मन की मुराद पूरी करती है माँ बड़ी भवानी

ललितपुर ब्यूरो : कस्बा पाली व आसपास के क्षेत्रों में दर्जनों आस्था के स्थल है। जो किसी न किसी विशेषत

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Mar 2018 12:07 AM (IST) Updated:Fri, 23 Mar 2018 12:07 AM (IST)
मन की मुराद पूरी करती है माँ बड़ी भवानी
मन की मुराद पूरी करती है माँ बड़ी भवानी

ललितपुर ब्यूरो : कस्बा पाली व आसपास के क्षेत्रों में दर्जनों आस्था के स्थल है। जो किसी न किसी विशेषता के चलते लोगों की आस्था का केन्द्र बने हुए है। नगर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित बड़ी भवानी माँ का मन्दिर भी उनमें से एक है। जहाँ वर्ष भर धार्मिक व साँस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मची रहती है। अपनी विशेषताओं के चलते यह मन्दिर वर्षो से श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। यहाँ नवरात्रि में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।

शक्ति की अधिष्ठात्रि माँ दुर्गा का नौ दिन चलने वाला महापर्व नवरात्रि जनपद में अगाध श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। श्रद्धालु माँ की भक्ति में लीन है। नगर से दो किलोमीटर दूर विंध्याँचल पर्वत की सुरम्य तलहटी में जंगल में स्थित बड़ी भवानी माँ का मन्दिर स्थित है। प्रकृति की गोद में स्थित यह मन्दिर वर्षो से लोगों की आस्था का केन्द्र रहा है। करीब 70 वर्ष पूर्व इस स्थान पर एक प्राचीन पत्थर पड़ा हुआ था, जिसमें दुर्गा प्रतिमा उकेरी गयी थी। पास में ही एक अन्य प्रतिमा भी खण्डित अवस्था में पड़ी थी। कस्बे के भगौने माते चौरसिया ने अन्य ग्रामीणों की मदद से विंध्याँचल पर्वत की तलहटी में एक छोटी-सी मड़िया बनवाकर उसमें उक्त प्रतिमायें स्थापित करा दी थी। लोगों ने आस्था से इस मडि़या पर आकर माँ दुर्गा की प्रतिमाओं को पूजना शुरू कर दिया था। माँ की महिमा दूर-दूर तक फैली तो यहाँ श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता गया। ग्रामीणों की धार्मिक मान्यतायें बढ़ती गयी, तो यह मड़िया धीरे-धीरे छोटे से मन्दिर में बदलती चली गयी। जंगली प्रक्षेत्र होने के चलते आसपास से सटे इलाकों के ग्रामीण भी माँ के दरबार में माथा टेकने लगे है। लोगों की मुरादें पूरी होने लगी, तो श्रद्धालु भी माँ के भक्त होते चले गये। इसके बाद मन्दिर के जीर्णाेद्धार का बीड़ा उठाया गया। जिसमें लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। 30 वर्ष पूर्व प्राचीन प्रतिमाओं को एक विशालकाय चट्टान के पास स्थापित कर दिया गया और मन्दिर के जीर्णाेद्धार के क्रम में एक दुर्गा प्रतिमा स्थापित कर दी गयी। इसके बाद अन्य भक्तों के सहयोग से धीरे-धीरे मन्दिर का जीर्णाेद्धार होता चला गया। 23 जनवरी 2007 को कस्बा पाली के लोगों के सहयोग से भव्य मन्दिर बनकर तैयार हो गया और इसमें माँ दुर्गा की प्रतिमा के बगल में एक अन्य दुर्गा प्रतिमा, माता लक्ष्मी की प्रतिमा व संतोषी माता की प्रतिमायें स्थापित करा दी गयी। 4 प्रतिमायें स्थापित होने से मन्दिर की भव्यता और अधिक बढ़ गयी। मन्दिर के पुजारी राम कमलदास महाराज बताते है कि उन्होंने लोगों को प्रेरित कर भक्त मण्डली बनायी। जो यहाँ धार्मिक आयोजन करने में जुट गयी। हर साल शारदीय नवरात्रि में मन्दिर प्राँगण में भव्य श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन होता है। इसके अलावा भी अन्य धार्मिक कार्यक्रम होते रहते है। मन्दिर परिसर में ही एक कुँआ बना हुआ है। जिसमे मौजूदा समय में पानी काफी कम है, ऐसे में हैण्डपम्प ही सहारा बने हुए है। मन्दिर की अन्य व्यवस्थायें लोगों के सहयोग से ही चलती है, इसके बावजूद भी मन्दिर के पुजारी कठिन परिश्रम से मन्दिर के पास की भूमि पर ईटा तैयार कराते है, इसी से ही मन्दिर की अन्य व्यवस्थाओं का खर्चा निकलता है। लोगों की मान्यता है कि माँ अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करती। यही वजह है कि भक्तों की हर मुराद यहाँ पूरी होने का दावा किया जाता है। मुराद पूरी होने पर आस्था से लोग यहाँ धार्मिक आयोजन कराते है। प्रात: व सायंकाल होने वाली महाआरती में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। शारदीय व चैत्र मास की नवरात्रि पर यहाँ श्रद्धालु उमड़ पड़ते है। नवरात्रि में तो प्रात: 4 बजे से ही मन्दिर पर श्रद्धालु जुटना शुरू हो जाते है। इस मौके पर दुर्गा प्रतिमाओं का भव्य व अभिनव श्रृंगार किया जाता है। नवरात्रि के अलावा शीतला अष्टमी पर भी यहाँ श्रद्धालु जुटते है। कुल मिलाकर बड़ी भवानी माता मन्दिर सैकड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। माँ की महिमा के अनेक किस्से भी है। जिन्हे श्रद्धालु भक्ति भाव से एक दूसरे को सुनाते है। खैर, माँ की महिमा वे ही जाने, लेकिन यह मन्दिर वर्षो से नगर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

