काकोरी कांड की 93 वीं वर्षगांठ: मिट गया जब मिटने वाला, फिर सलाम आया तो क्या..

मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन के साथ काकोरी में हुआ था ट्रेन लूटकांड। राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने दिया घटना को अंजाम। पहले रोशनुद्दौला कचहरी फिर ¨रक थिएटर में दो चरणों में चला था मुकदमा।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 08 Aug 2018 01:01 PM (IST) Updated:Wed, 08 Aug 2018 03:10 PM (IST)
काकोरी कांड की 93 वीं वर्षगांठ: मिट गया जब मिटने वाला, फिर सलाम आया तो क्या..
काकोरी कांड की 93 वीं वर्षगांठ: मिट गया जब मिटने वाला, फिर सलाम आया तो क्या..

लखनऊ[मुहम्मद हैदर]। मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या। दिल की बर्बादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या।। ¨हदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के बाहर सक्रिय क्रांतिकारी काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल के फांसी घर से बाहर निकालने की योजना बना रहे थे। तब बिस्मिल ने अपना अंतिम संदेश इस प्रेम गीत के रूप में उन क्रांतिकारियों के दल को भेजा, जो बाद में मजिस्ट्रेट की अनुमति से उस समय के समाचार पत्रों में छपा था। जब देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी ने मुंबई में अ¨हसा के साथ अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी, ठीक उसी दिन नौ अगस्त 1925 को लखनऊ से चंद किमी की दूरी पर अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ी ¨हसात्मक आंदोलन की नींव रखी जा रही थी। राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में कई क्रांतिकारियों ने मिलकर सरकारी खजाने से लदी ट्रेन को लूट लिया। जिसे बाद में काकोरी ट्रेन कांड का नाम दिया गया। खजाना लूटने से अंग्रेजी सरकार को बहुत बड़ा झटका लगा था। इसलिए सरकार ने उस कांड में शामिल क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए अपनी सारी शक्ति झोंक दी थी। कांड में शामिल चंद्र शेखर आजाद फरार हो चुके थे, लेकिन अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया गया। दिसंबर 1925 से अगस्त 1927 तक लखनऊ के रोशनुद्दौला कचहरी फिर बाद में ¨रक थियेटर (वर्तमान में जीपीओ पार्क) में यह मुकदमा दो चरणों में चला। काकोरी षडयंत्र केस और पूरक केस। इस मुकदमे में एक खास बात यह थी कि इसमें वह एक्शन भी शामिल कर लिए गये जिनका कोकारी कांड से कोई संबंध नहीं था। जैसे 25 दिसंबर 1924 को पीलीभीत जिले के बमरौला गांव में, फिर नौ मार्च 1925 को बिचुरी गांव में और 24 मई 1925 को प्रतापगढ़ जिले के द्वारकापुर गांव में किया गया एक्शन। नौ अगस्त को काकोरी कांड की 93वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। होंगे पैदा सैकड़ों इनके रुधिर की धार से.. :

19 दिसंबर 1927 को जाम-ए-शहादत पीने से तीन दिन पहले 16 दिसंबर को काकोरी कांड में अहम भूमिका निभाने वाले अशफाक उल्ला खां ने वतन के नाम अपना पैगाम लिखा था..मैं ¨हदुस्तान की ऐसी आजादी का ख्वाहिशमंद था जिसमें गरीब खुशी और आराम से रहते और सब बराबर होते। खुदा मेरे बाद वह दिन जल्द लाए, जबकि छतर मंजिल लखनऊ में अब्दुल्ला मिस्त्री और धनिया किसान भी मिस्टर खलीकुज्जमां, जगत नारायण और नवाब महमूदाबाद के बराबर कुर्सी में बैठे नजर आएं।

मरते बिस्मिल, रोशन, लहरी, अशफाक अत्याचार से।

होंगे पैदा सैकड़ों इनके रुधिर की धार से।। सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा.. :

काका री कांड का मुकदमा चलने के दौरान जेलों में बंद सभी क्रांतिकारी एक साथ रहते और एक ही गीत गाते थे। वह क्रांतिकारी गीतों को ओजस्वी स्वरों में गाकर अपना मनोरंजन करते रहते थे, जिनमें से एक गीत यह है..।

वतन की आबरू को पास देखें कौन रखता है।

सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा।

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज।

न जाने बाद मुरदन मैं कहां और तू कहां होगा।।

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।

वतन पर मरने वालों का यहीं बाकी निशां होगा।।

इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज देखेंगे।

जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा।। किसको मिली सजा :

- राम प्रसाद बिस्मिल, फांसी

- अशफाक उल्लाह खां, फांसी

- रोशन सिंह, फांसी

- राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, फांसी

- चंद्रशेखर आजाद, फरार घोषित

(अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में पुलिस संघर्ष में बलिदान)

- शचींद्र नाथ सान्याल, आजन्म कैद

- योगेश चंद्र चटर्जी, आजन्म कैद

- गोविंद चरण कर, आजन्म कैद

- शचींद्र नाथ बक्शी, आजन्म कैद

- मुकुंदी लाल गुप्त, आजन्म कैद

- मन्मथ नाथ गुप्त, 14 वर्ष कैद

- विष्णु शरण दुबलिश, 10 वर्ष

- सुरेश चंद्र भट्टाचार्य, 10 वर्ष

- राम कृष्ण खत्री, 10 वर्ष

- राजकुमार सिन्हा, 10 वर्ष

- प्रेम कृष्णा खन्ना, पांच वर्ष

- भूपेंद्र नाथ सान्याल, पांच वर्ष

- राम दुलारे त्रिवेदी, पांच वर्ष

- प्रणवेश कुमार चटर्जी, चार वर्ष

- राम नाथ पांडे, तीन वर्ष

- बनवारी लाल, दो वर्ष इन्होंने की थी निश्शुल्क पैरवी :

कांड में पकड़े गए क्रांतिकारियों को बचाने के लिए कई वकीलों ने निश्शुल्क पैरवी की। इसमें बैरिस्टर बीके चौधरी, पंडित गोविंद वल्लभ पंत, चंद्र भानु गुप्त, मोहन लाल सक्सेना और केएस हजेला आदि नाम शामिल हैं।

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