बैलगाड़ी पर नेता जी, साइकिलों पर समर्थक... आजादी के बाद पहले चुनाव में कुछ ऐसे थे नजारे, बुजुर्गों ने याद किए रोचक किस्से

Lok Sabha Election 2024 चरखारी विधानसभा क्षेत्र के परभूदयाल कहते हैं कि पहली बार सन 1952 में पहला वोट दिया था। तब उनकी उम्र करीब 22 साल थी। मतदान से महीनों पहले गांव ही नहीं पूरे क्षेत्र में उत्सुकता का माहौल था। गांव में कभी कभार कोई जीप आती दिख जाती तो बच्चे उसके पीछे शोर मचाते भागते थे। तब प्रत्याशी को जो भी कहना होता सामने कह देते थे।

By ajay dixit Edited By: Aysha Sheikh Publish:Mon, 01 Apr 2024 02:17 PM (IST) Updated:Mon, 01 Apr 2024 02:48 PM (IST)
बैलगाड़ी पर नेता जी, साइकिलों पर समर्थक... आजादी के बाद पहले चुनाव में कुछ ऐसे थे नजारे, बुजुर्गों ने याद किए रोचक किस्से
आजादी के बाद पहला चुनाव: बैलगाड़ी-साइकिल से आते थे नेता, बुजुर्ग मतदाताओं ने बताया- कैसा होता था नजारा

अजय दीक्षित, महोबा। वह समय ही कुछ अलग था... देश को आजादी मिली थी और स्वतंत्रता के बाद पहला लोकसभा चुनाव किसी बड़े उत्सव की तरह था। उस समय क्या कुछ माहौल था उस पर बुजुर्ग मतदाता कहते हैं, उस समय यह उत्सुकता थी कि यह वोट कैसे पड़ेगा। जैसे दीपावली आने पर महीनों तैयारी होती है कुछ वैसा ही मतदान की तारीख को लेकर घर से गांव तक सज संवर रहा था। मतदान की पहली रात मुहल्ले में चौपाल सजी, सभी में सलाह हुई कि कितने बजे वोट डालने जाना है और कहां वोट पड़ेगा, पहले आम चुनाव के साक्षी ऐसे ही बुजुर्ग मतदाताओं से बातचीत पर आधारित महोबा से अजय दीक्षित की रिपोर्ट...।

बिना गांव आए जीत गए चुनाव

चरखारी विधानसभा क्षेत्र के अजनर निवासी परभूदयाल कहते हैं कि पहली बार सन 1952 में पहला वोट दिया था। तब उनकी उम्र करीब 22 साल थी। मतदान से महीनों पहले गांव ही नहीं पूरे क्षेत्र में उत्सुकता का माहौल था। गांव में कभी कभार कोई जीप आती दिख जाती तो बच्चे उसके पीछे शोर मचाते भागते थे। तब जनता में लालच नहीं था, प्रत्याशी को जो भी कहना होता सामने कह देते थे। आज भी याद है मतदान के दिन गांव में बहुत भीड़ थी। जहां वोट पड़ना था उसके आसपास पुलिस तो थी लेकिन डर जैसा माहौल नहीं था।

कहते हैं कि तब के चुनाव और आज के चुनाव में अंतर है, तब खर्चा के नाम पर बिल्ला, पर्चा, बहुत हुआ तो वोट वाले दिन पूड़ी सब्जी बनती थी। बुंदेलखंड के एक नेता दीवान शत्रुघन सिंह थे, लोकसभा चुनाव में जनसंघ पार्टी से लड़े थे और चुनाव जीते थे। प्रचार के लिए बहुत भ्रमणअ करते थे, उन्होंने गांव-गांव में मुख्य व्यक्ति को सूचना भेज दी थी और चुनाव बिना गांव आए ही जीत लिया था, लेकिन आम जनता का वह ध्यान बहुत रखते थे।

साइकिल से आए थे प्रचार करने

अजनर के ही 96 वर्षीय श्यामलाल राजपूत कहते हैं कि सन 1952 में पहली बार वोट दिया था, तब लोक सभा व विधानसभा चुनाव एक साथ हुआ करते थे। उस समय लोक सभा प्रत्याशी मन्नूलाल द्विवेदी कांग्रेस से व जोरावर वर्मा निर्दलीय प्रत्याशी विधानसभा से मैदान में थे।

उस समय लोक सभा प्रत्याशी चुनाव प्रचार में हर जगह नहीं पहुंच पाते थे। विधानसभा प्रत्याशी अधिक क्षेत्रों का दौरा करते और दोनों का प्रचार करते थे। तब जोरावर वर्मा साइकिल से दो-चार साथियों के साथ प्रचार करने आए। उनके साथ न तो कोई असलहा और न ही कोई गाड़ी व काफिला रहता था। बिल्कुल शांतिपूर्ण प्रचार होता था।

तब उनके प्रचारक के दौरान एक गीत गाते थे, भइया बहिनों विनय हमारी ध्यान लगाकै सुन लइयो, जोरावर की बाइसकिल में अपनो वोट डार दैयो, वे हैं एमए पास बकालत सब खां समझाके कहिओ, सबसे बड़े हितू है अपने जिता उनका खां तुम दैयो, भैया हंसन की सभा में कौआ पहुंचा न दैयो, हाथ उठाओ जान न पावे ऐसो जतन जुटा दैयो।

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