मैनपुरी में बदलाव और विरासत की जंग, डिंपल के सामने भाजपा के जयवीर और बसपा के शिव प्रताप की चुनौती; Ground Report

मैनपुरी लोकसभा सीट पर इस बार चुनाव बेहद ही दिलचस्प नजर आ रहा है। इस सीट पर यादव परिवार की ओर से समाजवादी पार्टी ने डिंपल यादव पर दांव लगाया है। तो वहीं भाजपा ने मंत्री व स्थानीय विधायक जयवीर सिंह को मैदान में उतार दिया है। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने पूर्व विधायक शिव प्रताप यादव को प्रत्याशी बनाकर चुनावी मुकाबला और रोचक कर दिया है।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek Pandey Publish:Sun, 28 Apr 2024 11:31 AM (IST) Updated:Sun, 28 Apr 2024 11:31 AM (IST)
मैनपुरी में बदलाव और विरासत की जंग, डिंपल के सामने भाजपा के जयवीर और बसपा के शिव प्रताप की चुनौती; Ground Report
मैनपुरी में बदलाव और विरासत की जंग, डिंपल के सामने भाजपा के जयवीर और बसपा के शिव प्रताप की चुनौती

Mainpuri Lok Sabha Seat: चुनावी महासमर अपने चरम की ओर बढ़ रहा है। खेतों में चल रही गेहूं की कटाई का काम भी धीरे-धीरे पूरा होने को है। चुनावी प्रचार की गर्मी में चर्चाओं की खिचड़ी भी जोरों से पक रही है। मुद्दों को छोड़कर जातियों की बिसात बिछाने वाली मैनपुरी की धरती पर इस बार भी राजनीतिक दलों की चाल यही है। एक तरफ विरासत की लड़ाई है तो दूसरी तरफ बदलाव करने की दावे और इरादे।

सपा का गढ़ कही जाने वाली इस सीट पर बहस और चर्चाओं में हर तरफ से तर्क-वितर्क के तीर चल रहे हैं, जिनसे उभर रही है एक रोमांचक मुकाबले की तस्वीर। बात कहीं से शुरू हो, मुद्दों और जातीय समीकरणों के रास्ते से होते हुए पहुंचती विरासत और बदलाव की जंग पर ही है। मैनपुरी के चुनावी माहौल पर पेश है दिलीप शर्मा की रिपोर्ट...

शहर का भांवत चौराहा। सुबह नौ बजे ही सूर्यदेव प्रखर होने लगे हैं। गर्मी का ताप ऐसा कि राहगीरों के चेहरे अंगौछे में छिपे दिखते हैं। यहां स्टेशन रोड पर सड़क किनारे ही खानपान के स्टाल लगे हैं। वहां पर कई लोग खड़े हैं। हम भी उनकी तरफ बढ़ चले। इस बीच ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ गीत के सुर सुनाई देने लगते हैं। हमने नजर घुमाई तो एक प्रचार वाहन कचहरी रोड की ओर जाता दिखा। वाहन पर तीन तरफ भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह के पोस्टर लगे थे।

हमने समोसे की दुकान पर मौजूद घिरोर के सुरेश चंद यादव की ओर चुनावी माहौल का सवाल उछाला तो कहने लगे मैनपुरी का नाम तो नेताजी मुलायम सिंह के नाम से रहा है। यह तो उनके परिवार की विरासत है। ऐसे में सपा का तो पलड़ा भारी रहना ही है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि पहले जैसी आसान स्थिति नहीं है।

इस बीच पुरानी मैनपुरी के रहने वाले श्रीकृष्ण मिश्रा बोले, अब नेताजी तो रहे नहीं, मुकाबला तो कांटे का होगा। वे कहते जा रहे थे, भाजपा वालों पर गिनाने के लिए कितने सारे काम हैं। आवास, शौचालय जैसे काम तो सामने दिखते हैं।

बुजुर्ग खेमकरन सिंह कहने लगे, बताओ अब परिवार की संपत्ति पर भी नजरें टिकाई जा रही हैं। हमारी संपत्ति कोई लेकर दूसरे को कैसे दे देगा? इसका भी असर दिखेगा। बदलाव पर भी बात होनी चाहिए। हमने यही सवाल वहां खड़े राजवीर और किशन की तरफ उछाला तो वे कुछ न कहने की बात कहकर खामोश हो गए। हम यहां से आगे बढ़े।

आगे कचहरी रोड पर एक और प्रचार वाहन नजर आया, सपा के रंग में रंगे वाहन पर ‘ऐ मैनपुरी वालो डिंपल को जिता देना’ गीत गूंज रहा था। वह वाहन गुजरा ही था कि बसपा की वोट अपील सुनाई देने लगी। हालांकि इस अपील में कोई संगीत नहीं था। हां, प्रत्याशी का फोन नंबर दोहराया जा रहा था। अब हमें लगा कि चढ़ते तापमान के साथ चुनाव का रंग भी चटख हो रहा है।

मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र को सपा का गढ़ कहा जाता है। वर्ष 1996 में मुलायम सिंह यादव यहां पहली बार लोकसभा के मैदान में उतरे थे। उसके बाद इस क्षेत्र पर सपा का रंग गहरा होता गया। बीते 10 चुनावों से सपा इस सीट पर लगातार जीत रही है। इनमें से पांच चुनावों में खुद मुलायम सिंह यादव सांसद बने थे। जबकि तीन उपचुनावों में परिवार के अलग-अलग सदस्य संसद तक पहुंचे।

इनमें सपा की डिंपल यादव भी शामिल हैं, जो वर्ष 2022 में मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में सांसद बनी थीं। भाजपा ने उनके मुकाबले में इस बार स्थानीय विधायक और पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह को मैदान में उतारा है। जबकि बसपा से भरथना के पूर्व विधायक शिव प्रसाद यादव प्रत्याशी हैं। तीनों का प्रचार युद्ध चरम पर है।

सुबह से रात तक गांव-गांव, मुहल्ले-मुहल्ले जनसंपर्क में जुटे हैं। तीनों दलों की रणनीति जातीय समीकरणों को साधने पर केंद्रित दिख रही है। जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां सर्वाधिक चार लाख यादव मतदाता हैं। इनके बाद शाक्य मतदाताओं की संख्या ढाई लाख अनुमानित है।

क्षत्रिय मतदाता दो लाख के आसपास हैं, जबकि ब्राह्मण, पाल बघेल, कश्यप और अनुसूचित जाति के मतदाता एक-एक लाख हैं। लोधी मतदाताओं की संख्या सवा लाख मानी जाती है, मुस्लिम मतदाता 70 हजार के करीब हैं। समाजवादी पार्टी यादव मतों को एकजुट रखने के साथ अन्य जातियों को जोड़ने में जुटी है।

वहीं भाजपा यादव मतों में सेंध की बड़ी कोशिश कर रही है। उसका जोर शाक्य मतों का बिखराव रोकने और अन्य जातियों को अपने साथ जोड़े रखने पर है। बसपा भी अपने कैडर वोट के साथ यादव मतों पर निगाह गढ़ाए है। ऐसे में रोमांचक मुकाबले की तस्वीर बनती दिख रही है।

किशनी क्षेत्र के गांव अजीतगंज में गेहूं की फसल काटकर लौट रहे किसान प्रसादी लाल का कहना था कि अभी तो फसल की कटाई चल रही है। गांवों में किसान व्यस्त हैं, परंतु चुनाव पर भी उसकी नजर है। उनका कहना था कि सरकारी योजनाओं के लाभ की बहुत चर्चा है और उससे भी ज्यादा अपराध पर लगाम की बात हो रही है। वह कहते हैं कि इस बार बदलाव के लिए भी हवा चल सकती है। वह बात पूरी करते, इससे पहले ही कुछ और किसान भी आ गए।

अंकुर मिश्रा कहने लगे कि पहले दिनदहाड़े इसी एलाऊ रोड पर राहजनी हो जाती थी, लेकिन अब चाहे दिन हो या रात, कोई डर नहीं है। सत्यवीर कठेरिया ने भी उनकी हां में हां मिलाई। हालांकि विशाल शाक्य उनसे सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि ये तो कोई भी सरकार होती, वो देती। महंगाई और बेरोजगारी का हाल भी देखो। यहां तो सबकुछ सपा ने ही कराया है, इसको भी लोग याद रखते हैं। उधर, बेवर में गोल चक्कर के पास बने अस्थाई यात्री प्रतीक्षालय पर नीम की छांव में वाहन की प्रतीक्षा करते यात्री भी चुनावी चर्चा में मशगूल मिले।

पूरनलाल सक्सेना कह रहे थे कि गरीबों के पेट पालने में राशन फ्री, रसोई गैस कनेक्शन फ्री, बीमारी का फ्री इलाज, यह बातें तो लोगों के दिमाग में रहती ही हैं। इनका असर तो दिखेगा। गजेन्द्र सिंह शाक्य ने भी उनका समर्थन किया। हालांकि जाहिद अली ने चिंता जताई कि राजनीति में धर्म को लेकर जो बयानबाजी हो रही है, वह देश के लिए खतरे की घंटी है।

सुरजीत सिंह सक्सेना बोले, यह सब तो हर चुनाव में होता है। परंतु अब जो पैतृक जमीन-जायदाद के हिसाब-किताब और छीनने की बातें हो रही हैं, उनका क्या? अपनी संपत्ति कोई क्यों दूसरों को देगा। यह बात भी मुद्दा बनेगी।

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