विश्व होम्योपैथी दिवस : होम्योपैथी में भी पहचाना जाने लगा लखनऊ, ये है टॉप टेन डॉक्‍टर

लखनऊ के नेशनल होम्योपैथिक कॉलेज ने अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धति से कदमताल करते हुए व खुद को अपग्रेड कर शहर को एक अलग पहचान दिलाई है।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Fri, 10 Apr 2020 07:57 AM (IST) Updated:Fri, 10 Apr 2020 11:47 AM (IST)
विश्व होम्योपैथी दिवस : होम्योपैथी में भी पहचाना जाने लगा लखनऊ, ये है टॉप टेन डॉक्‍टर
विश्व होम्योपैथी दिवस : होम्योपैथी में भी पहचाना जाने लगा लखनऊ, ये है टॉप टेन डॉक्‍टर

लखनऊ, (धर्मेन्द्र मिश्रा)। राजधानी ने चिकित्सा के क्षेत्र में तमाम उपलब्धियां हासिल की हैं। चिकित्सकीय सुविधाओं और नित नये प्रयोग के कारण राजधानी का नाम आज देश-दुनिया के मानस पटल पर है। यहां केजीएमयू से लेकर एसजीपीजीआइ व लोहिया संस्थान ने बार-बार प्रदेश व देश को गौरवांवित होने का मौका दिया है। वहीं झंझावातों के बावजूद होम्योपैथी चिकित्सा ने भी राजधानी में सफलता के नये-नये आयाम गढ़े हैंं। यहां के नेशनल होम्योपैथिक कॉलेज ने अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धति से कदमताल करते हुए व खुद को अपग्रेड कर शहर को एक अलग पहचान दिलाई है। इन प्रयासों का नतीजा ये हुआ कि अब होम्योपैथी में भी लखनऊ पहचाना जाने लगा है।

राजधानी में होम्योपैथी का इतिहास: राजधानी में वर्ष 1912 में कोलकाता के डॉ. जीएन ओहदेदार के मार्गदर्शन में पहला होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज शुरू किया गया। यह 1920 तक अपने अस्तित्व में रहा। फिर वर्ष 1921 में डॉ. बीएस टंडन के कुशल नेतृत्व में नेशनल होम्योपैथी चिकित्सा महाविद्यालय एवं चिकित्सालय की स्थापना की गई। तत्पश्चात वर्ष 1912 में शुरू किए गए मेडिकल कालेज का विलय भी इसी में कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 1938 में सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत इसे रजिस्टर कर लिया गया।

अमेरिका के प्रख्यात होम्योपैथिक चिकित्सक व होम्योपैथिक पुस्तकों के लेखक डॉ. जेटी केंट के साक्षात शिष्य रहे व शिकागो से एमडी डिग्री प्राप्त डॉ. जेसी दास इस महाविद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य हुए। यहां 1940 तक दो वर्षीय बैचलर अॉफ होम्योपैथिक मेडिसिन(एचएमबी)स्नातक पाठ्यक्रम चलाया जाता रहा। फिर 1949 में इसे उच्चीकृत करके तीन वर्षीय पाठ्यक्रम में तब्दील कर दिया गया। तत्पश्चात 1950 से बैचलर अॉफ होम्योपैथिक मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएमएस) चार वर्षीय डिप्लोमा शुरू किया गया।1954 में होम्योपैथिक मेडिसिन बोर्ड से इसे संबद्ध कर दिया गया। 1957 में राज्य सरकार ने इस सोसायटी का अधिग्रहण कर लिया। 1958 में पांच वर्षीय ग्रेजुएशन इन होम्पोपैथिक मेडिसिन एंड सर्जरी (जीएचएमएस) पाठ्यक्रम शुरू हुआ। वर्ष 1961 में यह आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध कर दिया गया। 1973 में केंद्रीय होम्योपैथिक परिषद एक्ट पास होने के बाद यहां बीएचएमएस पाठ्यक्रम लागू किया गया। यह यहां एनईईटी के जरिये चयनित होकर छात्र अध्ययन करने आते हैं।

1997 से नेशनल होम्योपैथी कॉलेज की बदली तस्वीर

वर्ष 1997 में यह कॉलेज गोमतीनगर के विराजखंड में शिफ्ट कर दिया गया। वर्ष 2000 में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने इस नए भवन का उद्घाटन किया। इसी दौरान यहां होम्योपैथी दवाओं के जनक कहे जाने वाले डॉ. हनीमैन की मूर्ति लगाई गई। इसका भी उद्घाटन पूर्व पीएम ने ही किया था। अब यह चौराहा लखऊ में हनीमैन चौराहे के नाम से जाना जाता है। पूर्व में यह डॉ. बीएस टंडन के अमीनाबाद व लालबाग स्थित आवास के कमरे फिर विभिन्न जगहों पर किराये की बिल्डिंग से भी इसका संचालन होता रहा। संस्थान में रोजाना सुबह आठ से दो बजे तक 15 रोगों की ओपीडी चलाई जाती है। जिसमें सात से आठ हजार मरीजों का आना होता है।

