आल्हा की प्रमाणिकता पर शोध जरूरी

जागरण संवाददाता, महोबा: जगनिक शोध संस्थान एवं मुकुंद फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में रवि

By JagranEdited By: Publish:Sun, 02 Sep 2018 11:26 PM (IST) Updated:Sun, 02 Sep 2018 11:26 PM (IST)
आल्हा की प्रमाणिकता पर शोध जरूरी
आल्हा की प्रमाणिकता पर शोध जरूरी

जागरण संवाददाता, महोबा: जगनिक शोध संस्थान एवं मुकुंद फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को विचार गोष्ठी में आल्हा की प्रमाणिकता पर ¨चतन किया गया। गोष्ठी का विषय आल्हा संगोष्ठी एवं गायकों से संवाद रहा। गोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर किया। कार्यक्रम में सबसे पहले पंडित जगप्रसाद तिवारी ने सरस्वती वंदना पेश की।

गोष्ठी में रेडियो गायक उमाशंकर सैन ने वीर रस से वीर आल्हा ऊदल की वीरता का बखान किया। इसके बाद साहित्यकारों ने आल्हा संगोष्ठी के माध्यम से शोधपरक चर्चा की। डा. रामदत्त तिवारी, अजय ने कहा कि विषय इतना बड़ा है कि इसमें इतिहास, भूगोल, पुरातत्व सभी समाहित हैं। छतरपुर से आए डा. हरि ¨सह घोष ने आल्हा खंड के समय हुए युद्धों की विस्तार से व्याख्या की। घोष ने युद्ध में हाथियों के नामों का भी जिक्र किया। चिरगांव झांसी से आए राम प्रकाश गुप्त ने कहा कि राष्ट्र कवि मैथलीशरण गुप्त ने भी आल्हा पर बहुत कुछ लिखा है। लखनऊ से आए डा. पवन अग्रवाल ने कहा कि अवध क्षेत्र की आल्हा गायन शैली से बुंदेलखंड की आल्हा शैली अच्छी है। आल्हा की गाथा स्वतंत्र अस्तित्व रखती है। अध्यक्षता पूर्व प्रधानाचार्य उमाशंकर नगायच और संचालन संतोष पटैरिया ने किया।

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