PFI Ban: हाथरस कांड के बाद शुरू हुई उल्टी गिनती, यूपी एसटीएफ की जांच में सामने आया था हिंसा कराने का षड्यंत्र

हाथरस कांड के बाद पीएफआइ ने सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की साजिश रची थी। सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसको बेहद गंभीरता से लिया था। सितंबर 2020 में हाथरस में युवती की दुष्कर्म के बाद हत्या की वारदात को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार पर तीखा हमला बोला था।

By Alok MishraEdited By: Publish:Wed, 28 Sep 2022 08:39 PM (IST) Updated:Wed, 28 Sep 2022 08:39 PM (IST)
PFI Ban: हाथरस कांड के बाद शुरू हुई उल्टी गिनती, यूपी एसटीएफ की जांच में सामने आया था हिंसा कराने का षड्यंत्र
PFI Ban: मथुरा में पहली बार पकड़े गए सीएफआइ सदस्यों से खुली थीं फंडिंग की कड़ियां।

UP News: लखनऊ, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (PFI) की उल्टी गिनती उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड के बाद शुरू हो गई थी। सितंबर, 2020 में हाथरस में युवती की दुष्कर्म के बाद हत्या की वारदात को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार पर तीखा हमला बोला था। प्रदेश में एक ओर जब राजनीति गरमा रही थी, उसी दौरान मौके का फायदा उठाकर पीएफआइ ने उत्तर प्रदेश में जातीय और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की बड़ी साजिश रच डाली थी।

सीएफआइ सदस्यों से खुली थीं फंडिंग की कड़ियां

अक्टूबर, 2020 में घटनाक्रम तेजी से बदल रहा था। इसी बीच स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने तब खुफिया सूचनाओं के आधार पर मथुरा से पीएफआइ की स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट आफ इंडिया (CFI) के चार सक्रिय सदस्यों को दबोचा था। उनसे पूछताछ में ही पहली बार हिंसा के लिए फंडिंग के तथ्य पहली बार सामने आए तो यूपी पुलिस समेत अन्य जांच एजेंसियों के भी कान खड़े हो गए थे।

हिंसा के लिए करोड़ों रुपये की फंडिंग खुला था राज

हाथरस कांड की सीबीआइ जांच भी शुरू हो चुकी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हिंसा की साजिश के तथ्यों को बेहद गंभीरता से लिया था और सरकार ने ईडी से भी मामले की जांच की सिफारिश की थी। इसके बाद ही ईडी ने वेबसाइट के जरिए हिंसा के लिए करोड़ों रुपये की फंडिंग का सच उजागर किया था।

यूपी सरकार ने की थी प्रतिबंध लगाए जाने की सिफारिश

उत्तर प्रदेश सरकार ने इससे पहले नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान पीएफआइ की भूमिका आने के बाद ही इस संगठन पर प्रतिबंध लगाए जाने की सिफारिश की थी और उसके बाद पीएफआइ व उसके सहयोगी संगठनों के विरुद्ध जांच का दायरा भी लगातार बढ़ाया जा रहा था। इसका परिणाम है कि भारत सरकार ने पीएफआइ व उसके सहयोगी संगठनों पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया है।

नए संगठन के जरिए फिर जड़ें जमाने की भी आशंका

सिमी के बाद पीएफआइ पर रोक के चलते इनसे जुड़े सक्रिय सदस्यों के किसी अन्य संस्था अथवा संगठन के जरिए अपनी गतिविधियों को जारी रखने की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता। एसटीएफ की जांच में सीएफआइ के महासचिव रऊफ शरीफ की भी भूमिका सामने आई थी। जिसके बाद आरोपित रऊफ से मथुरा के मांठ थाने में दर्ज कराए गए मुकमे में पूछताछ की गई थी।

छानबीन में राष्ट्रविरोधी गतिविधियां सामने आई

सामने आया था कि सीएफआइ के सदस्य अतीकुर्रहमान और मसूद को केरल निवासी रऊफ शरीफ के जरिये फंडिंग की जा रही थी। वहीं इससे पूर्व सीएए को लेकर यूपी में हुए उग्र प्रदर्शनों को लेकर पुलिस ने जनवरी व फरवरी, 2020 में पीएफआइ के 133 पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। इनकी छानबीन में भी इस संगठन की राष्ट्रविरोधी गतिविधियां सामने आई थीं, जिसकी जानकारी केंद्रीय जांच एजेंसियों से साझा की गई थीं।

एसटीएफ ने तोड़ा था पीएफआइ का आतंकी नेटवर्क

एसटीएफ ने फरवरी, 2021 में देश को दहलाने की साजिश के आरोप में लखनऊ से पीएफआइ के कमांडर केरल निवासी अंसद बदरुद्दीन व उसके सहयोगी फिरोज खान काे विस्फोटक के साथ पकड़ा था। दोनों के बांग्लादेश के आतंकी संगठन जमातउल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के सीधे संपर्क में होने की बात भी सामने आई थी। तब दोनों आरोपितों से आइबी के अधिकारियों ने भी लंबी पूछताछ की थी और सामने आए तथ्यों को गृह मंत्रालय से साझा किया गया था।

एसटीएफ ने केस एटीएस के सिपुर्द कर दिया था। दोनों आरोपित लखनऊ, बहराइच, मुजफ्फरनगर, शामली, बाराबंकी, मेरठ व कुछ अन्य जिलों में पीएफआइ व सीएफआइ के सदस्यों के सीधे संपर्क में थे। इन शहरों में 25-25 युवकों तक के ग्रुप बनाए जाने की बात सामने आई थी, जिन्हें हिट स्क्वायड का नाम दिया गया था आैर उन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दिलाई गई थी।

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