सबरीमाला विवाद पर बोलीं महंत देव्यागिरि, स्त्रियों को भी समझनी चाहिए बात
मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्यागिरि ने देशभर के मंदिरों की विशेषताओं और उनके नियमों के बारे में की चर्चा। उन्होंने कहा कि लोगों को नियमों को समझना चाहिए।
लखनऊ, (जेएनएन)। हमारे सनातन धर्म में बहुत सोच-समझकर धार्मिक नियमों को बनाया गया होगा। दक्षिण में दो ऐसे देवी मंदिर हैं, जहां पुरुषों का जाना वर्जित है। अब वर्जित है तो है। जैसे गुरुद्वारे में सिर को ढककर जाने का नियम है, तो कहीं टोपी पहनकर जाने का है। इसलिए जो नियम बनाए गए हैं, उन्हें मानना चाहिए। हम स्त्रियों को भी यह बात समझनी चाहिए। यह बातें मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्यागिरि ने कहीं। सोमवार को वह दैनिक जागरण की अकादमिक बैठक जागरण विमर्श में केरल के सबरीमाला मंदिर विवाद पर चर्चा कर रही थीं।
महिलाएं भी समझें नियम
सबरीमाला मुद्दे पर उनकी राय पूछी गई तो महंत ने कहा कि केरल के पास एक महंत रहते हैं, जब मैंने इस विवाद पर उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि केरल के लोग अयप्पा भगवान को ब्रह्मचारी मानते हैं जिस तरह से उत्तर में हनुमान जी को मानते हैं। यही वजह है कि इस मंदिर के गर्भगृह में भी महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। उत्तराखंड की एक महंत ने भी यही बताया है। इसलिए मुझे भी यही लगता है कि महिलाओं को इस बात को समझना चाहिए।
महिलाएं नहीं कर सकतीं 41 दिन का व्रत
महंत ने कहा कि केरल में होने वाला 'व्रतम' एक ऐसा पर्व है जो 41 दिन का होता है। इसमें पुरुष ही शामिल हो सकते हैं क्योंकि मासिक धर्म के चलते 41 दिन की यह पूजा महिलाएं पूरी कर ही नहीं सकती हैं।
एच्िछक होने चाहिए नियम
देव्यागिरि ने कहा कि हर किसी का शरीर अलग है, बनावट अलग है। मुझे लगता है कि पूजापाठ के नियमों को ऐच्िछक होना चाहिए। यदि स्त्रियां मासिक धर्म के दौरान खुद को स्वस्थ व पवित्र समझती हैं तो वे कर सकती हैं। मगर, जो नियम पहले से हमारे मस्तिष्क में फीड हैं उसे जल्दी नहीं निकाल सकते हैं, हालांकि खुद को अपवित्र मानकर महिलाएं पूजापाठ नहीं करना चाहतीं।
देवी कामाख्या भी हैं उदाहरण
ईश्वर ने स्त्री-पुरुष की रचना की है। फिर महिलाओं का मासिक धर्म कब बाधा बना और कब उन्होंने जाना कि इस दौरान हमें पूजापाठ नहीं करनी चाहिए के सवाल पर महंत देव्यागिरि ने कहा कि पीढिय़ों से हम अपने परिवार में यह सब देखते आ रहे हैं। इन बातों पर खुलकर चर्चा होने लगी है, पहले नहीं होती थी। आने वाली पीढ़ी हो सकता है और भी एडवांस हो। असम का कामाख्या देवी शक्तिपीठ भी एक ऐसा ही उदाहरण है। जब देवी कामाख्या रजस्वला होती हैं तो उस मंदिर के कपाट उन दिनों बंद कर दिए जाते हैं। उनके सामने जो कपड़ा रखा जाता है, वह लाल हो जाता है। जिसके छोटे-छोटे टुकड़े ऊंची कीमत लेकर लोगों को दिए जाते हैं।
बनानी चाहिए एक सीमा रेखा
उन्होंने कहा कि आस्था को लेकर न्यायपालिका जब कोई निर्णय देती है और उसे नहीं माना जाता तो उसकी अस्मिता पर चोट पहुंचती है। इसलिए एक ऐसी सीमा रेखा बनानी चाहिए जो आस्था को चोट न पहुंचाए। कल को अयोध्या पर भी फैसला आएगा। तब कितने लोग इसे मानेंगे और कितने नहीं, यह विचार भी मेरे मन में आते हैं।
मनकामेश्वर में नहीं ऐसा कोई नियम
मनकामेश्वर मंदिर में क्या कोई ऐसा प्रतिबंध है के सवाल पर महंत ने कहा कि हमने ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया। हालांकि, एक बार एक व्यक्ति ने कहा भी था कि जींस-टॉप पहनकर मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाएं, पर मैंने मना कर दिया।