कारगिल विजय दिवस:जब दुश्मन की फायरिंग के बीच रणभूमि में पहुंचे थे प्रधानमंत्री Lucknow News

शहर के जांबाज कर्नल कौशिक ने खतरे के बीच प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज को पहुंचाया था रणभूमि में।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Fri, 19 Jul 2019 01:50 PM (IST) Updated:Mon, 22 Jul 2019 06:17 PM (IST)
कारगिल विजय दिवस:जब दुश्मन की फायरिंग के बीच रणभूमि में पहुंचे थे प्रधानमंत्री Lucknow News
कारगिल विजय दिवस:जब दुश्मन की फायरिंग के बीच रणभूमि में पहुंचे थे प्रधानमंत्री Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। दुनिया की सबसे ऊंचे रणक्षेत्र में लड़ा गया कारगिल युद्ध को जीतने में जांबाजों के पराक्रम का लोहा दुनिया ने माना। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज भी जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए 13 जून 1999 को खुद रणभूमि में आ पहुंचे। ऐसे में उनको निशाना बनाने के लिए पाकिस्तान की ओर से जमकर फायरिंग हुई। इसके बावजूद प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को शहर के जांबाज कर्नल जीपीएस कौशिक ने रणभूमि के उस हिस्से तक पहुंचाया जहां से युद्ध की पूरी प्लानिंग की गई। 

कर्नल कौशिक ने कारगिल युद्ध के दौरान कुल 3500 ऑपरेशनों को सफलता से अंजाम दिया। जवानों को ऊंची चोटियों तक चीता हेलीकॉप्टर से पहुंचाया। आयुध और रसद की आपूर्ति बहाल रखने में अहम भूमिका निभाई। उनकी आर्मी एविएशन यूनिट को इस जांबाजी के लिए 30 से ज्यादा वीरता पदक मिले। 

कर्नल कौशिक बताते हैं कि कारगिल में मई 1999 के शुरुआती दिनों से ही कुछ गड़बड़ी की बात सामने आ रही थी। कारगिल में उस समय आर्मी एविएशन की 33 रेकी एंड ऑब्जर्वेशन यूनिट तैनात थी जिसकी कमान मैं कर रहा था। जिस चीता हेलीकॉप्टर से मैने पूरा ऑपरेशन किया वह दुनिया का सबसे अच्छा हेलीकॉप्टर है। इससे 21 हजार फीट की ऊंचाई तक जवानों को पहुंचाया जा सका। घायलों और शहीदों को नीचे लाया गया। पाकिस्तान की ओर से याल्डोर नाले के पास हेलीकॉप्टर पर भारी फायरिंग हुई। पाकिस्तानी केमिकल वॉरफेयर की तैयारी में थे। उन्होंने 27 मई को दो मिग 21 विमानों को एयर टू सरफेस मिसाइल से मार गिराया था। जब उनके बंकर पर कब्जा किया गए तो उनके पास 12.7 एमएम मशीनगन, 81 एमएम मोर्टार के अलावा भारी पैमाने पर मास्क मिले। जिनका उपयोग केमिकल वॉरफेयर के समय किया जाता है। 

जब लखनऊ पहुंचे सीनेट 

कर्नल कौशिक बताते हैं कि पाकिस्तान जब जंग हार रहा था तो वह अमेरिका के पास गया और कहा कि भारतीय सेना ने हमारी सरजमीं पर कब्जा कर लिया है। इसकी पड़ताल के लिए अमेरिका ने अपने सीनेट डॉन बाउंसकी को भेजा। मेरे साथ हेलीकॉप्टर से उन्होंने कारगिल में करीब 100 किलोमीटर तक रेकी की। उन्होंने देखा कि पाकिस्तानी सेना सात से दस किलोमीटर भारतीय सीमा के भीतर प्रवेश कर गई है। इसकी रिपोर्ट उन्होंने अमेरिका के सीनेट में सौंपी, जिससे सच्चाई का पता पूरी दुनिया को लगा। 

तोलोलिंग जीतना था टर्निंग प्वाइंट

कर्नल कौशिक के मुताबिक जोजिला पास नेशनल हाइवे के ऊपर वाली पोस्ट पाकिस्तान के कब्जे में आ चुकी थी। जोजिला हाइवे के जरिए जहां श्रीनगर से कारगिल तक सेना का मूवमेंट किया जाना था, वहीं लेह में मौजूद जवानों के लिए मई से जुलाई तक ही रसद और हथियार पहुंचाए जा सकते थे। पाकिस्तान की प्लानिंग थी कि श्रीनगर से भारतीय सेना को न आने दे और लेह में बिना रसद के भूखे रहने पर भारतीय जवानों पर हमला किया जा सके। पाकिस्तान की ओर से भारी फायरिंग हुई। इसके बीच रात दिन भारतीय जवानों ने सड़क से बर्फ को हटाने का काम जारी रखा। एक जून को यह हाइवे खुल गया और श्रीनगर से सेना का मूवमेंट शुरू हो गया। सेना की बोफोर्स तोप अब जवानों के पास आ चुकी थी। दो राज रिफ की बटालियन को दुश्मनों के करीब तक पहुंचाने में सफलता मिली। इस बटालियन ने 13 जून 1999 को द्रास सेक्टर की तोलोलिंग पहाड़ी पर अपना कब्जा जमाया। बस यहीं युद्ध का टर्निंग प्वाइंट था। इसके बाद तीन जुलाई की रात टाइगर हिल और सात जुलाई को भारतीय सेना ने प्वाइंट 8475 पर विजय प्राप्त की। 

एक युद्ध में दो भाई 

शायद यह पहला मौका होगा जब एक ही शहर के रहने वाले दो सगे भाई एक ही युद्ध में हिस्सा ले रहे हों। सेना की एविएशन कोर से जहां कर्नल जीपीएस कौशिक थे, तो वायुसेना की एक स्क्वाड्रन के पैरा कमांडों को लेकर उनके भाई स्क्वाड्रन लीडर एसपीएस कौशिक कारगिल पहुंचे। दोनो की मुलाकात कुछ देर के लिए हुई।

पिता भी थे जांबाज 

कर्नल कौशिक के पिता आरकेएस कौशिक वायुसेना में 1943 में शामिल हुए थे। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा था। आजादी के बाद कश्मीर में हुए कबाइली हमले के बाद भारतीय सेना के जवानों को लेकर श्रीनगर की एयर फील्ड पर 26 अक्टूबर 1947 को जो पहला नगोटा विमान उतरा था, उसमें उनके पिता भी थे। वायुसेना ने उनकी बहादुरी के कारण बाद में उन्हें ऑनरी कमीशन प्रदान की थी। इसके बाद उन्होंने 1965 और 1971 युद्ध में भी हिस्सा लिया। 

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