शिवरात्रि पर पारसनाथ के दरबार में उमड़ेंगे भक्त

मैगलगंज (लखीमपुर) : मैगलगंज से 6 किलोमीटर दूर दक्षिणी सीतापुर व हरदोई जिले की सीमा पर पतित पावन उत्त

By JagranEdited By: Publish:Thu, 23 Feb 2017 09:57 PM (IST) Updated:Thu, 23 Feb 2017 09:57 PM (IST)
शिवरात्रि पर पारसनाथ के दरबार में उमड़ेंगे भक्त
शिवरात्रि पर पारसनाथ के दरबार में उमड़ेंगे भक्त

मैगलगंज (लखीमपुर) : मैगलगंज से 6 किलोमीटर दूर दक्षिणी सीतापुर व हरदोई जिले की सीमा पर पतित पावन उत्तर वाहिनी आदि गंगा गोमती नदी के किनारे बाबा पारसनाथ का दरबार है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यहां पर ऋषि पाराशर ने कई वर्षो तक तपस्या की थी।

कहा जाता है कि शिवभक्त अश्वत्थामा यहां आकर जलाभिषेक करते हैं। बताया जाता है कि मुगल शासनकाल में मोहम्मद गौरी ने अपनी सेना के साथ इस इस मंदिर को नष्ट करने के लिए आक्रमण किया था। इसी दौरान मंदिर से हजारों की संख्या में सर्प और बिच्छू निकल पड़े थे, जिन्होंने मोहम्मद गोरी की सारी सेना को पीछे भागने पर विवश कर दिया था। जब मोहम्मद गौरी अकेला रह गया तो वह भी अपनी जान बचाकर भाग निकला। आज भी मोहम्मद गौरी द्वारा तोड़ी गई मूर्तियां मंदिर के दक्षिण दिशा से उतर की ओर स्थापित है। यहां बहने वाली आदि गंगा गोमती जो उत्तर दिशा की तरफ प्रवाहित है। अत्यंत पवित्र मानी जाती है तथा उत्तर वाहिनी गोमती के नाम से प्रसिद्ध है। मढि़या घाट में ऋषि पाराशर ऋषिकुल व ब्रह्मचारी आश्रम गौशाला व संस्कृत महाविद्यालय है। इस संस्था की 167 एकड़ कृषि योग्य भूमि तथा मैगलगंज स्थित सिद्धेश्वरी देवी आश्रम है।

श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बाबा टेढ़ेनाथ का शिव मंदिर

संवादसूत्र, अमीरनगर (लखीमपुर) : जिला मुख्यालय से करीब पचपन किमी की दूरी पर स्थित बाबा टेढ़ेनाथ का शिव मंदिर गोमती नदी के तट पर बना हुआ है। यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। बाबा टेढ़े नाथ मंदिर के पुजारी प्रेमचंद गिरी ने बताया कि बाबा टेढ़ेनाथ के शिव मंदिर में शिव¨लग की स्थापना धर्मराज युधिष्ठिर ने की थी और महाभारत काल की बताई गई है। उस समय पर घना जंगल हुआ करता है, जहां पर राजा विराट की गाय चरा करती थी इस विशालकाय क्षेत्र को पड़ेहार क्षेत्र भी कहते हैं।

600 वर्ष पूर्व की शिव¨लग बनी हुई है। पुजारी प्रेमचंद गिरी ने बताया कि वह अपनी सातवीं पीढ़ी के पुजारी हैं। शुरुआत से उनके वंशज ही पूजा अर्चना की देखभाल करते चले आ रहे हैं। पुजारी प्रेमचंद गिरी कहते हैं कि पौराणिक काल की बात है कि मंदिर परिसर में छह या फिर सात कांवड़िया आए। उस समय पर शिव मंदिर में कांवड़ लेकर आए जहां पर शिव¨लग लुढ़की हुई थी और कावड़ियों ने कहा शिव¨लग रात भर में सीधी हो जाएगी तो गोला शिवमंदिर जलाभिषेक नहीं करने जाएंगे और इसी बाबा मंदिर में जलाभिषेक करेंगे। इसमें चार कावड़ियों ने जलाभिषेक कर दिया और दो ने नहीं किया। इस कारण उतनी टेढ़ी रही और तब से बाबा टेढे नाथ मंदिर का नाम पड़ गया।

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