असलम के कंधों पर यशोदा की अर्थी

मुरादाबाद (रईस शेख)। यह वाकया उन लोगों के लिए नजीर है जो समाज को धर्म और जात-पात में बा

By Edited By: Publish:Sun, 26 Oct 2014 10:33 AM (IST) Updated:Sun, 26 Oct 2014 10:33 AM (IST)
असलम के कंधों पर यशोदा की अर्थी

मुरादाबाद (रईस शेख)। यह वाकया उन लोगों के लिए नजीर है जो समाज को धर्म और जात-पात में बांटकर नफरत की दीवार खड़ी करते हैं। कल भैया दूज पर जब भाइयों की दीर्घायु की कामना की जा रही थी, तब असलम मुंह बोली हिंदू बहन यशोदा को लेकर सांप्रदायिक सौहार्द की नई इबारत लिख रहे थे। लंबी बीमारी के बाद बहन यशोदा दुनिया से रुखसत हुई तो असलम ने न केवल अर्थी को कंधा दिया, बल्कि गढ़मुक्तेश्वर ले जाकर गंगा किनारे अंतिम संस्कार कराया।

इतिहास में अमिट स्याही में दर्ज होने वाले इस वाकये का गवाह बना मूंढापांडे ब्लाक का ग्राम मौलागढ़। करीब डेढ़ दशक पहले गांव लक्ष्मीपुर कट्टई की यशोदा देवी, पति बब्बू की मौत के बाद मौलागढ़ में मां श्यामवती व बेटे मनोज के साथ आकर बस गई थी। बेसहारा परिवार ने झोपड़ी में आशियाना बनाया तो गांव के ही असलम बेग से नहीं देखा गया। उसने मुंह बोली बहन का दर्जा दिया तो यशोदा की आंखों में आंसू आ गए। भाई का सहारा मिला तो जिंदगी की आस बंधी। असलम ने सिर छिपाने के लिए उसे मकान बनवा दिया। 15 वर्ष तक दोनों ने एक दूसरे के त्योहारों को साथ मनाया, ईद को यशोदा असलम के घर मनाती रही तो असलम रक्षाबंधन पर बहन की रक्षा का वचन लेता रहा।

यशोदा से कल भैया दूज पर तिलक कराने के लिए तैयारी कर रहे असलम को तड़के बहन के दुनिया से चल बसने की खबर मिली। रिश्तेदारों ने आसपास अंतिम संस्कार करने की बात कही तो भाई ने गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा किनारे अंतिम संस्कार करने को कहा। आखिरकार असलम की मुहब्बत यशोदा के रिश्तेदारों पर भारी पड़ गई। असलम ने यशोदा की अर्थी तैयार कराई। कंधा लगाकर वाहन में रखवाया और अंतिम संस्कार के लिए यशोदा के परिवारवालों संग रवाना हो गया। भले ही गढ़मुक्तेश्वर में मुखाग्नि मनोज ने दी, लेकिन सभी रस्म असलम की देखरेख में संपन्न हुई।

अटूट था भाई बहन का प्यार

ग्रामीणों का कहना है कि भाई-बहन के ऐसे अटूट रिश्ते की मिसाल कम ही मिलती है। दोनों भाई बहन रोजाना खैर खबर लेने के लिए एक दूसरे के घर आते जाते थे। कल मुस्लिम भाई के गैर मुस्लिम बहन का अंतिम संस्कार कराने की चर्चा आसपास के गांवों में रही।

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