1962 के भारत-चीन युद्ध में सरकार की हुई थी हार, लखनऊ में सैन्य साहित्य सम्मेलन में अनकही बातों पर चर्चा

India-China War सत्य घटनाओं पर आधारित बोमद‍िला उपन्यास के लेखक प्रो अविनाश बीनीवाले ने कई तथ्य उजागर किए। उन्होंने कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारतीय सैनिक नहीं हारे सरकार हार गई थी। उन्होंने बताया कि इसका देश में संस्कृत समेत सात भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Mon, 11 Oct 2021 04:47 PM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 04:57 PM (IST)
1962 के भारत-चीन युद्ध में सरकार की हुई थी हार, लखनऊ में सैन्य साहित्य सम्मेलन में अनकही बातों पर चर्चा
उपन्यास का लेखन 1962 के युद्ध क्षेत्र में बसे आम जनों की बेबाक राय और कथानक पर आधारित है ।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। सैन्य साहित्य सम्मेलन में '1962 के युद्ध की कुछ अनसुनी और अनकही बातें' पर चर्चा की जा रही है। इसमें सत्य घटनाओं पर आधारित 'बोमद‍िला' उपन्यास के लेखक प्रो अविनाश बीनीवाले ने कई तथ्य उजागर किए। उन्होंने कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारतीय सैनिक नहीं हारे, सरकार हार गई थी। उन्होंने अपने उपन्यास के बारे में बताया कि इसका देश में संस्कृत समेत सात भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

इस उपन्यास का लेखन 1962 के युद्ध क्षेत्र में बसे आम जनों की बेबाक राय और कथानक पर आधारित है । 10 अक्टूबर 1962 के ही दिन, नाम- का-चू घाटी में भारत और चीनी सेनाओं के बीच बड़ी झड़प हुई थी, जिसके बाद, 20 अक्टूबर 1962 को चीनी सेनाओं ने नेफा और लद्दाख के क्षेत्रों में सुनियोजित तरीके से भारत पर आक्रमण कर दिया था। प्रोफेसर बेनीवाले ने विदेशी सैनिकों से अपने साक्षात्कार और अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि अन्य देशों की अपेक्षा, भारतीय सैनिकों का देश के प्रति सेवा -भाव, निस्वार्थ है और इसलिए अनुकरणीय भी है । 

परिचर्चा में भाग लेते हुए प्रयागराज विश्वविद्यालय की प्रो नीलम शरण गौड़ ने अपनी पुस्तक '62 की बातें' के कुछ मुख्य अंशों का उद्धरण देते हुए कहा कि युद्ध के दौरान भारतीय सेना के पास संसाधनों की कमी ने भारतीय जनमानस को इतना झिझोड़ गया था कि बच्चों ने गुल्लक बनाकर आस-पड़ोस से चंदा एकत्र करने का प्रयास कर अपनी राष्ट्रीय चेतना की पुष्टि की ।इसी प्रकार महिलाओं ने अपने आभूषण और छोटी-छोटी बचत से जमा पूंजी, सरकार द्वारा स्थापित, "इंडिया डिफेंस फंड" में दान कर दिया था।

यद्यपि कालांतर में इस फंड के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है परंतु अनुमानतः जनभागीदारी से लगभग 80 करोड़ रुपये एकत्र हुए थे। यह खेद का विषय है कि इस फंड का कुछ अंश लापता बताया जाता है । प्रो. नीलम शरण ने अपने लेखन के माध्यम से सुदूर उत्तर -पूर्व में लड़े गए भारत चीन युद्ध का, समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का, सशक्त चित्रण किया है।

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