कम नहीं हो रहा बसपा में बिखराव का डर, सिमटता जनाधार व सिकुड़ते संगठन से बढ़ी बेचैनी

देश के विभिन्न राज्यों में बहुजन समाज पार्टी के सिमटते जनाधार और सिकुड़ते संगठन से उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं में बेचैनी बढ़ी है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Tue, 16 Jun 2020 12:50 AM (IST) Updated:Tue, 16 Jun 2020 07:18 AM (IST)
कम नहीं हो रहा बसपा में बिखराव का डर, सिमटता जनाधार व सिकुड़ते संगठन से बढ़ी बेचैनी
कम नहीं हो रहा बसपा में बिखराव का डर, सिमटता जनाधार व सिकुड़ते संगठन से बढ़ी बेचैनी

लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। मध्य प्रदेश और राजस्थान के बाद हरियाणा में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को लगे तगड़े झटके से संगठन में बिखराव का खौफ कम नहीं हो पा रहा है। देश के विभिन्न राज्यों में बहुजन समाज पार्टी के सिमटते जनाधार और सिकुड़ते संगठन से उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं में भी बेचैनी बढ़ी है। ऐसे में पार्टी के राष्ट्रीय स्वरूप को बनाए रखने की मुश्किलें और ज्यादा होंगी।

लोकसभा चुनाव के बाद से बहुजन समाज पार्टी को संभलकर खड़े हो पाने का मौका नहीं मिल पा रहा है। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का सिरदर्द समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के अलावा स्थानीय स्तर पर भीम आर्मी जैसे संगठन भी बने हैं। गठबंधन टूटने के बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव बहुजन समाज पार्टी के एक-एक करके प्रमुख नेताओं को साइकिल की सवारी कराने में लगे हैं। खासतौर से पूर्वांचल व बुंदेलखंड के कई बड़े नेता मायावती को कोसते हुए अखिलेश यादव के साथ हो लिए है।

बसपा के एक कोआर्डिनेटर का कहना है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की उत्तर प्रदेश में सक्रियता भी बसपाइयों की नींद उडाए है। बहुजन समाज पार्टी का ठोस वोट बैंक माने जाने वाले अनुसूचित वर्ग में भारतीय जनता पार्टी की पैठ बढ़ने के साथ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी उनमें जगह बनाने लगी है। बहुजन समाज पार्टी को सबसे अधिक खतरा भीम आर्मी की राजनीतिक विंग आजाद समाज पार्टी से है।

बहुजन समाज पार्टी में कभी मायावती के खास माने जाने वाले सुनील चितौड़ जैसे नेताओं का भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर से नजदीकी बनाए रखने को खतरे की घंटी बता रहे विधायक रणवीर राणा का कहना है कि अनुसूचित वर्ग के युवाओं की सोच बदल रही है। उनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली भी लुभाती है।

संगठनात्मक गतिविधियां ठंडी : कोरोना संक्रमण काल में भी भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस व समाजवादी पार्टी भी अपने कार्यकर्ताओं से डिजिटल माध्यमों के जरिए संपर्क व संवाद बनाए रखे हैं। राष्ट्रीय लोक दल, भारतीय समाज पार्टी सुहेलदेव और अपना दल जैसी स्थानीय पार्टी भी वर्चुअल संवाद के माध्यम से संगठनात्मक गतिविधियां जारी रखे हैं, लेकिन बहुजन समाज पार्टी में इस प्रकार की कोशिशें नहीं के बराबर दिखाई दे रही हैं। एक पूर्व कोआर्डिनेटर सूरजपाल का कहना है कि केवल ट्वीट करने से पार्टी नहीं चलेगी। आने वाले विधानसभा चुनाव तक बहुजन समाज पार्टी को बचाए रखना है तो पार्टी को पुराना ढर्रा बदलना ही होगा।

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