मरीजों को भर्ती करने के लिए यहां 50 बेड हैं। यहां की फैकल्टी में 40 सदस्य हैं। 200 से अधिक छात्र-छात्राएं यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। खून जांच व एक्सरे सेवा भी संस्थान में उपलब्ध है। समस्त जांच व दवाएं महज एक रुपये में उपलब्ध हैं। अन्य विशेषताएं वर्ष 2019 से यहां डॉक्टर अॉफ होम्योपैथी (एमडी)की पढ़ाई शुरू की गई है। जिसके लिए 18 सीटें हैं। इससे पहले से चल रहे बीएचएमस के लिए 125 सीटें हैं। यहां अब योग वेलनेस सेंटर चलाया जा रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग स्वस्थ होने का रोजाना मंत्र प्राप्त कर रहे हैं और योगाभ्यास कर रहे हैं।

इतना ही नहीं अब यहां एलोपैथी की तर्ज पर फॉर्मेकोलॉजी विजिलेंस सेंटर की अनुमति भी मिल चुकी है, जिसमें दवाओं के साइड इफेक्ट के कारण, प्रभाव व रोकथाम का अध्ययन किया जाएगा। पहला होम्यौपैथी गार्डन राजधानी में हैनीमैन चौराहा से थोड़ी ही दूर पर पांच एकड़ भूमि में बन रहा पहला होम्योपैथिक गार्डन विशेष आकर्षण का केंद्र है। यहां समस्त प्रकार के औषधीय पौधे लगाए जा रहे हैं, जिनसे होम्योपैथी दवाओं का निर्माण किया जाएगा। साथ ही पर्यटकों को भी आकर्षित करेगा। यह शहर की नई पहचान बनकर उभरेगा।

डॉक्टरोंं का व्यक्तिगत अनुभव


वर्ष 1974 से होम्योपैथिक प्रैक्टिस कर रहे नेशनल होम्योपैथिक कॉलेज के पूर्व निदेशक व यूपी होम्योपैथी मेडिसिन बोर्ड के मौजूदा चेयरमैन डॉ बीएन सिंह कहते हैं कि होम्योपैथी चिकित्सा के क्षेत्र में लखनऊ अब बहुत आगे निकल चुका है। इस कॉलेज ने नामी-गिरामी वैज्ञानिक व डॉक्टर दिए हैं। पहले होम्योपैथिक चिकित्सा पर उतना भरोसा लोगों का नहीं था। अब सभी जगह से निराश होने वाले रोगी होम्योपैथी की शरण में हैं। वह कहते हैं कि मॉडर्न साइंस के दौर में होम्योपैथिक चिकित्सा ने भी खुद को बेहद अपग्रेड किया है। हैनीमैन चौराहे के पास उनकी क्लीनिक में गंभीर व असाध्य बीमारियों तक के मरीज आते हैं। इसमें सामान्य वर्ग से लेकर रईश वर्ग तक के लोग शामिल हैं। समय कम होने की वजह से रोजाना 20-25 मरीज ही देख पाते हैं। दवाएं फायदा करने की वजह से दूर-दूर जनपदों व प्रदेशों से लोग उनके यहां आते हैं।

वहीं नेशनल होम्योपैथिक कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. शैलेन्द्र सिंह कहते हैं कि होम्योपैथी चिकित्सा अब आधुनिक एलोपैथी व आयुर्वेद से कदमताल कर रही है। होम्योपैथी में भी प्रयोगशाला, ओअबपीडी, इमरजेंसी सेवाएं, अत्याधुनिक जांच सेवाएं भी दी जाने लगी हैं। फॉरमैकोलॉजी विजिलेंस सेंटर भी जल्द खुलेगा। वह कहते हैं कि सबसे बड़ी बात यह है कि होम्यौपैथिक दवाएं बीमारियों को जड़ से खत्म करती हैंं। यह बेहद किफायती दर पर उपलब्ध हैं। पहले लोग कहते थे कि होम्योपैथिक दवाएं देर से असर करती हैं। अब ऐसा नहीं है। कई बीमारियों में यह एलोपैथी की तरह काम कर रही हैं। निराश व असहाय मरीजों का एक मात्र सहारा होम्यौपैथी ही है। स्किन से जुड़े रोगों, वायरल, फंगल, बैक्टीरियल व अन्य असाध्य रोगों में कारगर है।

