‘ग्रीन कैलेंडर’ की पहचान बने ये दुर्लभ परिंदे, यहां पर हैं पक्षियों की 400 प्रजातियां

भारतीय जैव विविधता संरक्षण समिति के ग्रीन कैलेंडर 2020 की पहचान बनेे सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के परिंदे।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Wed, 29 Jan 2020 03:44 PM (IST) Updated:Wed, 29 Jan 2020 03:44 PM (IST)
‘ग्रीन कैलेंडर’ की पहचान बने ये दुर्लभ परिंदे, यहां पर हैं पक्षियों की 400 प्रजातियां
‘ग्रीन कैलेंडर’ की पहचान बने ये दुर्लभ परिंदे, यहां पर हैं पक्षियों की 400 प्रजातियां

बलरामपुर [अमित श्रीवास्तव]। सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग दुर्लभ पक्षियों की खान है। यहां बॉर्न आउल, ओरियंटल व्हाइट रैम्पड वल्चर, वालक्रीपर, रेडकिंग वल्चर समेत विभिन्न प्रजातियां पर्यटकों के लिए कौतूहल रहती हैं। इनकी अठखेलियां कैमरे में कैद करने के लिए विदेशों से वन्य जीव प्रेमी आते हैं। ऐसी ही कुछ तस्वीरें भारतीय जैव विविधता संरक्षण समिति के ग्रीन कैलेंडर 2020 की पहचान बनी हैं। सोहेलवा के दो पक्षी ओरियंटल व्हाइट रैम्पड वल्चर और वालक्रीपर को पहली बार स्थान मिला है। दोनों पक्षियों की तस्वीर सोहेलवा जंगल में ही खींची गई थीं।

तराई और भांभर की हैं जैव विवधिताएं

एमएलके डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर और वन्यजीव एक्सपर्ट नागेंद्र सिंह का कहना है कि सोहेलवा में तराई व भांभर क्षेत्र की जैव विविधताएं एक साथ पाई जाती हैं। वनस्पतियों की अकूत संपदा यहां है। यह जंगल रॉयल बंगाल टाइगर का नेचुरल हैबीटैट भी है, जो देश-दुनिया के वन्यजीव प्रेमियों को आकर्षित करता है। सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग में कई ऐसे स्पॉट हैं जो बर्ड वाचिंग के लिए मुफीद हैं। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया से छात्रों का दल सोहेलवा जंगल के शैक्षिक भ्रमण पर आया था। डीएफओ रंजनीकांत मित्तल का कहना है कि गत वर्ष देश-दुनिया के तमाम पक्षी विशेषज्ञों ने यहां का सर्वे किया था। तब पता चला कि यहां पक्षियों की करीब 400 प्रजातियां हैं। इनमें कुछ ऐसी भी हैं, जो दुर्लभ हैं। भारतीय जैव विविधता संरक्षण समिति के ग्रीन कैलेंडर में उन्हें इसी कारण स्थान मिला है।

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