Shri Ram Mandir Ayodhya: कार्यशाला की खामोशी से बयां हो रही आने वाले दिनों की हलचल

Shri Ram Mandir Ayodhya मंदिर के आकार में वृद्धि और भूमिपूजन की तिथि घोषित होने के साथ श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की जिम्मेदारी में कई गुने का इजाफा।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Mon, 20 Jul 2020 08:57 PM (IST) Updated:Mon, 20 Jul 2020 08:57 PM (IST)
Shri Ram Mandir Ayodhya: कार्यशाला की खामोशी से बयां हो रही आने वाले दिनों की हलचल
Shri Ram Mandir Ayodhya: कार्यशाला की खामोशी से बयां हो रही आने वाले दिनों की हलचल

अयोध्या [रघुवरशरण]। Shri Ram Mandir Ayodhya: सोमवार को रामघाट स्थित रामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला में खामोशी छाई होती है। शिलाओं की सफाई करने वाले अमावस्या के दिन छुट्टी मनाते हैं। कार्यशाला के प्रभारी अन्नू भाई सोमपुरा मांगलिक कार्यक्रम के सिलसिले में अहमदाबाद गए हुए हैं। कार्यशाला की देखरेख करने वाले हनुमान भाई जरूर ड्यूटी पर डटे मिलते हैं। पहली नजर में यह परिदृश्य चौंकाता है, पर गौर करने पर माजरा समझ में आता है। 

वस्तुत: यह आने वाले दिनों में मंदिर निर्माण की तैयारियों से जुड़े तूफान के पूर्व की खामोशी है। शनिवार को प्रस्तावित मंदिर के आकार में वृद्धि के साथ भूमिपूजन की तारीख घोषित होने से श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की व्यस्तता में कई गुना का इजाफा हो गया है। ट्रस्ट को जहां भूमिपूजन के साथ मंदिर निर्माण शुरू कराने के होमवर्क को अंतिम स्पर्श देना है, वहीं आकार-प्रकार में वृद्धि के अनुरूप आवश्यक संसाधन जुटाने की चुनौती है। आकार में वृद्धि की घोषणा से पूर्व प्रस्तावित मंदिर 37 हजार पांच सौ वर्ग फीट में बनना था, पर अब इसका निर्माण 76 से 84 हजार वर्ग फीट में होना है और पूर्व निर्धारित ऊंचाई भी 128 फीट से बढ़कर 161 फीट हो गई है।

निर्माण में जहां पौने दो लाख घन फीट पत्थर प्रयुक्त होना था, वहीं आकार में वृद्धि के बाद तीन लाख घन फीट पत्थर प्रयुक्त होने का अनुमान है। पूर्व प्रस्तावित मंदिर दो तल का था और उसमें प्रत्येक तल पर 106 के हिसाब से 212 स्तंभ लगने थे, वहीं आकार वृद्धि की घोषणा के साथ यह मंदिर तीन तल का होगा तथा इसमें 318 स्तंभ लगेंगे। पूर्व प्रस्तावित मंदिर के हिसाब से शिलाओं की आधे से कुछ अधिक तराशी हो चुकी थी, पर आकार वृद्धि में घोषणा के साथ तराशी का बचा काम अब आधा नहीं, बल्कि बढ़कर दो तिहाई हो गया है। निर्धारित स्थल पर नींव भरने और शिलाओं की शिफ्टिंग का काम तो अभी पूरा का पूरा ही करना है।

अधिकाधिक शिल्पियों की खोज

राममंदिर के मुख्य शिल्पी सीके सोमपुरा से लेकर उनके पुत्र आशीष सोमपुरा की कोशिश जल्दी से जल्दी ऐसे ठेकेदार की तलाश करना है, जो बाकी बचे पत्थरों की तराशी तय समयावधि में सुनिश्चित कराए। इसके लिए अधिकाधिक शिल्पियों की जरूरत बताई जा रही है और सोमपुरा परिवार के संयोजन में ऐसे ठेकेदारों और शिल्पियों की खोज अंतिम दौर में है। हालांकि शुरुआत के कुछ दिन तक शिफ्टिंग का काम पूर्व में तराशी गई शिलाओं से चल सकता है।

खदानों से पत्थरों की निकासी का प्रयत्न

भूमिपूजन के साथ सबसे पहली जरूरत नींव के पत्थरों की होगी। कार्यशाला में नींव के कुछ पत्थर जरूर संरक्षित हैं, पर आकार में वृद्धि के साथ यह पत्थर पर्याप्त नहीं हैं। दूसरी तकनीकी रिपोर्ट के बाद मंदिर की नींव 10 से 15 फीट गहरी होने के संकेत के बाद यह पत्थर नाकाफी हो गए हैं और अब तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट राजस्थान के भरतपुर स्थित खदानों से पत्थरों की निकासी के प्रयास में है।

समतलीकरण का काम पूरा

70 एकड़ के रामजन्मभूमि परिसर के केंद्रीय क्षेत्र के रूप में स्थित उस तीन एकड़ क्षेत्र का समतलीकरण मई माह में ही पूर्ण कराया जा चुका है, जहां रामलला के स्थायी गर्भगृह सहित मुख्य मंदिर और कॉरीडोर की स्थापना की जानी है। नींव भरे जाने से पूर्व मिट्टी की जांच की प्रक्रिया भी पूरी कर ली है। इस बीच जहां मंदिर निर्माण के लिए चयनित निर्माण के क्षेत्र की प्रख्यात कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के प्रतिनिधि निर्माण शुरू होने से पूर्व तकनीकी दृष्टि से राई-रत्ती का मिलान कर चुके हैं, वहीं तराशे गए पत्थरों की सफाई भी दिल्ली की एक कंपनी की देख-रेख में निरंतर आगे बढ़ रही है।

शेष शिलाओं की तराशी मंदिर परिसर में कराने की योजना

मंदिर निर्माण के लिए शेष शिलाओं की तराशी रामजन्मभूमि परिसर में कराए जाने की योजना है। बीते तीन दशक से शिलाओं की तराशी रामजन्मभूमि से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर रामघाट स्थित न्यास कार्यशाला में चल रही थी। अब जबकि 70 एकड़ का अधिग्रहीत परिसर मंदिर निर्माण के लिए गठित ट्रस्ट श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को सौंपा जा चुका है, तब शिलाओं की तराशी अधिग्रहीत परिसर में ही किए जाने की तैयारी है। कार्यशाला की देखरेख करने वाले हनुमान भाई के अनुसार इससे तराशी गई शिलाओं को करीब पांच-सात किलोमीटर की दूरी तय कर यथास्थान ले जाए जाने की जहमत से मुक्ति मिलेगी।

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