पुरस्कार की चाहत रखने वाले शिक्षकों को किताबों के नाम तक नहीं पता

प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस पर पांच सितंबर को बेसिक और माध्यमिक शिक्षा से जुड़े चुनिंदा अध्यापकों को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति और राज्य अध्यापक पुरस्कार से नवाजा जाता है।

By amal chowdhuryEdited By: Publish:Mon, 19 Jun 2017 03:31 PM (IST) Updated:Mon, 19 Jun 2017 03:32 PM (IST)
पुरस्कार की चाहत रखने वाले शिक्षकों को किताबों के नाम तक नहीं पता
पुरस्कार की चाहत रखने वाले शिक्षकों को किताबों के नाम तक नहीं पता

लखनऊ (राजीव दीक्षित)। नजर है राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कारों पर लेकिन, गुरु जी जिस किताब से बच्चों को पढ़ाते आए हैं, उसका नाम तक नहीं जानते। राष्ट्रपति और राज्य अध्यापक पुरस्कारों के लिए जिलों से संस्तुत किए गए परिषदीय विद्यालयों के ऐसे ही कुछ शिक्षकों से बीते दिनों जब इंटरव्यू बोर्ड का साक्षात्कार हुआ तो बोर्ड के अध्यक्ष व सदस्य हक्के-बक्के रह गए।

प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस पर पांच सितंबर को बेसिक और माध्यमिक शिक्षा से जुड़े चुनिंदा अध्यापकों को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति और राज्य अध्यापक पुरस्कार से नवाजा जाता है। बेसिक शिक्षा के लिए दिए जाने वाले पुरस्कारों के लिए जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के प्राचार्य की अध्यक्षता में गठित समिति जिले से कुछ चुने हुए अध्यापकों के नाम की सिफारिश बेसिक शिक्षा विभाग को करती है।

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी इस समिति के सदस्य-सचिव होते हैं। पुरस्कार के लिए अंतिम रूप से शिक्षकों के नाम केंद्र और राज्य सरकार को संस्तुत करने से पहले एक इंटरव्यू बोर्ड शिक्षकों से साक्षात्कार करता है। बीती 12 से 14 जून तक बेसिक शिक्षा निदेशक के कार्यालय में जब जिला स्तरीय समितियों द्वारा संस्तुत शिक्षकों के साक्षात्कार हुए तो कई ऐसे मौके आए जब इंटरव्यू बोर्ड हतप्रभ रह गया।

इंटरव्यू के दौरान कुछ शिक्षक पाठ्यपुस्तकों के पहले पांच अध्याय नहीं बता पाए। परिषदीय विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली किताबों में शुरुआत में लर्निंग इंडीकेटर्स का जिक्र होता है। इसमें बताया जाता है कि किसी कक्षा में एक निश्चित समयावधि तक बच्चों को पढ़ाने के बाद उन्हें क्या आना चाहिए। इंटरव्यू के लिए आए कई शिक्षकों से जब लर्निंग इंडीकेटर्स के बारे में पूछा गया तो वे शून्य में ताकने लगे।

एक शिक्षक से जब उनके स्कूल के बच्चों की संख्या और सभी शिक्षकों को मिलने वाले कुल वेतन के आधार पर प्रति बच्चा खर्च बताने को कहा गया तो कागज-कलम लेकर काफी देर तक मशक्कत करने के बाद उन्होंने इसमें असमर्थता जताई। एक अन्य महिला शिक्षक से जब यही गणित लगाने के लिए कहा गया तो उन्होंने बड़े धड़ाके से बोर्ड के सदस्यों से कहा कि मैं तो उर्दू पढ़ाती हूं, गणित से मेरा क्या लेना-देना।

कई शिक्षकों से साक्षात्कार के दौरान यह भी सवाल हुआ कि आप स्वयं को इन पुरस्कारों के लिए क्यों योग्य समझते हैं? ज्यादातर शिक्षकों का जवाब था कि सर, समय से स्कूल आता हूं और बच्चों को पढ़ाने में लगा रहता हूं। इंटरव्यू देकर कमरे से बाहर निकलने वाले शिक्षक खुद ही एक-दूसरे से अपने अनुभव साझा कर रहे थे।

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बजट 41 हजार करोड़: यह तस्वीर है सूबे में बेसिक शिक्षा की बदहाली की जिसके लिए सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष में 41 हजार करोड़ का बजट आवंटित किया था। इस बजट में तकरीबन 24 हजार करोड़ रुपये शिक्षकों के वेतन पर खर्च किए गए। बहरहाल इंटरव्यू के इस कड़वे अनुभव के बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने राष्ट्रपति और राज्य अध्यापक पुरस्कारों के लिए शिक्षकों के चयन के तरीकों में बदलाव के बारे में अब शिद्दत से सोचना शुरू कर दिया है।

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