डायबिटीज में कारगर इस दवा का अब अमेरिका में भी बजेगा डंका, एनबीआरआइ ने की विकसित
अमेरिका में हुए समागम में बीजीआर 34 को मिली सराहना। इस उपलब्धि से अमेरिका में बाजार मिलने की बंधी उम्मीद।
लखनऊ(रूमा सिन्हा)। केंद्रीय औषधीय और सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) और राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) द्वारा विकसित डायबिटीज की दवा का अब अमेरिका में भी डंका बजेगा। इसे नया बाजार मिलने की उम्मीद है। कैलिफोर्निया में 22 से 24 जून तक आयोजित इंडो-यूएस वेलनेस समागम में डायबिटीज की दवा बीजीआर 34 का प्रदर्शन किया गया। वहा से मिले रिस्पास से न केवल वैज्ञानिकों का दल बेहद उत्साहित है, बल्कि इसे लखनऊ शहर की भी एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
समागम का आयोजन अमेरिकी एजेंसियों की ओर से किया गया जिसमें आयुष मंत्रालय बतौर सहयोगी शामिल रहा। अमेरिका में बड़ी संख्या में डायबिटीज रोगी हैं जो इलाज के लिए आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और योग को वैकल्पिक उपचार के रूप में अपनाकर लाभान्वित हो रहे हैं। बीजीआर 34 को भी अमेरिका में बाजार मिलने की उम्मीद बंधी है। भारत में डायबटीज के इलाज में यह औषधि पहले ही विशेष स्थान बना चुकी है।
सीमैप के निदेशक प्रो.अनिल कुमार त्रिपाठी के अनुसार छह औषधीय पौधों के मिश्रण से बनाई गई यह औषधि शुगर टाइप-2 के मरीजों के लिए बेहद लाभकारी है। बीजीआर 34 डायबिटीज की दवा मेटफार्मिन के बराबर ही बल्कि उससे ज्यादाप्रभावी है। दवा विकसित करने वाले सीमैप व एनबीआरआइ को पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सीएसआइआर के प्रौद्योगिकी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
सुरक्षित है दवा:
चूंकि डायबिटीज की दवा लंबे समय तक ली जाती है इसलिए इसके टॉक्सिक इफेक्ट भी हो सकते हैं। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि आयुष की गाइड लाइन के अनुसार इसकी टॉक्सीसिटी की जरूरत नहीं थी लेकिन चूंकि हम वैज्ञानिक संस्थान हैं इसलिए हर तरह की जाच करवाई गई। बीएचयू अस्पताल में इसका ट्रायल हुए और बीजीआर 34 का टॉक्सिीसिटी टेस्ट भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) से कराया गया जिसमें वह पूरी तरह से सुरक्षित पाई गई। कई औषधियों का मिश्रण:
इस हर्बल औषधि के निर्माण में दारु हरिद्रा, विजय सार, गुड़मार, गुड़ुची, मेथी एवं मजीठ जैसी आयुर्वेद की महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया गया है जो भारत में बहुतायत में उपलब्ध है। किसानों द्वारा इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। यह जड़ी-बूटिया शुगर के मरीजों के ब्लड ग्लूकोज को कंट्रोल करने में सहायक है। साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। इसमें एंटीआक्सीडेंट गुण भी मौजूद है जो इसे विशेष बनाता है। एनबीआरआइ के डॉ. एकेएस रावत कहते हैं कि इस दवा ने संस्थानों का ही नहीं लखनऊ शहर का नाम भी रोशन किया है। ये हैं शोधकर्ता:
हर्बल औषधि को विकसित करने में एनबीआरआइ के डॉ.सीएस नौटियाल (पूर्व निदेशक), डॉ.एकेएस रावत, डॉ.सीएचबी राव और डॉ.संजीव कुमार ओझा एवं सीमैप से निदेशक डॉ. एके त्रिपाठी, डॉ. डीएन मणि, ए. पाल और डॉ.दिनेश कुमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।