संतों के निशाने पर राजनीतिक दल और फतवा, दिल्ली में तीन और चार नवंबर को धर्मादेश

धर्मादेश शब्द फतवों के विरोध में लाया गया है। संतों ने यह शब्द इसलिए चुना है ताकि वे अपने उद्देश्य को स्पष्ट कर सकें और उसके अनुपालन के लिए एक लंबी कतार खड़ी कर सकें।

By Ashish MishraEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 08:20 AM (IST) Updated:Mon, 24 Sep 2018 12:41 PM (IST)
संतों के निशाने पर राजनीतिक दल और फतवा, दिल्ली में तीन और चार नवंबर को धर्मादेश
संतों के निशाने पर राजनीतिक दल और फतवा, दिल्ली में तीन और चार नवंबर को धर्मादेश

लखनऊ [आनन्द राय]। मुस्लिम और इसाई धर्मगुरुओं के फतवों से क्षुब्ध संतों की सामूहिक गोलबंदी शुरू हो गई है। राष्ट्रवाद के मुद्दे पर हिंदू, सिख और बौद्ध समेत अनेक संप्रदायों को एकजुट करने के लिए रूपरेखा तय हो गई है। तीन और चार नवंबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में संतों ने धर्मादेश के लिए तैयारी शुरू कर दी है। देश भर से 127 संप्रदायों के करीब पांच हजार धर्माचार्य, महामंडलेश्वर, पीठाधीश्वर और महंत दिल्ली पहुंचेंगे। इसमें उत्तर प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण भागीदारी होगी।

धर्मादेश शब्द फतवों के विरोध में लाया गया है। संतों ने यह शब्द इसलिए चुना है ताकि वे अपने उद्देश्य को स्पष्ट कर सकें और उसके अनुपालन के लिए एक लंबी कतार खड़ी कर सकें। विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शन में यह पहल अखिल भारतीय संत समिति ने की है। समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती देशव्यापी दौरे पर हैं और संत समाज से लगातार संवाद कर रहे हैं। संतों की यह जुटान हिंदुत्व के एजेंडे को धार देगी।

स्वामी जीतेंद्रानंद कहते हैं कि 'कैराना उप चुनाव में देवबंद ने 38 फतवे जारी किये और दिल्ली व गोवा के चर्च से विभिन्न मसलों पर की गई प्रतिक्रिया ने संत समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। मठ, मंदिर और धर्माचार्य अपनी संस्कृति बचाने के लिए एकजुट होंगे। अक्टूबर-नवंबर की देश की तीन बड़ी घटनाओं पर संत समाज का फोकस होगा। वर्ष 1990 में अयोध्या में पुलिस की गोलियों से कारसेवक शहीद हुए,

1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों का सामूहिक नरसंहार और 1966 में दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन कर रहे गोरक्षकों पर गोलियां चलीं। तीन और चार नवंबर को दिल्ली में होने वाले धर्मादेश के उद्घाटन सत्र में इन शहीदों के लिए अलग-अलग श्रद्धांजलि सभा होगी। इस आयोजन के जरिये संत समिति सीधे तौर पर कांग्रेस और सपा पर हमलावर होगी क्योंकि इनकी ही सरकारो में गोलियां चली थीं।

गर्माएगा राम मंदिर का मुद्दा

जाहिर है कि अयोध्या के कारसेवकों को श्रद्धांजलि के साथ ही राम मंदिर का मुद्दा भी गर्माएगा। विहिप अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए मंथन में जुटा है। अभी हाल में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा कि राम मंदिर का निर्माण जल्द से जल्द होना चाहिए। राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है लेकिन, भाजपा के ज्यादातर नेता आम सहमति से मंदिर निर्माण की बात करते हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी कह चुके हैं कि राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए। यह संकेत मिल रहा है कि विहिप और संतों की ओर से राम मंदिर मुद्दे को लेकर कोई बड़ा अभियान शुरू हो सकता है।

संतों के इस सम्मेलन में धर्मांतरण और जनसंख्या विस्फोट पर भी बहस होनी है। सम्मेलन में ही संतों की ओर से एजेंडा स्पष्ट हो जाएगा। इसके पहले पांच अक्टूबर को दिल्ली में विहिप की ओर से एक बड़ी महत्वपूर्ण बैठक भी हो रही है। अभी हाल में लखनऊ आये विहिप के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव मिलिंद परांडे हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों को उभार दे गये हैं। स्वामी जीतेंद्रानंद कहते हैं कि हर हाल में राम मंदिर बनकर रहेगा।  

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