Sawan 2022: शत्रु पर विजय का प्रतीक माना जाता है बलरामपुर का रेणुकानाथ मंदिर, पांडवों ने की थी शिवलिंग की स्‍थापना

सदर ब्लाक के गिधरैय्या गांव स्थित रेणुकानाथ मंदिर का महात्म्य पांडवों के इतिहास से जुड़ा है। यहां के शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। उस समय इस मंदिर को शत्रु पर विजय के प्रतीक के रूप में माना गया था।

By Vrinda SrivastavaEdited By: Publish:Thu, 14 Jul 2022 09:38 AM (IST) Updated:Thu, 14 Jul 2022 09:38 AM (IST)
Sawan 2022: शत्रु पर विजय का प्रतीक माना जाता है बलरामपुर का रेणुकानाथ मंदिर, पांडवों ने की थी शिवलिंग की स्‍थापना
Sawan 2022: पांडवों ने की थी बलरामपुर के रेणुकानाथ मंदिर में शिवलिंग की स्‍थापना।

बलरामपुर, संवादसूत्र। जिले में औढरदानी भोलेशंकर के मंदिरों का अलौकिक महत्व है। आम दिनों में तो लोग इन मंदिरों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजन-अर्चन करते ही हैं, श्रावण मास में इसका महात्म्य और बढ़ जाता है। इस दिन श्रद्धालु शिवलिंग पर जलाभिषेक व भांग-धतूरा अर्पित कर विधि-विधान से शिव की आराधना करते हैं।

पांडवों ने की थी रेणुकानाथ मंदिर की स्थापना : सदर ब्लाक के गिधरैय्या गांव स्थित रेणुकानाथ मंदिर का महात्म्य पांडवों के इतिहास से जुड़ा है। यहां के शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। उस समय इस मंदिर को शत्रु पर विजय के प्रतीक के रूप में माना गया था। मंदिर के पुजारी विश्वनाथ गिरि के अनुसार, द्वापर युग के अंत में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम ने कीचक का वध किया, तो कौरवों को पता चला कि पांडवों ने श्रावस्ती के महाराज विराट के यहां शरण ले रखी है। 

महाभारत युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण की प्रेरणा पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर मंदिर का निर्माण कराया। तब इस मंदिर का नाम ‘रणहुआ’ मंदिर था। जो कालांतर में रेणुकानाथ मंदिर के नाम से विख्यात हुआ। करीब पांच सौ वर्ष पूर्व अंग्रेज शासनकाल में खुदाई के दौरान यहां शिवलिंग निकला था। ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से मंदिर बनवाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी।

अंग्रेजों के जमाने में बना था झारखंडी मंदिर : नगर स्थित झारखंडी शिव मंदिर अपने अलौकिक महत्व व इतिहास को समेटे है। पुजारी लालजी गिरि के मुताबिक, अंग्रेजों के जमाने में रेल पटरी बिछाई जा रही थी। सफाई के दौरान झाड़ियों के बीच में शिवलिंग मिला। स्थानीय लोग शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने लगे। राज परिवार ने यहां मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। अंग्रेजों से वार्ता के बाद रेल लाइन करीब 50 मीटर दूर बिछाई गई। रियासत ने मंदिर बनवाकर प्राण-प्रतिष्ठा कराई। झाड़ियों के बीच से निकलने के कारण इस मंदिर का नाम झारखंडी मंदिर पड़ा। इसी के नाम पर रेलवे स्टेशन का भी नामकरण हुआ।

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