किशोरी जू के जन्म पर अब कौन मांगेगा वृषभानु जी से नेग

भक्ति की डोर में बंधे अनुराग सखी करीब 40 बरस से कर रहे थे ढांढी-ढांढिन लीला शनिवार को हुआ निधन कृष्णकालीन लीला के मंचन पर खड़ा हुआ संकट

By JagranEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 05:17 AM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 05:17 AM (IST)
किशोरी जू के जन्म पर अब कौन मांगेगा वृषभानु जी से नेग
किशोरी जू के जन्म पर अब कौन मांगेगा वृषभानु जी से नेग

विनीत मिश्र, मथुरा: ये आराध्य से भाव और श्रद्धा की डोर ही थी, जिससे अनुराग सखी 40 वर्षों तक बंधे रहे। राधारानी के धाम आए, तो फिर यहीं के होकर रह गए। अनुराग सखी वह भक्त थे, जो चार दशक से कृष्णकालीन लीला को जीवंत कर रहे थे। किशोरी जू के जन्म पर उनके पिता वृषभानु से बधाई गाकर नेग मांगने की लीला जीवंत करने वाले अनुराग सखी का शनिवार को निधन हो गया। उनके निधन के साथ ही प्राचीन ढांढी-ढांढिन लीला मंचन पर संकट आ गया है।

राधारानी और भगवान श्रीकृष्ण से अनुराग सखी ने रिश्तों की डोर यूं ही नहीं जोड़ी। इसके लिए उन्होंने बहुत त्याग भी किया। दिल्ली के अशोक विहार में रहने वाले अनुराग सखी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीकाम आनर्स पास किया। पिता डा. सत्यपाल चुग दिल्ली के करोड़ीमल कालेज में प्रोफेसर थे। अनुराग सखी तीन भाई व दो बहन थे। इतिहास के जानकार योगेंद्र सिंह बताते हैं कि अनुराग सखी को राधारानी से ऐसी प्रीत थी कि 15 साल की उम्र में वर्ष 1980 में उन्होंने अपना घर त्याग दिया। वृंदावन आ गए और अपने गुरु चंद्रशेखर बाबा से गौड़ीय संप्रदाय की दीक्षा ली। इसके बाद बरसाना आ गए। तब यहां वृंदावन की रंगीली सखी ढांढी-ढांढिन लीला का मंचन करते थे। उनसे अनुराग सखी प्रभावित हुए। इसी बीच रंगीली सखी ने लीला का मंचन बंद कर दिया, तो अनुराग सखी 1982 से लीला का मंचन करने लगे। तब से लगातार हर वर्ष वह राधाष्टमी पर राधारानी के जन्म के अगले दिन मंदिर में बधाई गाते थे। परंपरा के मुताबिक, राधारानी के पिता वृषभानु जी से नेग मांगते थे। दो साल से मंदिर प्रबंधन ने लाउडस्पीकर से शोर होने के कारण मंदिर परिसर में लीला पर रोक लगा दी, तो वह बरसाना में ही तिलक विहार स्थित अपने आश्रम पर लीला करने लगे। क्या है ढांढी-ढांढिन लीला

मान्यता के अनुसार, राधारानी का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था। अगले दिन ढांढी-ढांढिन वृषभानु जी के महल में बधाई गाकर नेग मांगने जाते थे। इसे ही ढांढी-ढांढिन लीला कहते हैं। वर्तमान में इस लीला का मंचन अनुराग सखी करते थे। इसके लिए बाकायदा वह सोलह श्रृंगार करते और अपनी टीम के साथ लीला का मंचन करते। लीला पर आया संकट

ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता घनश्याम भट्ट कहते हैं कि अनुराग सखी के निधन के बाद लीला पर संकट आ गया है। ब्रज में ऐसी तमाम सखी हैं, जो ये लीला मंचन करना चाहती हैं, लेकिन अनुराग सखी द्वारा लीला मंचन करने के कारण वह भाग नहीं लेती थीं। स्थानीय जानकार सत्य नारायण श्रोत्रिय कहते हैं कि वृंदावन की रंगीली सखी के बाद अनुराग सखी लीला का मंचन करते थे, लेकिन उनके निधन के बाद लगता नहीं कि लीला फिर से शुरू हो पाए।

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