144 वर्ष पहले ब्रिटिश बैंक में बंधक था लखनऊ का एक बंगला, 52 वर्ष की जंग के बाद सेना को मिला वापस

सन 1876 में कोयलास चंद्र मुखर्जी ने द देलही एंड लंदन बैंक लि. के पास रखा था गिरवी। मुंशी प्राग नारायण भार्गव ने 1897 में कराई सेल डीड 52 वर्ष की लड़ाई के बाद जीता रक्षा मंत्रालय ।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Wed, 23 Dec 2020 07:07 AM (IST) Updated:Wed, 23 Dec 2020 02:01 PM (IST)
144 वर्ष पहले ब्रिटिश बैंक में बंधक था लखनऊ का एक बंगला, 52 वर्ष की जंग के बाद सेना को मिला वापस
सन 1897 के बाद 71 वर्ष तक इस बंगले को लेकर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

लखनऊ, [निशांत यादव]। छावनी में रक्षा मंत्रालय की 4.88 एकड़ जमीन बना बंगला सेना को करीब 144 वर्ष बाद वापस मिल गया। यह बंगला पहले जहां ब्रिटिश प्रबंधन वाले बैंक के पास गिरवी रखा गया। वहीं, बाद में मुंशी प्राग नारायण ने इसकी सेल डीड कराई। रक्षा मंत्रालय ने पिछले 52 वर्ष से बंगले की लड़ाई लड़ी और आखिर सेना को उसका मालिकाना हक मिल गया। 

मध्य कमान मुख्यालय के ठीक बगल में खंडहर बन चुके इस ओल्ड ग्रांड श्रेणी के बंगले को 12 सितंबर 1836 में बने जीजीओ एक्ट की धारा 179 के तहत कोयलास चंद्र मुखर्जी को 1876 में दिया गया था। हालांकि तब जीजीओ एक्ट की उपधारा 6 (1) में यह भी लिखा गया था कि सेना को जरूरत पडऩे पर वह एक माह की नोटिस जारी करने के भीतर बंगले की जमीन को वापस ले सकती है। रक्षा मंत्रालय की बी-3 श्रेणी की भूमि वाला यह बंगला नंबर चार नेहरू रोड मध्य कमान मुख्यालय के ठीक बगल में है।

कोयलास चंद्र मुखर्जी ने द देलही एंड लंदन बैंक लि. के पास 19 अगस्त 1876 और नौ जून 1877 को बंधक रखकर लोन लिया था। लोन न लौटाए जाने पर बैंक ने 1877 में ही रिकवरी का नोटिस जारी करते हुए कोर्ट में मानहानि का दावा पेश किया। कोर्ट ने बैंक के पक्ष में निर्णय देते हुए बंगले की नीलामी का नोटिस जारी किया। बैंक ने 10 जनवरी 1878 को यह बंगला खुद खरीद लिया। करीब 19 वर्ष बाद 15 मार्च 1897 को यह बंगला मुंशी प्राग नारायण भार्गव ने बैंक से खरीद लिया। 

ऐसे शुरू हुई बंगले की लड़ाई 

सन 1897 के बाद 71 वर्ष तक इस बंगले को लेकर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद जब एक मई 1963 को लखनऊ छावनी में मध्य कमान मुख्यालय की स्थापना हुई। इसी जगह पर इससे पहले पूर्वी कमान था। मध्य कमान की स्थापना के बाद सेना को इसके विस्तार के लिए जमीन की जरूरत पड़ी। तब दो नवंबर 1968 को पहली बार रक्षा मंत्रालय ने बंगले को अपने अधिकार में लेने का नोटिस जारी किया था। सन 1969 के शुरुआती माह में मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। सात मार्च 1970 को कोर्ट ने स्थगनादेश दिया। सन 1968 की नोटिस का संज्ञान लेकर रक्षा संपदा अधिकारी विकास कुमार ने 27 नवंबर 2020 को बंगले के हस्तांतरण का नोटिस जारी किया। सात दिसंबर को मध्य यूपी सब एरिया मुख्यालय के अधिकारियों के साथ डीईओ विकास कुमार, लीगल अनुभाग के शाहजहां ने पुलिस की मौजूदगी में बंगले का स्वामित्व सेना को सौंप दिया। 

1844 में बना था बैंक

पहले स्वतंत्रता संग्राम से 13 वर्ष पहले सन 1844 में द देलही एंड लंदन बैंक लि. की स्थापना हुई थी। तब इस बैंक की शाखाएं भारत में लखनऊ के अलावा कलकत्ता, दिल्ली, मसूरी और शिमला में थी। सन 1862 और 1867 में इसका पंजीकरण कंपनी एक्ट लंदन के तहत किया गया था।  

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