ठीक हो रहा है सारस T-7, पर उड़ान नहीं भर सकेगा

शाहजहांपुर से घायल अवस्था में चिडिय़ाघर लाया गया था सारस। चिडिय़ाघर के उप निदेशक डा. उत्कर्ष शुक्ला ने बताया कि यह सारस रूस से उड़ा था। उसके दायें पैर में टैग लगा था।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Mon, 29 Oct 2018 10:50 AM (IST) Updated:Mon, 29 Oct 2018 10:50 AM (IST)
ठीक हो रहा है सारस T-7, पर उड़ान नहीं भर सकेगा
ठीक हो रहा है सारस T-7, पर उड़ान नहीं भर सकेगा

लखनऊ, (जेएनएन)। शाहजहांपुर से घायल अवस्था में लखनऊ चिडिय़ाघर लाए गए डोमिसाइल क्रेन (सारस) में अब सुधार दिख रहा है, लेकिन अब शायद वह उड़ नहीं पाएगा। घायल होने के दौरान उसके पंख बुरी तरह से खराब हो गए थे और पंख की हड्डी भी क्रेक हो गई है। चिकित्सक फिर भी एक उम्मीद रखे हैं कि शायद पंख को ठीक किया जा सके, जिससे वह फिर से उड़ान भर सके।

नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान लखनऊ के उप निदेशक  डा. उत्कर्ष शुक्ला ने बताया कि सारस के बायें पंख की हड्डी फैक्चर है। हड्डी के बाहर निकल आने से घाव बन गया है। इलाज किया जा रहा है, कोशिश है कि यह ठीक होकर अपने परिवार से मिल सके। उसके इलाज के लिए आइवीआरआइ, बरेली, बीएनएचएस, मुंबई तथा अन्य संस्थानों से भी सम्पर्क किया जा रहा है।

नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान लखनऊ के निदेशक आरके सिंह ने बताया कि पचास से साठ दिन की यह फीमेल सारस झुंड के साथ गुजरात की तरफ जा रहा था। यह सारस झुंड के साथ रूस से उड़ा था। घायल सारस के दायें पैर में टैग लगा लगा था और उसे टी-7 नाम दिया गया है। इसकी टैगिंग रूस के ओनेक्सी जिले में 30 जुलाई को की गयी है। यह जानकारी भी क्रेन वर्किंग ग्रुप ऑफ यूरेसिया के निदेशक इलना लिसिनको रूस की तरफ से वन विभाग को दी गई थी।

इस सारस को एक हजार क्रेन प्रोजेक्ट के अन्तर्गत रखा गया था। 30 जुलाई को इसकी उम्र 55 दिन की थी और यह अपने प्रथम प्रवासीय यात्रा पर अपने संपूर्ण परिवार एवं पूरे ग्रुप के सदस्यों के साथ निकली थी। उसने 26000 से अधिक ऊंची हिमालय की चोटी को पार कर अरूणाचल प्रदेश से प्रवेश किया था। वह आसोम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड से होते हुए उत्तर प्रदेश से होकर गुजरात की ओर जा रही थी तभी शाहजहांपुर के अल्लाहगंज में घायल हो गई थी। इसे लखनऊ चिडिय़ाघर लाया गया था। इसके अन्य सदस्य गुजरात पहुंच चुके हैं। पूरा ग्रुप करीब पांच हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर पश्चिम की ओर गंगा के मैदान से होकर जा रहा था तभी 15 अक्टूबर को इस पक्षी से संपर्क टूट गया था।

हर वर्ष भारत आते हैं

प्रतिवर्ष प्रवासी पक्षी अधिक ठंड से  बचने के लिए और भोजन की तलाश में हजारों किलोमीटर की यात्रा कर भारत तथा अन्य गर्म स्थानों पर आते है और पूरी सर्दी यहां रहते हैं। फरवरी में अपनी वापसी यात्रा करते हैं। यह पक्षियों का प्रवास सदियों से चला आ रहा है। चिडिय़ाघर के उप निदेशक डा. उत्कर्ष शुक्ला कहते हैं कि प्रवासी पक्षी किस तरह दिशा तय करते हैं व इतनी लम्बी यात्राओं को कैसे पूरा करते हैं? यह बहुत ही रहस्यमय व दिलचस्प है तथा आज भी इसमें वैज्ञानिक शोध जारी हैं। यह पक्षी भी इसी शोध का हिस्सा है जो कि इस समय प्राणि उद्यान में है।

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