UP CAG Report: लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का खेल, निजी डेवलपर को गलत ढंग से दिलाया 171 करोड़ का फायदा

UP CAG Report हाई-टेक टाउनशिप के निजी डेवलपर को लखनऊ विकास प्राधिकरण ने गलत ढंग से करीब 171 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचा दिया। बिना कोई शुल्क लगाए ही हाईटेक विकासकर्ता को पूर्वव्यापी उच्चतर तल क्षेत्र अनुपात की अनुमति देने के फैसले से अनुचित लाभ हुआ।

By Vikas MishraEdited By: Publish:Fri, 20 Aug 2021 09:01 AM (IST) Updated:Fri, 20 Aug 2021 09:34 PM (IST)
UP CAG Report: लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का खेल, निजी डेवलपर को गलत ढंग से दिलाया 171 करोड़ का फायदा
विधानमंडल के मानसून सत्र में गुरुवार को सीएजी की रिपोर्ट रखी गई।

लखनऊ, राज्य ब्यूरो। हाई-टेक टाउनशिप के निजी डेवलपर को लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने गलत ढंग से करीब 171 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचा दिया। बिना कोई शुल्क लगाए ही हाईटेक विकासकर्ता को पूर्वव्यापी उच्चतर तल क्षेत्र अनुपात (एफएआर) की अनुमति देने के फैसले से अनुचित लाभ हुआ। भारत के नियंत्रक- महालेखापरीक्षक (सीएजी) की वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट में इसका राजफाश हुआ है। विधानमंडल के मानसून सत्र में गुरुवार को सीएजी की रिपोर्ट रखी गई। 

एलडीए के अभिलेखों की जांच जनवरी 2018 में की गई तो पता चला कि लखनऊ में हाई-टेक टाउनशिप के विकास के लिए यूपी सरकार द्वारा मैसर्स अंसल प्रापर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड का चयन वर्ष 2005 में मई महीने में किया गया। सरकार के आदेश के अनुसार डेवलपर को 1765 एकड़ भूमि के अनुमोदित ले-आउट पर 34.92 करोड़ रुपये के नगरीय विकास शुल्क (सीडीसी) का भुगतान करने से छूट इस आधार पर दी कि यह वर्ष 2007 में लागू हुआ था। ऐसे में यह डेवलपर पर लागू नहीं होगा, जो हाई-टेक टाउनशिप नीति 2003 के अंतर्गत चुना गया था और एलडीए से वर्ष 2005 में एमओयू हुआ था। उसी समय विभाग ने 216.38 एकड़ भूमि के 24 प्रकरणों में बिना 171 करोड़ के शुल्क लगाए बिना ही उच्चतर एफएआर की अनुमति दी, जबकि डेवलपर मई 2005 में चुना गया था और हाई-टेक टाउनशिप के ले-आउट का अनुमोदन नवंबर 2006 से नवंबर 2008 की अवधि में किया गया था।

ऐसे में यह एलडीए के लिए वित्तीय रूप से हानिकारक था। अत: डेवलपर को इस आधार पर कि वह सीडीसी के लागू होने से पहले चुना गया था, पूर्वव्यापी रूप से सीडीसी की छूट की अनुमति देना और उसे उच्चतर एफएआर के लिए शुल्क भी न लगाए जाने के कारण एलडीए को लगभग 171 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। उधर जानकीपुरम सेक्टर जे योजना में सृष्टि अपार्टमेंट व स्मृति अपार्टमेंट के निर्माण के लिए किए गए अनुबंध में प्रतिभूति जमा करने के लिए मानक प्रविधान को शामिल करने में एलडीए विफल रहा। इसके कारण उसे 2.40 करोड़ रुपये का ब्याज देना पड़ा। उधर जेपीएनआइसी के निर्माण के लिए नींव में 1000 एमएम व्याय के पाइल कार्य की अतिरिक्त मद का अधिक दरों पर भुगतान करने के परिणामस्वरूप ठेकेदार को 1.41 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ दिलाया गया।

नहीं बन पाया वीसी आवास, फंसे 2.94 करोड़ः मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष (वीसी) के आवास के लिए शताब्दी नगर आवासीय योजना के सेक्टर दो में भूमि आवंटित की गई। इस भूमि पर मई 2015 में निर्माण शुरू किया गया। इसमें तीन मंजिला आवासीय भवन की 7.17 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ निर्माण शुरू हुआ। इस पर 2.94 करोड़ खर्च भी किए गए, लेकिन दिसंबर 2016 में बोर्ड की बैठक में इसकी उपयोगिता पर सवाल उठाए गए और निर्माण को स्थगित कर दिया गया। इस अद्र्ध-निर्मित भवन के विक्रय के लिए अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। उधर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने डेवलपर से प्रशासनिक शुल्क न वसूलकर उसे 2.51 करोड़ का गलत ढंग से लाभ पहुंचाया।

प्रीमियम व पट्टा किराया वसूलने में लापरवाही से 22.53 करोड़ की चपतः वन एवं वन्यजीव विभाग द्वारा गैर-वानिकी उपयोग के लिए वन भूमि के हस्तांतरण पर 22.53 करोड़ के प्रीमियम तथा पट्टा किराया वसूलने में विफल रहा। वन विभाग के तीन प्रभागों डीएफओ गोंडा, डीएफओ गौतमबुद्ध नगर और ललितपुर में यह गड़बड़ी पकड़ी गई। जून 2020 तक वन विभाग पट्टे पर दी गई जमीनों से न तो प्रीमियम वसूल पाया न ही पट्टा किराया।

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