केजीएमयू में रिसर्च सेल के नाम पर खेल, आविष्कार के नाम पर डकार गए करोड़ों! Lucknow News

लखनऊ के मेडिकल कॉलेज केजीएमयू में रिसर्च के नाम पर हुई करोड़ो रुपयों की घपलेबाजी। राज्यपाल से हुई शिकायत।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Sat, 14 Dec 2019 08:11 AM (IST) Updated:Sat, 14 Dec 2019 05:15 PM (IST)
केजीएमयू में रिसर्च सेल के नाम पर खेल, आविष्कार के नाम पर डकार गए करोड़ों! Lucknow News
केजीएमयू में रिसर्च सेल के नाम पर खेल, आविष्कार के नाम पर डकार गए करोड़ों! Lucknow News

लखनऊ [संदीप पांडेय]। केजीएमयू में शिक्षकों का बड़ा खेल उजागर हुआ। उन्होंने संस्थान के धन, संसाधन से मरीजों पर शोध किए। उपकरणों का अविष्कार कर पेटेंट कराए, पुस्तकें लिखीं। वहीं कंपनियों को अधिकार बेंचकर रॉयल्टी खुद डकार गए। आरटीआइ में खुलासा होने के बाद मामले की शिकायत राज्यपाल से की गई है।

केजीएमयू में 56 विभागों में 4400 बेड हैं। इनमें 556 शिक्षकों के पद हैं। 114 वर्ष के संस्थान में कई डॉक्टर रिटायर हो चुके हैं। वहीं तमाम छोड़कर प्राइवेट व दूसरे संस्थानों में चले गए हैं। इन शिक्षकों ने संस्थान के संसाधन, धन से मरीजों पर शोधकर वैश्विक ख्याति हासिल की। इसमें 40 से अधिक उपकरणों को खुद पेटेंट कराकर कंपनियों को बेच दिया। ऐसे ही शोध कर चिकित्सा पर दर्जनों पुस्तकें लिखकर पब्लिकेशन के साथ व्यापार किया जा रहा है। वहीं संस्थान में रॉयल्टी की फूटी कौड़ी जमा नहीं की।

बाईपास कर कराए पेटेंट : रिसर्च सेल में आरटीआइ से शिक्षकों के पेटेंट व पब्लिकेशन पर जवाब मांगा गया। डीन रिसर्च सेल प्रो. आरके गर्ग ने बुधवार जवाब भेजा। इसमें सेल में एक भी डॉक्टर के पेटेंट का पंजीकरण का ब्योरा नहीं है, साथ ही किसी द्वारा रॉयल्टी जमा करने से भी इन्कार किया गया। ऐसे में अधिकतर डॉक्टरों ने खुद की पेटेंट कराकर अधिकार बेंच दिए। संस्थान को सूचना नहीं दी। हाल के 31 उपकरणों के पेटेंट के आवेदन सेल में लंबित हैं।

राज्यपाल से यह शिकायत: सुलतानपुर के ग्राम बरामदपुर निवासी अनिल कुमार ने आठ दिसंबर को राज्यपाल से शिकायत की। इसमें उपकरणों का पेटेंट, कॉपी राइट को केजीएमयू की बौद्धिक संपदा करार दिया। वहीं डॉक्टरों द्वारा संस्थान के बजाए खुद पैसा डकराने का आरोप लगाया। इसे संस्थान के एक्ट 10.07 (3) (23) का उल्लंघन बताया। ऐसे में राज्यपाल से ऐसे पूर्व व वर्तमान शिक्षकों से रॉयल्टी अदायगी व सख्त कार्रवाई की मांग की।

केजीएमयू में न्यूरो सर्जन रहे चिकित्सक ने शंट का ईजाद किया। 1978 में पेटेंट कराया। वर्तमान में उसका 50 देशों में निर्यात हो रहा है। केजीएमयू के पास पेटेंट-रॉयल्टी का कोई हिसाब नहीं।

एनेस्थीसिया मेंरहे डॉक्टर ने संस्थान में ही वीडियो लैरिंगोस्कोप का आविष्कार किया। निजी कंपनी लैरिंगोस्कोप को बेच रही है। वो नौकरी छोड़ चुके हैं। पेटेंट-रॉयल्टी का कोई हिसाब नहीं।

पुस्तक रख किया किनारा

केजीएमयू के कई चिकित्सकों ने मरीज पर शोध कर पुस्तकें लिखीं। वहीं, सर्जरी, मेडिसिन, डायग्नोसिस के क्षेत्र में लिखी गईं किताबों के कॉपीराइट खुद के नाम करा लिए। उधर, पब्लिकेशन से मिली रॉयल्टी का एक भी पैसा संस्थान में जमा नहीं किया। केजीएमयू के चिकित्सकों ने 50 से अधिक पुस्तकें लिखीं। सर्जरी, मेडिसिन, जटिल बीमारियों पर कई पुस्तकों ने चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है। यह पुस्तकें मेडिकल स्टूडेंट से लेकर प्रैक्टिसनर्स के बीच पसंदीदा बनी हुई हैं। वहीं, चिकित्सक पब्लिकेशन से करार कर रॉयल्टी से जेबें भर रहे हैं। मगर, संस्थान के खाते में एक पैसा जमा नहीं किया। सिर्फ लाइब्रेरी में दो-चार पुस्तकें रख किनारा कर लिया।

क्या कहते हैं जिम्मेदार 

केजीएमयू के रिसर्च सेल, के डीन  डॉ. आरके गर्ग ने बताया कि संस्थान के रिसोर्स से होने वाले आविष्कार में केजीएमयू को रॉयल्टी मिलनी चाहिए। मगर, संस्थान में इंस्टीट्यूशनल प्रॉपर्टी राइट रूल्स एंड रेगुलेशन लागू नहीं था। बल्कि केंद्र सरकार द्वारा यह नियम बनाया गया है। इसे लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया जाएगा।

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