होती रही

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 06:32 AM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 06:32 AM (IST)
ठाकुरजी ने गुलाबी मखमल हिडोला  
में विराजमान होकर दिए दर्शन
ठाकुरजी ने गुलाबी मखमल हिडोला में विराजमान होकर दिए दर्शन

संवाद सहयोगी, मथुरा : मंदिर ठाकुर द्वारकाधीश में ठाकुरजी ने गुलाबी मखमल हिडोला में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए। ठाकुरजी के मनमोहक स्वरूप को देख श्रद्धालु श्रद्धा से लबालब हो गए। ठाकुरजी के अपलक दर्शन करते रहे। मंदिर प्रांगण में भगवान की जय-जयकार होती रही।

ठाकुर द्वारकाधीश मंदिर में सावन में हिडोला और घटाओं के आयोजन किए जाते हैं। मंदिर में होने वाले यह आयोजन श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहते हैं। ठाकुरजी ने शाम 4.45 से 5.15 बजे तक गुलाबी मखमल हिडोला में विराजमान होकर श्रद्धालुओं को दर्शन दिए। यह आयोजन एक भक्त ने अपनी भावना के अनुसार कराया था। भक्त ठाकुरजी को हिडोला में विराजमान देख भावविभोर हो गए। सभी ठाकुरजी के दर्शन करने को उत्सुक थे। हर कोई ठाकुरजी को निहारकर धन्य हो रहा था। मंदिर के मीडिया प्रभारी एड. राकेश तिवारी ने बताया कि बुधवार शाम 4.45 से 5.15 बजे तक श्याम मखमल हिडोला का आयोजन होगा। हिडोला के आयोजन के दिन शयन के दर्शन शाम 6.15 से सात बजे तक होंगे। मंदिर मुखिया सुधीर कुमार, राजीव अधिकारी, लक्ष्मण प्रसाद पाठक, राजीव चतुर्वेदी, बृजेश चतुर्वेदी, सत्यनारायण, बनवारीलाल, अमित चतुर्वेदी मौजूद रहे। कथा में अलग-अलग अंदाज में नजर आ रहे गुप्तेश्वर पांडे

संवाद सहयोगी, वृंदावन: बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे श्रीमद्भागवत कथा के दौरान अलग-अलग अंदाज में नजर आ रहे हैं। कभी वह भावुक हो जाते हैं, तो कभी भगवान की लीलाओं का वर्णन करते आनंदित।

चैतन्य विहार स्थित पाराशर अध्यात्म ट्रस्ट में मंगलवार को श्रीमद्भागवत कथा सुनाते हुए पांडे ने कहा, मोह में फंसा जीव भक्ति के मार्ग पर कभी भी भटक सकता है। इसलिए उसे किसी मार्गदर्शन की जरूरत होती है। बिना मार्गदर्शन और मन में भाव के भक्ति की ओर जीव अग्रसर नहीं हो सकता। कपिल देवाहुति संवाद पर चर्चा करते हुए कहा, जीव को प्राइमरी दर्जा से लेकर स्नातक दर्जा के अनुसार ही परीक्षाओं को सामना करना पड़ता है। जब कंचन की छाया जीव पर पड़ती है, तो जीव उसके मोहपाश में फंसकर भक्ति से भटक जाता है। सतोगुणी संस्कार अगर चित्त में है, तो वैसे ही कर्म करने के विचार मन में आएंगे। सतोगुणी संस्कार के बंधन से जीव का निकलना बड़ा मुश्किल होता है। जीव को पता रहता है तमोगुणी संस्कार का क्षय हम कैसे करें, लेकिन हम नहीं कर पाते। यह हर जीव के लिए मुश्किल है। जब जीव सतोगुण के संस्कारों को प्राप्त कर लेता है तो माया से परे हो जाता है।

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