नेशनल होम्योपैथिक कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. अरविंद कुमार गुप्ता कहते हैं  होम्योपैथी पर दिनों-दिन लोगों का विश्वास बढ़ रहा है। बगैर साइड इफेक्ट के यह दवाएं असर करती हैं। पाने में किफायती व खाने में आरामदायक है। इसका स्कोप 100 गुना बढ़ गया है। अब प्रदेश में दो नए मेडिकल कॉलेज खुलने के साथ कुल 11 कॉलेज हो गए हैं। इसमें से एक प्रॉसेज में है दूसरा निर्माणाधीन है। छात्र-छात्राओं की रुचि भी होम्योपैथी चिकित्सा में बढ़ी है। वह सभी इसमें अपना करियर बनाना चाहते हैं। लखनऊ में होम्योपैथी चिकित्सा का इतिहास 100 साल से अधिक पुराना हो चुका है। इससे समझा जा सकता है कि कितने पड़ावों के बाद आज यह मुकाम हासिल हुआ है। आज की होम्योपैथिक दवाएं विभिन्न रोगों में असरदार साबित हो रही हैं। त्वचा रोगों से लेकर सामान्य बीमारियों व असाध्य रोगों में होम्योपैथी अपना असर दिखा रही है। अब होम्योपैथी इमरजेंसी सेवाओं में भी कारगर हो रही है। आने वाले दिनों में लोगों का रुझान इसकी ओर और भी बढ़ेगा। डॉ. हैनीमैन जयंती के दिन को हम लोग विश्व होम्योपैथिक दिवस के रूप में मनाते हैं। उनसे हम सभी को प्रेरणा मिलती है।

केंद्रीय होम्योपैथिक परिषद के पूर्व सदस्य डॉ. अनुरुद्ध वर्मा कहते हैं जर्मनी के डॉ. हैनीमैन ने इसका आविष्कार किया। विभिन्न देशों से होती हुई यह चिकित्सा भारत पहुंची। आज निश्चित ही होम्योपैथी चिकित्सा प्रगति की राह पर है। फिर भी अभी इसके लिए सरकारी स्तर से बहुत कुछ करने की जरूरत है। भारत में होम्योपैथिक को आधिकारिक मान्यता 1951 में मिली। यह बेहद सस्ती, सरस, सुगम व असरदार चिकित्सा पद्धति है। 80 फीसद बीमारियों का उपचार होम्योपैथिक में संभव है। अॉपरेशन वाले रोगों जैसे मस्से, गुर्दे की पथरी, सिस्ट इत्यादी में यह बेहद कारगर है। इसके अलावा स्किन रोगों, संक्रामक रोगों खसरा, चिकनपॉक्स, मम्स समेत वायरल बीमारियों में लाभकारी व प्रभावकारी है। नशे छुड़ाने व जच्चा-बच्चा से जुड़ी समस्याओं में असरदार है।  

होम्योपैथी के 10 बड़े डॉक्टर 

1.डॉ. बीएन सिंह-नेशनल होम्योपैथी कॉलेज के पूर्व डायरेक्टर रहे। वर्तमान में यूपी होम्योपैथी मेडिसिन बोर्ड के चेयरमैन हैं।

2.डॉ. गिरीश गुप्ता-यह प्राइवेट प्रैक्टिशनर होने के बावजूद होम्योपैथी के क्षेत्र में काफी रिसर्च किए हैं। कपूरथला में क्लीनिक चलाते हैं।

3.डॉ. शेखर टंडन- जाने-माने प्राइवेट प्रैक्टिशनर हैं। निषादगंज व राजधानी के अन्य क्षेत्रों मेंं कई क्लीनिक है।

4.डॉ. सुभाष चंद्रा-मोहन होम्योपैथिक कॉलेज में लेक्चरर रहे हैं।लाल कुआं में अपनी क्लीनिक चलाते हैं।

5.डॉ. अनुरुद्ध वर्मा-केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंंधान परिषद के पूर्व सदस्य रहे हैं। इंदिरा नगर में अपनी क्लीनिक चलाते हैं।

6.डॉ. नरेश अरोड़ा-बहुत ही सीनियर होम्योपैथिक प्रैक्टिशनरों में से एक हैं। कैसरबाग में क्लीनिक है।

7.डॉ. जेपी सिंह- होम्योपैथी ड्रग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व अस्सिटेंट डायरेक्टर रहे हैं। जानकीपुरम में क्लीनिक है।

8. डॉ. शैलेन्द्र सिंह-नेशनल होम्योपैथिक कॉलेज में प्रोफेसर रहे हैं। कई रिसर्च पेपर में बेहतरीन योगदान दिया है। प्रयोगशाला में नित नये-नये प्रयोग करते रहते हैं।

9.डॉ. हेमलता वर्मा- नेशनल होम्योपैथी कॉलेज की छात्रा, प्राचार्य रही हैं। वर्तमान में प्रयागराज होम्योपैथिक कॉलज में सेवारत हैं।

10.डॉ. सुभाष चौधरी-नेशनल होम्योपैथिक कॉलेज के ही छात्र रहे हैं। वर्तमान में केंद्रीय होम्योपैथिक रिसर्च इंस्टीट्यूट कोलकाता में वैज्ञानिक(एसिस्टेंट प्रोफेसर) हैं।

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