बुंदेली वीरों के शौर्य की मूक गवाह है गोरों की समाधि

अभिषेक द्विवेदी, महोबा देशभक्तों ने आजादी की खातिर अंग्रेजों से हर तरीके से लोहा लिया। 1857

By JagranEdited By: Publish:Sun, 12 Aug 2018 11:23 PM (IST) Updated:Sun, 12 Aug 2018 11:23 PM (IST)
बुंदेली वीरों के शौर्य की मूक गवाह है गोरों की समाधि
बुंदेली वीरों के शौर्य की मूक गवाह है गोरों की समाधि

अभिषेक द्विवेदी, महोबा

देशभक्तों ने आजादी की खातिर अंग्रेजों से हर तरीके से लोहा लिया। 1857 की गदर ने अंग्रेजी हुकूमत को मुश्किल में डाल दिया। बुंदेली वीरों का आक्रोश व रौद्र रूप देखकर अंग्रेज अपनी जान बचाकर भागे। कुछ ने महोबा छोड़ दिया तो कुछ इधर उधर भटक। ऐसे ही पांच अंग्रेज भटककर अपनी जान बचाने के लिए ऐतिहासिक गोरखगिरि पर्वत के ऊपर जा पहुंचे। इन्हें देखकर देशभक्तों का खून खौल गया और ग्वाले व बरेदियों ने उनकी हत्या कर दी। बाद में अंग्रेजों ने उनकी याद में एक समाधि बनाई जिसे गोरों की समाधि कहा जाता है। यह समाधि बुंदेलों के शौर्य एवं पराक्रम की मूक गवाही देती है।

शहर के पुलिस लाइन के पास स्थित प्राचीन शिवतांडव मंदिर के पीछे स्थित गोरखगिरि पर्वत पर रिखन तलैया बनी हुई है। इसके पास में ऊंचा पहाड़ का पठार है। इतिहासकार व समाजसेवी तारा पाटकर व महाविद्यालय के प्रवक्ता डा. एलसी अनुरागी बताते है कि इस ऊंचे पठार को देखकर ऐसा लगता है कि यह सैनिक दृष्टि से शत्रुओं को दूर तक देखने के लिए निर्मित की गई होगी। बताते है कि इसका स्थापना काल 15वीं शताब्दी के आसपास का लगता है। इसी की उत्तरी दिशा में एक वर्गाकार समाधि है जो चार फिट ऊंची व 10 फिट लंबी व चौड़ी कटावदार पत्थरों पर चबूतरे के रूप में बनी है। कहते है 1857 की गदर के दौरान यहां भटककर आए पांच गोरों को यहां जानवर चरा रहे बरेदियों व ग्वालों ने मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद अंग्रेजों ने उनकी याद में यह समाधि बनाई थी जिसे आज भी गोरों की समाधि के नाम से जाना जाता है। यह स्थान बुंदेली वीरों की याद को ताजा करता है और उनके इस संस्मरण को सुनते ही भुजाएं फड़कने लगती है।

समाधि देखने को उमड़ते हैं लोग

ऐतिहासिक गोरखगिरि के ऊपर बनी गोरों की समाधि को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग उमड़ते है। यहां गुरु पूर्णिमा में होने वाले भंडारा व परिक्रमा करने आने वाले लोग इस जगह में जरूर जाते है और इसके इतिहास और देशभक्तों के शौर्य पराक्रम से रूबरू होते है। सावन के दिनों में भी शिवतांडव में आने वाले भक्त भी 1857 की गदर की याद दिलाती इस जगह को देखने के लिए पहुंचते है। हालांकि समाधि का कुछ हिस्सा अब जीर्णशीर्ण हो गया है। माना जाता है कि दफीनेबाजों ने धन के लिए यहां खोदाई की थी।

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