यूपी डायरी: सेल्फी विद गड्ढा के बजाय सेल्फी विद अभिनेत्री

मंशा थी कि सरकार की पोल खोलने और जर्जर सड़कों की सच्चाई जनता से जनता को वाकिफ कराने के लिए सेल्फी विद गड्ढा अभियान चलाया जाए।

By Dharmendra PandeyEdited By: Publish:Mon, 15 Oct 2018 10:17 AM (IST) Updated:Mon, 15 Oct 2018 10:56 AM (IST)
यूपी डायरी: सेल्फी विद गड्ढा के बजाय सेल्फी विद अभिनेत्री
यूपी डायरी: सेल्फी विद गड्ढा के बजाय सेल्फी विद अभिनेत्री

लखनऊ। देश तथा प्रदेश में खुद को किसानों की पार्टी बताने वाले दल के कार्यकर्ता भी कमाल करते हैं। कहो उत्तर तो निकल जाते हैं पूरब की ओर। छोटे चौधरी की सुनते जरूर हैं पर करते हैं अपने मन की।

पार्टी का ढर्रा बदलने और नए संस्कार में ढालने के लिए छोटे चौधरी गुरुवार को नया फार्मूला लेकर आए। उनकी मंशा थी कि सरकार की पोल खोलने और जर्जर सड़कों की सच्चाई जनता से जनता को वाकिफ कराने के लिए सेल्फी विद गड्ढा अभियान चलाया जाए। यानी सड़क में जहां भी गड्ढा दिखे उसके साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया में चला दिया जाए। छोटे चौधरी ने कार्यकर्ताओं को इस मुहिम के बारे खूब विस्तार से समझाया भी लेकिन, वही ढाक के तीन पात।

हवाई अड्डे पर छोटे चौधरी को दिल्ली के लिए विदा करने कार्यकर्ता पहुंचे तो उनकी दी गई सारी सीख धरी रह गई। वहां उनकी नजर एक अभिनेत्री पर पड़ी तो उसके संग सेल्फी लेने की होड़ लग गई। नतीजा यह हुआ कि कार्यकर्ताओं ने अपनी फेसबुक को सेल्फी विद गड्ढा के बजाय सेल्फी विद अभिनेत्री से भर दिया।

जाति के खांचे में महापुरुष

जातीय सम्मेलनों पर भले अदालत की निगाहें टेढ़ी हों, लेकिन राजनीतिक दल इससे बाज नहीं आ रहे हैं। साइकिल वाली पार्टी भला पीछे क्यों रहती। सिने जगत से राजनीति में आए भगवा दल के शत्रु को न केवल अपने मंच पर बुलाया, बल्कि नौकरशाही से सियासत का सफर तय करने वाले पूर्व वजीर-ए-खजाना भी आमंत्रित किए गए। मौका था समग्र क्रांति के अगुआ जयप्रकाश नारायण की जयंती का। मुखिया ने समाजवादी किले में कायस्थ सभा का बैनर लगाकर शत्रु-यशवंत जैसों के जरिये जेपी को भी जाति के खांचे में बांट दिया। लोकतंत्र सेनानियों का कलेजा फटकर रह गया।

अकेले साइकिल वाले ही क्यों, भगवा पार्टी ने भी पिछड़ी जातियों का सिलसिलेवार सम्मेलन कराया था। वहां भी महापुरुषों को अपना बनाने की होड़ मची थी। सबसे ज्यादा टीस तब हुई जब कुर्मी समाज ने सरदार पटेल को अपना गौरव बताते हुए बैनर-पोस्टर और होर्डिग्स लगाई थी, लेकिन गुर्जर समाज का नंबर आया तो इन लोगों ने भी सरदार पटेल को गुर्जर समाज का बता दिया। गुर्जर समाज के एक एमएलसी ने तो दावा भी ठोका। लोग उलझन में हैं कि इन महापुरुषों को जाति के आईने में देखें या फिर सर्व समाज के।

