अपराध पर रोक के लिए नया कानून बनाने की राह में कई चुनौतियां
गृह सचिव मणि प्रसाद मिश्र कहते हैं, 'सरकार की मंशा के अनुरूप कानून बनेगा। इसके लिए जल्द प्रक्रिया शुरू होगी।'
लखनऊ [आनंद राय]। अपराधियों के खिलाफ व्यापक अभियान चला रही योगी सरकार उन्हें घेरने के लिए नया कानून बनाने जा रही है। खासकर संगठित अपराधी और उनके संरक्षणदाता सरकार के निशाने पर हैं। योगी के एलान के बाद यह उम्मीद जगी है कि बड़े अपराधी और उनके गॉडफादर अब बच नहीं पाएंगे। नए कानून का ड्राफ्ट तैयार कर दिसंबर तक विधेयक लाने की है। हालांकि इस राह में चुनौतियां बहुत हैं।
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद से गृह विभाग और डीजीपी मुख्यालय में तेजी आई है। डीजीपी मुख्यालय महाराष्ट्र और दिल्ली में लागू मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल आफ आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) और कुछ अन्य राज्यों के कानून का अध्ययन कर रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने 1999 में संगठित अपराध को खत्म करने के इरादे से यह कानून बनाया। 2002 में दिल्ली सरकार ने भी इसे लागू किया।
गृह सचिव मणि प्रसाद मिश्र कहते हैं, 'सरकार की मंशा के अनुरूप कानून बनेगा। इसके लिए जल्द प्रक्रिया शुरू होगी।' अपराधियों की नकेल कसने के लिए भले सरकार तेजी दिखाने जा रही है। लेकिन, चुनौती यह है कि एक दशक के भीतर नए तरह के अपराधी सक्रिय हुए हैं। साइबर अपराधियों और उनके संरक्षणदाताओं ने संगठित नेटवर्क बनाकर लोगों की नींद उड़ा दी है।
साइबर क्रिमिनल निजी स्तर से लेकर समूहों तक को करोड़ों-करोड़ों की चपत लगा रहे हैं। मकोका में जबरन वसूली, फिरौती के लिए अपहरण, हत्या की सुपारी और धमकी कर उगाही करने वालों के खिलाफ तो प्रावधान है लेकिन, साइबर अपराधियों से निपटने के लिए आइटी एक्ट से इतर नए कानून की जरूरत है। सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी श्रीधर पाठक कहते हैं कि 'सरकार को उत्तर प्रदेश पब्लिक एंड स्टेट सेफ्टी एक्ट बनाना चाहिए।
इसमें अधिकतम 30 से 35 धारा शामिल कर संगठित अपराधियों पर नकेल कसने के साथ ही सोशल मीडिया के जरिये अफवाह फैलाने या साइबर अपराध करने वालों और उनके संरक्षणदाताओं पर शिकंजा कसा जाना चाहिए। क्योंकि ऐसे अपराधी प्रदेश और समाज के लिए सबसे बड़े खतरा साबित हो रहे हैं।'
साक्ष्य जुटाने का मिलेगा अवसर: कई बड़े मामलों की विवेचना कर चुके एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि आइपीसी की धाराओं में व्यवस्था तो सभी है लेकिन, नई परिस्थितियों में बदलाव की जरूरत बनी है। वह तर्क देते हैं कि मकोका के तहत विवेचक को आरोप पत्र दाखिल करने के लिए छह माह का मौका मिलता है जबकि आइपीसी में 60 से 90 दिन के भीतर आरोप पत्र दाखिल करने का प्रावधान है।
ढूंढ लेते है रास्ता: विवेचक को अतिरिक्त समय मिलने से अपराधी के खिलाफ साक्ष्य जुटाने का अवसर मिल जाता है। अमूमन अभियुक्त के पकड़े जाने के बाद उसके संरक्षणदाता बचाव का रास्ता ढूंढ़ लेते हैं लेकिन, आरोप पत्र दाखिल करने का समय बढ़ने से पुलिस को उन्हें घेरने में आसानी होगी। मकोका में एक व्यवस्था यह भी है कि पुलिस रिमांड तीस दिन की मिलती है जबकि आइपीसी के तहत सिर्फ 15 दिन की रिमांड होती है। इसका भी लाभ विवेचक को मिलेगा।
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संरक्षणदाता पर नकेल कसने का पहले भी प्रावधान: अपराधियों के साथ मिलकर षड्यंत्र करने वालों के खिलाफ आइपीसी धारा 120 बी का प्रावधान है। इसके अलावा डकैतों को संरक्षण देने वालों के खिलाफ भी कानून बना है लेकिन, नए दौर में सफेदपोश लोगों को घेरने के लिए राज्य सरकार नई व्यवस्था करने जा रही है।
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