यूपी का प्रदूषण कम करेंगे 'जापानी जंगल', 30% बेहतर होता है कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण
बड़े जंगल विकसित करने की लंबी कसरत की बजाए जापान की तर्ज पर छोटे और घने जंगल लगाने का शॉर्टकट फार्मूला अपनाया है।
लखनऊ [शोभित श्रीवास्तव]। उत्तर प्रदेश की सांसें फुला रहे वायु प्रदूषण पर काफी हद तक लगाम कसने का तरीका योगी सरकार को मिल गया है। बड़े जंगल विकसित करने की लंबी कसरत की बजाए जापान की तर्ज पर छोटे और घने जंगल लगाने का 'शॉर्टकट फार्मूला' अपनाया है। विदेशी तकनीक के यह 'मियावाकी वन' 160 वर्ग मीटर या इससे भी छोटे प्लॉट में उगाए जा सकते हैं। यह पारंपरिक वन क्षेत्रों के मुकाबले अधिक घने और 30 फीसद ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने में सक्षम होते हैं। प्रमुख शहरों में यह योजना लागू करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व वन विभाग स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) तैयार कर रहे हैं।
शहरों में सबसे बड़ी दिक्कत जगह की होती है। पारंपरिक जंगल तैयार करने के लिए काफी अधिक जमीन की जरूरत होती है। इसमें समय भी अधिक लगता है। इसलिए 'मियावाकी वन' लगाने की योजना तैयार की जा रही है। इस तकनीक द्वारा उगाए गए जंगल, पारंपरिक जंगलों की तुलना में 10 गुना तेजी से विकसित होते हैं और यह 30 फीसद अधिक घने होते हैं। इन जंगलों में 30 प्रतिशत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण की क्षमता होती है। साथ ही 30 फीसद अधिक शोर-शराबे को कम करते हैं।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मियावाकी तकनीक से वन विभाग के अफसरों को परिचित कराने के लिए एक्सपर्ट संस्था से प्रशिक्षण भी दिला रहा है। इसमें प्रमुख वन संरक्षक से लेकर मुख्य वन संरक्षक तक शामिल हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव आशीष तिवारी ने बताया कि इस तकनीक से शहरों में जंगल बढ़ेंगे। इसका फायदा वायु प्रदूषण पर होगा।
इन शहरों में ज्यादा वायु प्रदूषण
गाजियाबाद, हापुड़, लखनऊ, मुरादाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, कानपुर, बागपत, आगरा, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, वाराणसी
क्या है 'मियावाकी वन'
'मियावाकी वन' का आविष्कार अकीरा मियावाकी नाम के जापानी वनस्पति शास्त्री ने किया था। इसमें छोटे-छोटे स्थानों पर ऐसे पौधे रोपे जाते हैं, जो साधारण पौधों की तुलना में दस गुना तेजी से बढ़ते हैं। इसने शहरों में जंगलों की परिकल्पना को साकार किया है। इस तकनीक से बहुत कम जगह व बंजर जमीन में भी जंगल उगा सकते हैं।
ऐसे होते हैं तैयार
जिस जमीन पर जंगल उगाना होता है, पहले उसकी मिट्टी की जांच की जाती है। इसके अनुकूल पौधे तैयार किए जाते हैं। जमीन को तीन फुट गहरा खोदा जाता है। मिट्टी की उर्वरता सुधारने के लिए इसमें चावल की भूसी, गोबर, जैविक खाद या नारियल के छिलके डालकर ऊपर से मिट्टी डाली जाती है। इसके बाद पौधों को आधे-आधे फुट की दूरी पर लगाया जाता है। इसके लिए तीन तरह के पौधे झाड़ीनुमा पौधे, मध्यम आकार के पौधे और इन दोनों पर छांव, नमी और सुरक्षा देने वाले बड़े पौधे लगाए जाते हैं।