Nirjala Ekadashi 2020: तपती जिंदगियों में शीतलता का संचार करेगा हमारा दान

Nirjala Ekadashi 2020 उपवास का महापर्व निर्जला एकादशी दो जून को बढ़-चढ़कर करें जरूरतमंदों की मदद।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 01:45 PM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 01:45 PM (IST)
Nirjala Ekadashi 2020: तपती जिंदगियों में शीतलता का संचार करेगा हमारा दान
Nirjala Ekadashi 2020: तपती जिंदगियों में शीतलता का संचार करेगा हमारा दान

लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। Nirjala Ekadashi 2020: सनातन संस्कृति में व्रत और दान का आशय सिर्फ धर्म का पालन नहीं, बल्कि समाज एवं मानव जाति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना है। प्राणी मात्र के प्रति अपने नैतिक दायित्व का निर्वहन है। इसी दायित्व के कारण ही तो ऋषि दधीची ने अपनी हड्डियां तक दान में दे दी थीं। प्रकृति भी देना ही सिखाती है। देने से न कभी सूर्य की रोशनी खत्म हुई, न ही चंद्रमा की शीतलता का हृास हुआ। न नदियों का जल सूखा, न फूलों की खुशबू उड़ी।

हिंदू धर्म में दान चार प्रकार के बताए गए हैं- अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान एवं अभय दान। समय के साथ दान का स्वरूप भी बदलता गया। अब जब पूरा विश्व कोरोना महामारी का सामना कर रहा तो हमारे दान का महत्व और भी बढ़ जाता है। आस भरी कई आंखें हमारी तरफ टकटकी लगाए हैं। जरूरतमंद खाली हाथों को हम अपने दान से भर सकते हैं। दो जून को व्रत और दान का महापर्व निर्जला एकादशी है। अलग-अलग अंचलों में ये अलग-अलग तरीकों से संपन्न होता है। कहीं एकादशी का निर्जला व्रत रखते हैं, तो कहीं दान-पुण्य के बाद जल ग्रहण करते हैं। लोगों को सुराही-घड़े दान किए जाते हैं, दक्षिणा भी देते हैं।

पंखे भी दान किए जाते हैं, जो नारियल या खजूर के पत्तों के बने होते हैं। कुछ लोग घरों और प्रतिष्ठानों पर पौशालाओं की स्थापना भी करते हैं। इस सब प्रयासों और इस पर्व से यह आभास होता है कि अब वास्तविक ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो चुका है। आइए इस दिन व्रत अनुष्ठान के साथ ही बढ़ चढ़कर दान करें। हमारा ये दान कई तपती जिंदगियों में शीतलता का संचार करेगा। यही तो एकादशी का महात्म्य भी है।

आयुर्वेदिक औषधियों का दान

लखनऊ विश्वविद्यालय ज्योतिविज्ञान विभाग डॉ. विपिन पांडेय के मुताबिक, तब के हिसाब से जल की आवश्यकता थी, इसलिए जल का कुंभ या जलीय चीजें दी जाती थीं। आज की आवश्यकता निरोगी काया है, आयुर्वेदिक औषधियों का दान बेहतर होगा। इसके अलावा अपने घरों में हवन करें। गाय के गोबर, काला तिल, जौ, चावल और घी से जो आहुति दें, उससे विषाणु समाप्त हो जाते हैं। अगर एकादशी में ये भी किया जाए तो वायुमंडल ठीक होगा। एकादशी के पांचवें दिन बाद से आषाढ़ शुरू होता है। उससे पहले शरीर में जल के संतुलन को बनाने के लिए ये व्रत जरूरी है। मासिक धर्म की वजह से स्त्रियों का शरीर अधिक जलीय होता है। उस जल के संतुलन को बनाए रखने के लिए निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास में रखने का विधान किया गया।

इंसानों के साथ पशु-पक्षियों की जल सेवा

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विद्या विंदु सिंह के मुताबिक, शरीर ही तो वास्तविक शत्रु है, उसे नियंत्रित किए बिना कुछ हो सकता है? निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है, इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है। जहां साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी जरूरी है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। हमारे लोक जीवन में घड़ा भरकर दान करने का अलग ही महत्व है। हमारी संस्कृति में बिना दान के कोई व्रत पूरा नहीं होता। ये दान जरूरत के हिसाब से दिया जाए तो श्रेष्कर होता है। इंसानों की मदद के साथ ही इस दिन हम माटी के ज्यादा से ज्यादा घड़े खरीदकर भी जगह-जगह पशु, पक्षियों के लिए भी दाना पानी रख सकते हैं। पौधरोपण करने के साथ ही पौधों को पानी देकर भी जल का दान कर सकते हैं। प्याऊ की शुरुआत कर सकते हैं। ये सूर्य देव को जल चढ़ाने जैसा ही फलदायी होगा।

अन्न, वस्त्र और छाते का दान

ज्योतिषाचार्य एस.एस.नागपाल ने बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी और भीमसेन एकादशी कहते है। एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करने के विधान के कारण इसे निर्जला एकादशी कहते है। भीम ने केवल यही एकादशी करके सारी एकादशी का फल प्राप्त किया था। इस वर्ष एकादशी एक जून को दिन 02:56 से प्रारम्भ होकर दो जून को दिन 12:04 तक है। इस दिन महिलाएं अन्न, फल और बिना जल के पूरे दिन उपवास करती है। इस व्रत को करने से आयु और अरोग्य की वृद्वि होती है। मान्यता है कि अधिक मास सहित एक साल की 26 एकादशी न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी व्रत करने से ही पूरा फल प्राप्त होता है। इस दिन व्रती को भगवान श्री विष्णु का जप और ध्यान करना चाहिये। पूरे दिन उपवास के बाद द्वादशी के दिन प्रातकाल स्नान आदि कर अन्न, वस्त्र, छाता, पंखी ,घड़ा इत्यादि दान करना चाहिए।

पीने के पानी का प्रबंध

आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी बताते हैं कि हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है। ये व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।इस एकादशी का व्रत करके श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। ये जल दान किसी भी रूप में हो सकता है। आप चाहें तो घर के बाहर ही लोगों के पीने के पानी का प्रबंध कर सकते हैं।

एकादशी व्रत का इतिहास

एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यासजी के मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से निवेदन किया कि च्महाराज! मुझसे कोई व्रत नहीं किया जाता। दिन भर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी ही रहती है। अत: आप कोई ऐसा उपाय बतला दीजिए जिसके प्रभाव से स्वत: सद्गति हो जाए। तब व्यासजी ने कहा कि च्तुमसे वर्षभर की संपूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक निर्जला कर लो, इसीसे सालभर की एकादशी करने के समान फल हो जायगा।च् तब भीम ने वैसा ही किया और स्वर्ग को गए, इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।

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