Hathras Case Hearing: हाई कोर्ट में डीएम हाथरस ने रखा पक्ष- जिला प्रशासन का था अंतिम संस्कार का फैसला

Hathras Case Hearing हाथरस के जिलाधिकारी प्रवीन कुमार लक्षकार ने कोर्ट में कहा कि रात्रि में ही मृतका के अंतिम संस्कार का फैसला जिला प्रशासन का था। कानून-व्यवस्था के मद्देनजर यह फैसला लिया गया था। राज्य सरकार की ओर से इस संबंध में कोई निर्देश नहीं दिए गए थे।

By Dharmendra PandeyEdited By: Publish:Mon, 12 Oct 2020 09:54 AM (IST) Updated:Tue, 13 Oct 2020 01:16 AM (IST)
Hathras Case Hearing: हाई कोर्ट में डीएम हाथरस ने रखा पक्ष- जिला प्रशासन का था अंतिम संस्कार का फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ,उच्चाधिकारियों को तलब करते हुए उनसे स्पष्टीकरण मांगा

लखनऊ, जेएनएन। बहुचर्चित हाथरस कांड को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने सोमवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में पक्ष रखा। हाथरस के जिलाधिकारी प्रवीन कुमार लक्षकार ने हाई कोर्ट में कहा कि रात्रि में ही मृतका के अंतिम संस्कार का फैसला जिला प्रशासन का था। कानून व्यवस्था के मद्देनजर यह फैसला लिया गया था। राज्य सरकार की ओर से इस संबंध में कोई निर्देश नहीं दिए गए थे। दूसरी ओर राज्य सरकार ने कोर्ट में पक्ष रखा कि इस मामले में कोई भी दुर्भावनापूर्ण निर्णय नहीं लिया गया। कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद चेंबर में लिखाने के लिए अपना आदेश सुरक्षित कर लिया है। साथ ही अगली सुनवाई के लिए दो नवंबर की तारीख मुकर्रर की है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया है और इसे 'गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार' टाइटिल के तहत सूचीबद्ध किया गया है। न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने दोपहर दो बजकर बीस मिनट पर सुनवाई शुरू की। कोर्ट में पीड़ित परिवार के साथ ही राज्य सरकार की ओर से अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी, पुलिस महानिदेशक व हाथरस के जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक पेश हुए। परिवार की बिना मर्जी के अंतिम संस्कार के सवाल पर हाथरस के जिलाधिकारी ने पक्ष रखा कि 29 सितंबर को रात्रि 12.30 बजे शव गांव पहुंचा। उस समय तक गांव के बाहर बड़ी संख्या में असामाजिक तत्व पहुंच चुके थे और हिंसा पर उतारू थे। शव की हालत भी लगातार बिगड़ती जा रही थी। स्थानीय स्तर की परिस्थितियों के कारण ही अंतिम संस्कार रात में ही कराने का फैसला लेना पड़ा।

हाई कोर्ट की ओर से इस मामले में नियुक्त न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने कहा कि परिवार की मर्जी के बिना और परंपराओं के विपरीत दाह संस्कार संविधान के अनुच्छेद-25 का उल्लंघन है और अपरिहार्य कारणों के लिए कुछ गाइडलाइन तय होनी चाहिए। अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही ने इस पर बचाव किया कि सरकार की नीयत साफ थी। इससे पहले अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी और पुलिस महानिदेशक हितेश चंद्र अवस्थी ने पक्ष रखा। 

सुनवाई के अंत में कोर्ट ने पीड़ित परिवार से पूछा कि क्या उनका कोई वकील है। इस पर परिवार ने वकील सीमा कुशवाहा की ओर से इशारा कर दिया। उन्होंने परिवार की ओर से एक पत्र देकर कोर्ट से मांग की कि इस मामले को किसी अन्य राज्य में ट्रांसफर किया जाए, जांच होने तक सीबीआई सभी तथ्य गोपनीय रखे और परिवार को सुरक्षा मिले। इससे पहले पूर्वाह्न लगभग साढ़े ग्यारह बजे कड़ी सुरक्षा में मृतका के माता-पिता, भाई समेत पांच सदस्यों को हाईकोर्ट लाया गया। सुनवाई के बाद उन्हें वापस हाथरस ले जाया गया। 

अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही ने कहा कि परिवार के शपथपत्र में क्या कहा गया है, यह अभी संज्ञान में नहीं है। कोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जाएगा। राज्य सरकार ने अपना पूरा पक्ष रखा है। युवती के परिवार ने भी अपना पक्ष रखा है। 

हाई कोर्ट के बाहर मीडिया से बातचीत में पीड़ित परिवार की अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने कहा कि कोर्ट ने परिवार के एक-एक सदस्य की बात सुनी। परिवार ने कहा कि उन्हें अंतिम संस्कार में नहीं शामिल होने दिया गया। कोर्ट ने सवाल भी उठाया कि यदि शव किसी प्रभावशाली परिवार की बेटी का होता तो क्या प्रशासन-पुलिस इस तरह का कदम उठाता। वकील सीमा कुशवाहा ने कहा कि पीड़ित परिवार ने मांग की है कि सीबीआइ की रिपोर्टों को गोपनीय रखा जाए। हमने यह भी प्रार्थना की थी कि मामला यूपी से बाहर स्थानांतरित कर दिया जाए। इसके साथ ही परिवार की यह है कि इस मामले के पूरी तरह से समाप्त होने तक परिवार को कड़ी सुरक्षा में रखा जाए। परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए।

पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा ने हाथरस पुलिस और प्रशासन पर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि परिवार ने कहा है कि पुलिस ने शुरुआत से ही सही जांच नहीं की। हमें परेशान किया। इस केस में हमारी कोई मदद नहीं की थी। शुरू में तो इस केस में एफआइआर भी नहीं लिखी। इसके साथ ही बिना हमारी सहमति के रात में बेटी का अंतिम संस्कार कर दिया। उसके अंतिम संस्कार में भी हमें शामिल नहीं किया। हमें तो पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं। डीएम ने भी परिवार पर अनुचित दबाव बनाया। मामला कोर्ट 'गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार' टाइटिल के तहत जस्टिस पंकज मित्तल व जस्टिस राजन रॉय की बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।

हाईकोर्ट के आसपास आम दिनों से ज्यादा सख्ती

हाई कोर्ट परिसर के आसपास वैसे तो नियमित रूप से भीड़ रहती है लेकिन हाथरस मामले में सुनवाई को लेकर सोमवार को सभी गेटों पर कुछ ज्यादा ही सतर्कता रही। इसके चलते वकीलों के साथ साथ उन लोगों को भी परेशानी उठानी पड़ी जिनकी सुनवाई आज होनी थी। गेट नंबर 6 की ओर आने वाले रास्ते पर आम वाहनों का प्रवेश सुबह 10:00 बजे से ही बंद कर रखा था। 

कोर्ट परिसर में दोपहर 1:30 बजे गेट नंबर 5 से पीड़ित परिवार को गेट नम्बर पांच से प्रवेश दिलाया गया। इस दौरान हाईकोर्ट के आसपास मीडिया वालों को भी जाने नहीं दिया गया। पीड़ित परिवार को गेट नंबर 6 से जाना था लेकिन अचानक सतर्कता के चलते शेड्यूल बदल दिया गया। पीड़ित परिवार को पहले गोमती नगर की विभूति खंड स्थित उत्तराखंड भवन ले जाया गया।

एसआइटी करती रहेगी अपनी जांच

हाथरस कांड को लेकर सचिव गृह भगवान स्वरूप की अध्यक्षता में गठित एसआइटी जल्द अपनी जांच पूरी कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगी। अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि एसआइटी को हाथरस में हुई घटना के पूर्व तथा एफआइआर दर्ज होने के बाद पुलिस की भूमिका की जांच सौंपी गई है। एसआइटी अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपेगी। एसआइटी की पहली रिपोर्ट के आधार पर ही हाथरस के एसपी विक्रांत वीर व तत्कालीन सीओ राम शब्द समेत पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया था।

एसआइटी जांच कर रही है, सीबीआइ विवेचना करेगी

पूर्व डीजीपी बृजलाल का कहना है कि एसआइटी ने जांच की है, जबकि सीबीआइ घटना की विवेचना करेगी। जांच और विवेचना दोनों अलग-अलग हैं। एसआइटी की जांच में पाई गईं कमियों व गलतियों पर संबंधित पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के विरुद्ध शासन कार्रवाई कर सकता है, लेकिन उसकी जांच घटना की विवेचना का हिस्सा नहीं हो सकती। सीबीआइ चाहेगी तो एसआइटी से उसकी जांच रिपोर्ट ले सकती है।

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