चमगादड़ का मल देगा जैवविविधता की जानकारी, BSIP के वैज्ञानिकों ने क‍िया दावा-ये होगा फायदा

बीएसआईपी के वैज्ञानिकों ने किया शोध विश्व में पहली बार चमगादड़ के मल से जैवविविधता का लगाया पता।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Thu, 28 May 2020 11:56 AM (IST) Updated:Thu, 28 May 2020 11:56 AM (IST)
चमगादड़ का मल देगा जैवविविधता की जानकारी, BSIP के वैज्ञानिकों ने क‍िया दावा-ये होगा फायदा
चमगादड़ का मल देगा जैवविविधता की जानकारी, BSIP के वैज्ञानिकों ने क‍िया दावा-ये होगा फायदा

लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। चमगादड़ भले ही इन दिनों कोरोनावायरस के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। लेकिन बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआईपी ) के वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी भी स्थान की जैवविविधता का पता लगाने के लिए यह बेहद अहम साबित हो सकता है। इसके मल में मौजूद परागकण स्थल विशेष की पुराक्लाइमेट वह मौजूदा जैवविविधता के पन्ने खोल सकते हैं। बीएसआईपी की वैज्ञानिक डॉक्टर स्वाति त्रिपाठी एवं डॉक्टर साधन कुमार बसुमतारी बताते हैं कि चमगादड़ के मल यानी बेट गुआनों को बहुत अच्छे उर्वरक के रूप में तो जाना जाता ही है लेकिन इसकी मदद से यह पता लगाने में भी मदद मिलती है कि जहां से चमगादड़ का गुआनो लिया गया है वहां की जैव विविधता कैसी थी ।

डॉ. स्वाति ने मेघालय की गुफा में चमदड़ों के मल से यह जानने की कोशिश की कि वहां सैकड़ों साल पहले किस तरह के पेड़ पौधे थे। वह बताती हैं कि चमगादड़ का मल उर्वरक एवं ईंधन के रूप में काफी उपयोगी है। पूर्वोत्तर भारत, विशेष रूप से मेघालय समृद्ध जैव विविधता और कई प्राकृतिक गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां दुनिया की नौ सबसे लंबी गुफाओं में से आठ गुफाएं मौजूद हैं । लेकिन इस पूरे क्षेत्र में बहुत बारिश होती है जिसके चलते मिट्टी पर मौजूद परागकण बह जाते हैं ऐसे में यहां जैवविविधता का पता लगाना मुश्किल होता है लेकिन चमगादड़ों के मल से यह मुमकिन हो सका है। अतीत व मौजूदा भू -जलवायु की स्थिति और अद्वितीय जैव भौगोलिक इतिहास के कारण चमगादड़ों की समृद्ध जातियां मेघालय में बसी है। पिछले कुछ वर्षों से बीएसआईपी के वैज्ञानिक मेघालय में वर्तमान जैव विविधता व जलवायु के संबंध में पुरापारिस्थितिकी (पैलियोइकोलोजी) का पता लगाने के लिए शोध कर रहे हैं।

वर्ष 2018 में क्षेत्रीय अभियान के दौरान मेघालय की गारो पहाड़ियों में पिपुलबारी गुफा से चमगादड़ मल के जमाव का पता लगाया गया। यह अध्ययन विशेष रूप से चमगादड़- मल में मौजूद परागकण तथा फंगल (कवक ) बीजाणु की उपस्थिति पर आधारित था। अध्ययन में पाया गया कि अतीत को समझने के लिए मॉडर्न एनालॉग बनाने हेतु चमगादड़ का मल सर्वोत्तम और विश्वसनीय सब्सट्रेट साबित हो सकता है। डॉ.स्वाति ने बताया कि चमगादड़ के मल में जंगल में स्थित पेड़ों के परागकण प्रचुर मात्रा में मिले जो इन क्षेत्रों के घने जंगलों में चमगादड़ों की मौजूदगी बयां करते हैं। डॉ. बसुमतारी एवं डॉ. स्वाति का यह शोध जाने-माने "रिव्यू ऑफ पैलियोबॉटनी एवं पेलिनोलॉजी " जर्नल में प्रकाशित हुआ है। डॉ. बसुमतारी ने बताया कि चमगादड़ का जमा मल आयुनिर्धारण ( डेटिंग) एवं पराग विश्लेषण से पुरापारिस्थितिकी के पुनर्निर्माण में भी मदद मिल सकती है। दरअसल चमगादड़ द्वारा कीड़े -मकोड़े को खाने की वजह से इनके मल में पराग कणों के अलावा घास कीटाणु युक्त फंगल स्पोर्स भी मिलते हैं जिससे डेटिंग में मदद मिलती है। 

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