श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अव्यवस्था के शिकार लोगों को उपभोक्ता संरक्षण कानून से मिल सकती है राहत

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से यात्रा कर रहे मजदूरों-कामगारों और विद्यार्थियों को यात्रा में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है आलम यह है एक दिन का सफर चार दिन में पूरा हो रहा है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Wed, 27 May 2020 11:30 AM (IST) Updated:Wed, 27 May 2020 11:47 AM (IST)
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अव्यवस्था के शिकार लोगों को उपभोक्ता संरक्षण कानून से मिल सकती है राहत
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अव्यवस्था के शिकार लोगों को उपभोक्ता संरक्षण कानून से मिल सकती है राहत

लखनऊ, जेएनएन। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से यात्रा कर रहे श्रमिकों-कामगारों और विद्यार्थियों को यात्रा में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है एक दिन का सफर चार दिन में पूरा हो रहा है। जिस ट्रेन को गोरखपुर जाना था वह ओडिशा पहुंच रही है । ट्रेनों में पानी नहीं है, भोजन नहीं है जिसके चलते यात्री बीमार हो रहे हैं। कुछ लोगों को अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ा है। टिकट खरीद कर रेलवे से सुविधा लेने वाले इन यात्रियों को उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत राहत मिल सकती है।

उप्र राज्य उपभोक्ता आयोग के सदस्य राजेंद्र सिंह के अनुसार जो सेवा शुल्क देकर ली जाती है नियमानुसार उसमें कमी होने पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत दावा किया जा सकता है। उपभोक्ता मामलों के जानकार लखनऊ के अधिवक्ता ऋषि सक्सेना का कहना है कि शुल्क देकर सेवा लेने वाला उपभोक्ता माना जाता है। रेलवे हो, हवाई यात्रा हो या बीमा हो सभी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में आते हैैं। श्रमिक कामगार भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत हर्जाने के लिए दावा कर सकते हैैं।

कोर्ट में चुनौती दी जा सकती : इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन पूर्व अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में यात्रियों से सीधे तौर पर भले टिकट का पैसा नहीं लिया गया, लेकिन केंद्र व राज्य सरकार वेलफेयर स्कीम के तहत लोगों को मुफ्त में यात्रा करा रही है। आम नागरिकों को यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद-4 के तहत मिला है। सरकार टैक्स के रूप में जनता से जो पैसा लेती है, यातायात सहित अन्य सुविधाएं मुफ्त में उसी के तहत दी जा रही। ऐसे में वह हर गड़बड़ी को कोर्ट में चुनौती दे सकता है। 

श्रमिकों को मिली परेशानी मानवाधिकार का उल्लंघन : वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेंद्र कहते हैं कि श्रमिकों को मिली परेशानी मानवाधिकार का उल्लंघन भी है। वरिष्ठ अधिवक्ता रविकिरन जैन बोले, यात्रियों को सही समय पर सुविधा से गंतव्य तक न पहुंचाना उनका शोषण है। इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। वरिष्ठ अधिवक्ता भूपेंद्रनाथ सिंह बताते हैं कि यात्रियों को ट्रेन में असुविधा होना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन है। अनुच्छेद 14 में नागरिकों को समानता व संरक्षण अधिकार प्राप्त है, जबकि अनुच्छेद 21 में सम्मानजनक तरीके से रहने व जीवन निर्वाहन का अधिकार प्राप्त है।

बहुत आसान है प्रक्रिया : लखनऊ के अधिवक्ता और उपभोक्ता मामलों के विशेषज्ञ एसपी पांडे बताते हैैं कि दावा करने की प्रक्रिया बहुत आसान है। एक सादे कागज पर एप्लीकेशन लिख कर के अदालत में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शिकायतकर्ता को 90 दिन में न्याय भी मिल सकता है।

आठ लाख तक मुआवजे का प्रावधान : बरेली में उपभोक्ता मामलों के जानकार अधिवक्ता आरपी जौहरी का कहना है कि रेलयात्री हितग्राही (अधिकारों का लाभ पाने की स्थिति) की श्रेणी में आएगा। कोई भी उपभोक्ता रेलवे स्टेशन परिसर में घुसते ही मुआवजे का हकदार हो जाता है। एक मुसाफिर चार जगह से उपभोक्ता अदालतों में अपना दावा पेश कर सकता है। पहला, जहां से उसने सफर शुरू किया हो। दूसरा वह गंतव्य स्थान जहां उसे ट्रेन ने उतारा हो। तीसरा जहां का वह निवासी हो और चौथा घटनास्थल। जहां रेलवे की लापरवाही या सेवा में कमी उजागर हुई हो। रेलवे की लापरवाही से यदि किसी मुसाफिर की मौत हो जाती है। उसे आठ लाख तक मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है।

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