Ayodhya Ram Mandir News: रामलला के गर्भगृह में प्रतिष्ठित होंगी दिग्पालों के अस्त्रों से सज्जित शिलाएं

वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से ये सभी शिलाएं मंदिर को दीर्घकालिक बनाने में सहायक होंगी। इन दिनाें राजस्थान में शिलाएं तैयार की जा रही हैं। कुल दस शिलाएं गढ़ी जा रही हैं। इन सभी शिलाओं पर दिशाओं के अनुरूप रक्षक देवता के अस्त्र उत्कीर्ण किए जा रहे हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Fri, 16 Apr 2021 08:35 AM (IST) Updated:Fri, 16 Apr 2021 08:35 AM (IST)
Ayodhya Ram Mandir News: रामलला के गर्भगृह में प्रतिष्ठित होंगी दिग्पालों के अस्त्रों से सज्जित शिलाएं
शिलाओं पर अंकित होंगे सभी दस दिशाओं के देवताओं के अस्त्र।

अयोध्या, [प्रवीण तिवारी]। राम मंदिर के गर्भगृह में सभी दस दिशाओं के अलग-अलग रक्षक देवताओं का भी वास होगा। विधिवित पूजन अर्चना के साथ देवताओं के आयुध (अस्त्र) से युक्त शिलाएं गर्भगृह में प्रतिष्ठित की जाएंगी। वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से ये सभी शिलाएं मंदिर को दीर्घकालिक बनाने में सहायक होंगी। इन दिनाें राजस्थान में शिलाएं तैयार की जा रही हैं। कुल दस शिलाएं गढ़ी जा रही हैं। इन सभी शिलाओं पर दिशाओं के अनुरूप रक्षक देवता के अस्त्र उत्कीर्ण किए जा रहे हैं। इन्हें मई माह में गर्भगृह में स्थापित करने की योजना है। इसी के बाद गर्भगृह में इंजीनियर्ड मैटीरियल फिलिंग का कार्य शुरू हो सकेगा। अभी तकरीबन ढाई हजार वर्ग फीट (गर्भगृह) को छोड़कर नींव भराई का कार्य चल रहा है।

दस दिशाओं के देवता व जुड़े आयुध अस्त्र

दिशा

देवता 

आयुध

पूर्व 

 इंद्र 

वज्र

पूर्व दक्षिण (अग्नि कोण)

अग्नि 

अंकुश

दक्षिण 

यमराज

यमपाश

दक्षिण-पश्चिम ( नैऋत्य)

निऋति 

 खड्ग

पश्चिम 

वरुण 

वरुण पाश

पश्चिम-उत्तर ( वायव्य)

वायु   

 शूल
उत्तर  कुबेर   धनुषबाण
उत्तर पूर्व ( ईशान कोण)

शिव

 त्रिशूल
 अंतरिक्ष की ओर (शास्त्रीय नाम-ऊर्ध्व)-   ब्राह्म   गदा
 नीचे की ओर (शास्त्रीय नाम-अधो ) दिशा   अनंत भगवान   चक्र

दिग्पाल से इनकी पहचान : आचार्य संजय वैदिक बताते हैं कि प्रमुख रूप से चार दिशाएं पूरब, उत्तर, पश्चिम व दक्षिण हैं। चार विदिशाएं ईशान, अग्नि, नैऋत्य व वायव्य हैं। इसके अलावा ऊर्ध्व व अधो दिशाएं भी शास्त्रों में मानी गई हैं। इन दिशाओं के देवता ही दिग्पाल के नाम से जाने जाते हैं, जो निर्धारित दिशाओं से संसार की रक्षा करते हैं। वह बताते हैं कि जहां पर इन देवताओं को पूजित कर स्थापित किया जाता है वह भूमि, मंदिर व भवन दीर्घकाल तक सुरक्षित बना रहता है। 

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