झंडे का डंडा

पिछले दिनों अपने सरकारी घर में पिताजी के साथ पार्टी के झंडे बनाते दिखे सहयोगी पार्टी के मंत्री इन दिनों फिर अपने तेवरों को लेकर चर्चा में हैं। पहले भी कई मौकों पर सरकार के लिए असहज स्थिति उत्पन्न कर चुके नेताजी की नई मांग और चुनौती सूबे की सत्ता का सिरदर्द बन गई है। एससी-एसटी के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने का हवाला देकर वह पिछड़े वर्गो के लिए जहां दोगुने आरक्षण की मांग कर रहे हैं तो साथ ही कमल दल के पिछड़े वर्ग के नेताओं को मदारी का बंदर बताकर खुलेआम उपहास भी उड़ा रहे हैं।

यहां के लोगों को नाकाम बताकर चिढ़ाने और दिल्ली में बड़े नेताओं को साधने की उनकी कला ने सरकार के लिए भी गुड़ लगे हंसिये जैसी स्थिति कर दी है। बीस दिन बाद बड़ा ऐलान करने की उनकी मुनादी ने इस उलझन को और बढ़ा दिया है। अब विपक्षी नेता भी मजाक उड़ा रहे हैं कि मंत्री ने झंडा तो अपनी पार्टी के लिए बनाया था, लेकिन झंडे के डंडे शायद सरकार के लिए ही मंगाए थे।

पीएम बनने का आशीर्वाद

गुरु जी लोगों की खास बात होती है। मंच मिले तो यह कहना नहीं भूलते कि कम मगर खरी-खरी बोलूंगा, पर आदतन बोलते उतना ही हैं जितना कक्षा में। पिछले दिनों सपा कार्यालय के लोहिया सभागार में गुरुजन का सम्मान था। मंच मिला तो गुरु जी ने कहा हमारा असली सम्मान तो सपा सरकार में ही था। इसके संस्थापक शिक्षक जो ठहरे। सभागार में उनकी फोटो होगी। पलटकर देखा तो निराशा हाथ लगी। औरों की फोटो थी पर नेताजी की नहीं। खिसियाहट में बोले, हट गई। होनी तो यहीं चाहिए।

बैठे हुए लोग मुस्कुराए तो गुरु जी और झेंप गए। बात को संभालने के क्रम में खरी-खरी बोलने वाला वायदा भी भूल गए। बोले, अब तक प्रदेश में जो भी अच्छा हुआ है वह समाजवादी पार्टी ने किया है। मौजूदा सरकार तो पूरी तरह से कन्फ्यूज दिखती है। प्रदेश जैसी बेहतरी देश में भी हो इसलिए हम गुरुजन अब सपा मुखिया को प्रधानमंत्री से नीचे का आशीर्वाद नहीं दे सकते।

लागी छूटे न

लागी छूटे न अब तो सनम..। फिल्म 'काली टोपी लाल रुमाल' का यह गाना अकलियत का कल्याण करने वाले महकमे के एक आला अधिकारी पर एकदम फिट बैठता है। हालांकि उनकी यह लागी विभागाध्यक्ष के पद से है। यूं तो सरकार ने उन्हें इस महकमे का सीईओ बनाया है, लेकिन उनकी नजर निदेशालय के इस पद पर भी लगी रहती है। इससे पहले भी जब कल्याण से जुड़े दूसरे विभाग में विभागाध्यक्ष का पद खाली हुआ तो उन्होंने उस पर काबिज होने में देर नहीं की थी। इस बार अकलियत का कल्याण करने वाले विभाग में पद खाली हुआ तो उन्होंने इसे हथिया लिया। अब इस पद से उन्हें इतना मोह क्यों है यह तो वह खुद ही जानें। लेकिन इतना जरूर है कि उनके साथ के अफसर भी उनकी इस बेताबी को समझ नहीं पा रहे हैं, क्योंकि यह पद जूनियर अधिकारी के स्तर का है। 

chat bot
आपका साथी