सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, सरकार के कारनामों से मानवता शर्मसार, कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न
अखिलेश यादव ने कहा कि लाॅकडाउन को लेकर सपा ने सरकार को तमाम सुझाव दिए और लगातार जमीनी सच्चाई को उजागर किया लेकिन सरकार की टीम इलेवन अहंकार में डूबी रही।
लखनऊ, जेएनएन। समाजवादी पार्टी (SP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के कारनामों से मानवता शर्मसार हो रही है। समझ में नहीं आता कि कोई सरकार कैसे इतनी अमानवीय हो सकती है। औरैया सड़क हादसे में झारखंड के मृत श्रमिकों और घायलों को एक साथ खुले ट्रक से रवाना कर दिया गया। एक मृतक का पिता खेत मजदूर है वह अपने बेटे का शव लेने के लिए 19 हजार रुपये खर्चकर आने को मजबूर हुआ। भाजपा सरकार के रवैये से उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश भर के मजदूर आक्रोशित है। इससे सरकार की नीतियों और कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगा है।
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को जारी बयान में कहा कि लाॅकडाउन को लोकर समाजवादी पार्टी ने सरकार को तमाम तरह के सुझाव दिए। इस बीच लगातार जमीनी सच्चाई को उजागर किया, लेकिन राज्य सरकार की टीम इलेवन अहंकार में डूबी रही। अब हालात नियंत्रण के बाहर अराजकता तक पहुंच गए हैं। आखिर इस संकट की जिम्मेदारी किसकी है? उन्होंने कहा कि प्रदेश की सीमाओं को अचानक बंद करने के आदेश से स्थिति और गंभीर हो चली है। प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में प्रवासी मजदूर भूख प्यास से व्याकुल और चीख पुकार करते हुए पुलिस वालों से प्रदेश की सीमा में प्रवेश पाने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। जो लोग बीच प्रदेश में फंसे है उनके साथ पुलिस दुव्यवहार कर रही है। लॉकडाउन 4.0 के इस बद से बदतर हालात में भी प्रदेश सरकार सोच रही है कि ‘सब नियंत्रण में है’. अगर सरकार इसे व्यवस्था कहती है तो फिर उसे त्यागपत्र दे देना चाहिए. कहीं गौशाला तक में लोग रोक के रखे जा रहे हैं, तो कहीं सीमाओं पर बच्चे बिलख रहे हैं.
क्या इसी नये रूप-रंग की बात हुई थी.
अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार के अदूरदर्शी फैसलों के चलते गरीब और बेबस श्रमिकों की जिंदगी नर्क हो गई है। सरकार से आग्रह है कि वह संवेदनशील होने का परिचय दे। सरकारी अराजकता ने प्रदेश में हजारों बच्चों का बचपन छीना है और उन्हें भी पलायन की त्रासदी का अंग बना दिया है। सरकार की इससे ज्यादा अक्षमता का प्रमाण क्या मिल सकता है कि समय से निर्णय नहीं कर सकी। लाखों श्रमिक पैदल मारे-मारे पैदल चलने को मजबूर हुए। उनमें से सैकड़ों तो रास्ते में ही मर गये। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लाचार श्रमिकों को अपने ही गृह राज्य में उत्पीड़न और अपमानित होना पड़ रहा है। हमारी मांग है कि श्रमिक कामगार की किसी भी हादसे में मौत पर प्रत्येक के परिजन को दस लाख रुपये आर्थिक मदद तत्काल दें।