मंच पर बढ़ेगी 'संस्कृत' की शान, बहेगी काव्य की रसधार Lucknow News

उत्‍तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम् की ओर से पहली बार संस्‍कृत में आयोजित होगा समारोह।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Sun, 13 Oct 2019 08:37 AM (IST) Updated:Mon, 14 Oct 2019 08:09 AM (IST)
मंच पर बढ़ेगी 'संस्कृत' की शान, बहेगी काव्य की रसधार Lucknow News
मंच पर बढ़ेगी 'संस्कृत' की शान, बहेगी काव्य की रसधार Lucknow News

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। वाट्सएप यूनिवर्सिटी के दौर में बेरहमी से विघटित होती भाषा को सहेजने की बड़ी पहल उर्दू को जवां बनाए रखने वाली नवाबी नगरी ने की है। खासकर उस संस्कृत के लिए जिसे लिखना-पढ़ना छोड़ दें, कठिन बताकर नौजवान पीढ़ी लगभग भुला ही चुकी है। 

वहीं, संस्कृत न केवल पहली बार मंच की शान बनेगी बल्कि काव्य की रसधार में सराबोर होकर कानों में रस घोलेंगे उसके शब्द। अवसर भी खास होगा। महर्षि वाल्मीकि की जयंती, जब एक से बढ़कर एक विद्वान न केवल दुनिया में सबसे पहले जन्मी बल्कि कालखंड की कसौटी पर देव तुल्य भाषा का बखान करते दिखेंगे। पहली बार यह पहल की है उप्र संस्कृत संस्थानम् ने। दिन रविवार। स्थान होगा निरालानगर का जेसी गेस्ट हाउस जहां सजा मंच सुबह से संस्कृतमय हो जाएगा। वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच अनोखे कवि सम्मेलन की शुरुआत होगी। सुनाने वाले तय है लेकिन, सुनने वाले भी कुछ समङोंगे..? इस चिंता से इतर आयोजक उत्साहित हैं। यह कहकर कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी जरूर..। संस्थानम् के अध्यक्ष आचार्य वाचस्पति मिश्र कहते हैं, फर्क सिर्फ सोच का है क्योंकि संस्कृत हर भाषा से सरल है। जरूरत सामाजिक जागरूकता की है। 

भाषा के प्रति बढ़ा भरोसा: राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के आचार्य पवन कुमार दीक्षित का कहना है कि संस्कृत को लेकर अब युवाओं में दिलचस्पी बढ़ी है। आइपीएस डॉ. मीनाक्षी ने संस्कृत पढ़कर संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की। 

कुछ ऐसी होंगी कविताएं: ‘जीवने ते यदा यामिनीवागता दीपवत्स्नेवर्तिर्मया च्वालिता, वातवेगं निरुद्धा स्थिरा संस्थिता पालितं यदव्रतं संधृतम्’

अर्थ- हे मित्र, मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो तुमने मेरा सबकुछ छीन लिया। जब तुम्हारे जीवन में अंधेरा हुआ तो मैं दीपक की बाती बनकर जली। वायु वेग में स्थिर रही। अपना कहा हुआ निभाया, किंतु फिर भी तुमने मेरा सबकुछ क्यों छीन लिया। 

लोकगीत के रूप संस्कृत की कविता

‘कतुर्ं सकललोक कल्याणं रामो दशाननं हतवान्, संख्यो गायत मंगलगानं रामो दशाननं हतवान्। अनुपालयितुमसौ पित्रज्ञां सरलमना धृतिमान्, प्रीणयितुं मातरमाराध्यां मुदा वनं गतवान’ 

अर्थ- अच्छाई के प्रतीक श्रीराम सभी का कल्याण करते हैं। बुराई के प्रतीक रावण का वध किया तो हर ओर मंगलगीत गाए जाने लगे। हर ओर उल्लास का माहौल है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन किया।

मंचासीन होंगे 20 संस्कृत के विद्वान

प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र-शिमला

डॉ. रमाकांत शुक्ला-नई दिल्ली

डॉ. प्रशस्य मित्र शास्त्री-रायबरेली

प्रो. वागीस दिनकर-हापुड़

आचार्य लालमणि पांडेय- प्रयागराज

डॉ. केशव गुप्ता-कौशांबी

डॉ. कमला पांडेय-वाराणसी

डॉ. सुरेंद्र कुमार त्रिपाठी-कौशांबी

तुषा शर्मा-मेरठ

डॉ. अरविंद नारायण मिश्र-हरिद्वार

डॉ. अरविंद कुमार तिवारी-बागपत

डॉ. श्रेयांश द्विवेदी-गुड़गांव

प्रो. हरिदत्त शर्मा-प्रयागराज

प्रो. विशाल लाल गौड़-गाजियाबाद

प्रो. आजाद मिश्र-लखनऊ

प्रो. विजय कुमार कर्ण-लखनऊ

प्रो. ओम प्रकाश पांडेय-लखनऊ

प्रो. ब्रजेश कुमार शुक्ला-लखनऊ

प्रो. राम सुमेर यादव- लखनऊ

डॉ. नवलता-लखनऊ

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