Ayodhya Ram Mandir Verdict 2019 : मंदिर के सपने के साथ बढ़ती रही भाजपा, पूरी हुई लाखों कार्यकर्ताओं के मन की मुराद

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा ने 1987 से मंदिर आंदोलन की धार तेज करनी शुरू की थी लेकिन तमाम उतार-चढ़ाव के बीच यह मसला अदालतों के इर्द-गिर्द घूमता रहा।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Sun, 10 Nov 2019 08:51 AM (IST) Updated:Sun, 10 Nov 2019 08:51 AM (IST)
Ayodhya Ram Mandir Verdict 2019 : मंदिर के सपने के साथ बढ़ती रही भाजपा, पूरी हुई लाखों कार्यकर्ताओं के मन की मुराद
Ayodhya Ram Mandir Verdict 2019 : मंदिर के सपने के साथ बढ़ती रही भाजपा, पूरी हुई लाखों कार्यकर्ताओं के मन की मुराद

लखनऊ [आनन्द राय]। अयोध्या फैसला आने के बाद भाजपा मुख्यालय में अद्भुत शांति थी, लेकिन सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं के चेहरे चमक उठे थे। राम मंदिर निर्माण की राह निष्कंटक होने की खुशी सबके चेहरे पर थी। मंदिर के सपने के साथ ही भाजपा बढ़ती रही और जब यह पार्टी शीर्ष मुकाम पर पहुंची तो सुप्रीम फैसले ने सपना भी पूरा कर दिया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा ने 1987 से मंदिर आंदोलन की धार तेज करनी शुरू की थी, लेकिन तमाम उतार-चढ़ाव के बीच यह मसला अदालतों के इर्द-गिर्द घूमता रहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दशकों से चले आ रहे एक बड़े विवाद का पटाक्षेप कर दिया है। पर, यह भी सही है कि मंदिर के लिए लंबी संघर्ष यात्रा से ही भाजपा को विस्तार मिला है। वीपी सिंह की सरकार में जब मंडल कमीशन लागू हुआ और 1989-90 में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते आरक्षण आंदोलन उबाल पर था तब मंडल कमीशन पर अयोध्या भारी पड़ गई। मंदिर आंदोलन ने ही भाजपा को उभरने का मौका दिया।

इस आंदोलन के चलते भाजपा को 1991 में 221 सीटों पर विजयश्री मिली और जून 1991 में कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। छह दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा ध्वंस हुआ तो कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी गई। यह वह दौर था जब मुलायम सिंह यादव राजनीति में नए सिरे से पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हेंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की और कल्याण सरकार की बर्खास्तगी के बाद कांशीराम की बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। तब प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनी थी लेकिन भाजपा को सभी दलों से ज्यादा 177 सीटें मिलीं थी। सपा-बसपा की दोस्ती बहुत दिनों तक नहीं चल सकी और जून 1995 में दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए।

यह अलग बात है कि अयोध्या को लेकर जैसे-जैसे भाजपा के तेवर कमजोर पड़ते गए वैसे-वैसे उत्तर प्रदेश में वह सिमटती भी गई। 2012 के विधानसभा चुनाव में तो यह पार्टी सिर्फ 47 सीटों पर ही सिमट गई। फिर 2013 में अमित शाह की उत्तर प्रदेश में सक्रियता बढ़ी तो पिछड़ों को जोड़कर भाजपा ने अपनी रफ्तार तेज कर दी। नरेंद्र मोदी के प्रति आमजन का आकर्षण बढ़ रहा था। 2014 में लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। 2019 भी भाजपा ने ही जीता। अपने हर घोषणा पत्र में भाजपा राम मंदिर को आस्था से जोड़कर अदालत के सम्मान की बात करती रही। शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं के मन की मुराद पूरी कर दी।

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