बेटियों की जिद है आसमां से तारे तोड़कर लाने की

तीरंदाजी में साध रहा देश के लिए निशाना तो कोई शूटर बेटियों के हुनर से हौसलेमंद बने अभिभावक

By JagranEdited By: Publish:Thu, 10 Oct 2019 11:26 PM (IST) Updated:Sat, 12 Oct 2019 06:07 AM (IST)
बेटियों की जिद है आसमां से तारे तोड़कर लाने की
बेटियों की जिद है आसमां से तारे तोड़कर लाने की

मथुरा, जासं। तेरे माथे पर ये आंचल तो बहुत ही खूब है, लेकिन तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था। मजाज लखनवी के शेर में जो संदेश है, उसे पोर-पोर जी रही हैं ब्रज की बेटियां।

ये वह बेटियां हैं, जिन्होंने मेहनत की कलम से सफलता की इबारत लिख दी। अभिभावकों से बेटियों की बात होती है, तो सीना फक्र से चौड़ा हो जाता है।

वरेण्या: अडींग के कंचनपुर में रहने वाली वरेण्या की उम्र महज 10 वर्ष है। तीरंदाजी में जब धनुष साधती हैं तो बड़े-बड़ों के होश उड़ा देती हैं। कंचनपुर के ही महर्षि दयानंद विद्या मंदिर में सातवीं में पढ़ने वाली वरेण्या इसी साल दिसंबर में तीरंदाजी के नेशनल मुकाबले में अंडर-14 में निशाना साधेंगी। छह वर्ष की उम्र से वरेण्या ने गुड्डे-गुड़िया छोड़ तीर कमान थाम लिया था। एक साल के अथक परिश्रम के बाद अंडर-9 मेरठ में आयोजित प्रदेश स्तरीय तीरंदाजी चैंपियनशिप में गोल्ड जीता।

प्रदेश की टीम से विजयवाड़ा में प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। वरेण्या के द्रोणाचार्य उसके बड़े पापा यानी ताऊ योगेंद्र राणा हैं। वह गांव में ही तीरंदाजी की अकादमी चलाते हैं। वह सुबह और शाम तीन-तीन घंटे अभ्यास करती हैं। सपना देश के लिए गोल्ड लेने का है। सरजू राजपूत: गांव सेही की सरजू राजपूत एक पेशेवर राष्ट्रीय निशानेबाज हैं। वे वर्ष 2015 से शूटिग कर रही हैं। पहले एयर रायफल में और अब पिस्टल से निशाना लगाती हैं। आबकारी विभाग में वर्ष 2011 से कांस्टेबल हैं। पिस्टल की स्टेट में प्रतियोगिता में दो सिल्वर, इतने ही ब्रांज रायफल प्रतियोगिता में है। चार बार नेशनल क्वालिफाई कर चुकी है। कई स्टेट में जाकर शानदार प्रदर्शन कर चुकी हैं। अब नवंबर में होने वाली नेशनल प्रतियोगिता के लिए पसीना बहा रही हैं। उसका अगला टारगेट इंडियन टीम में सेलेक्ट होकर इंटरनेशनल शूटिग में गोल्ड लाना है। खास बात है कि वे बिना किसी कोच के प्रैक्टिस करती हैं। असमा अली खां: गांव कुरकंदा फरह निवासी अस्मा अली खां पेशेवर वेट लिफ्टर के अलावा कोच भी हैं। गणेशरा स्टेडियम में कोचिग देती हैं। अब तक कई मेडल हासिल कर चुकी हैं। वर्ष 2008 में उज्बेकिस्तान में हुई बेंच प्रेस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान और 2015 में टाटा नगर में आयोजित इंटरनेशनल प्रतियोगिता में स्ट्रांग वूमेन ऑफ इंडिया का खिताब पाया था। इसमें 420 किग्रा का वजन उठाया था। अस्मा के पिता ठेकेदार हैं। छह भाई-बहन हैं। इतनी आय नहीं है कि महंगे सपने भी बुन सकें। वर्ष 2008 में बड़ी मुश्किल से उज्बेकिस्तान जाना हो पाया था। इसमें करीब डेढ़ लाख रुपये की मदद समाज के लोगों ने की थी। सरकार की ओर से कोई मदद नहीं हो पाती है। कोई समाजसेवी भी मदद को हाथ नहीं बढ़ा रहा है। उनके कई शिष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा रहे हैं।

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