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बॉक्स में-

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वर्षो पहले रहता था 'वनराज सिंह'

चूँकि यह मन्दिर विंध्याँचल पर्वत की तलहटी में जंगल में स्थित है। अत: यह मन्दिर जंगली जानवरों की शरणस्थली भी रहा है। लगभग दो दशक पहले तक मन्दिर के आसपास वनराज सिंह की दहाड़ सुनी जाती थी। कई ग्रामीणों ने मन्दिर के पास उस सिंह को देखा भी था। 90 के दशक में इसी मन्दिर से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर जंगल में एक शेरनी ने तीन बच्चों को जन्म दिया था। करीब एक माह तक वनकर्मियों ने उन बच्चों की निगरानी की थी। बाद में शेरनी उन बच्चों के साथ गायब हो गयी थी। आज भी मन्दिर के आसपास लाल मुँह के बन्दर, हिरन, मोर व अन्य छोटे-मोटे जानवर अक्सर देखे जाते है।

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मन्दिर पहुँचती है अषाढ़ी यात्रा

अषाढ़ के महीने में अच्छी बारिश की कामना के लिए नगर में एक विशेष परम्परा है। इसके तहत नगर पंचायत अध्यक्ष या फिर प्रमुख व्यक्ति को बन्धक बनाकर सैकड़ों ग्रामीण बड़ी भवानी माता मन्दिर पर जाते है। जहाँ प्रसाद चढ़ाकर धार्मिक अनुष्ठान कराया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अषाढ़ी यात्रा निकालकर मन्दिर पर अनुष्ठान करने से बारिश होती है। यही वजह है कि अषाढ़ मास में मन्दिर पर कथा व अन्य धार्मिक अनुष्ठान की धूम मची रहती है।

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अधूरा पड़ा सम्पर्क मार्ग

नगर से बड़ी भवानी माता मंदिर तक जाने वाले मार्ग का निर्माण कार्य कुछ वर्षो पूर्व शुरू कराया गया था। गिट्टी और मोरग डालने के बाद इस पर डामरीकरण होना था। बाद में मामला टाय-टाय फिस्स हो गया और यह मार्ग नहीं बन सका। इस सम्बन्ध में कई बार स्थानीय लोगों ने शासन प्रशासन का ध्यान भी आकर्षित कराया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। आज श्रद्धालु इसी ऊबड़ खाबड़ मार्ग से होकर गुजरते है, जिसमें काटे और कंकड़ बिखरे है, जिससे श्रद्धालुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

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दो पुलिया के टेण्डर में अटकी सड़क

लगभग एक वर्ष पूर्व नीलकण्ठेश्वर मंदिर व बड़ी भवानी माता मंदिर को जोड़ने के लिए नीलकण्ठेश्वर मंदिर मार्ग पर कठवरया नामक स्थान से माता मंदिर तक एक किलोमीटर लम्बी सड़क का निर्माण कार्य शुरू कराया गया था। जिला पंचायत द्वारा कराये जा रहे इस सड़क निर्माण में पूर्व में एक ही पुलिया का निर्माण शामिल था, बाद में दो अन्य पुलियों की आवश्यकता महसूस हुई। अब दो पुलियों के अलग से टेण्डर का मामला लटक जाने के कारण यह मार्ग फिलहाल अधूरा ही है, हालाकि एक पुलिया का निर्माण करा दिया गया था।

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