मनरेगा से मजदूरों का पलायन रोकने के लिए बीडीओ चला रहे फावड़ा

-सरकारी सिस्टम की कार्यशैली भी पलायन का कारण दीपेंद्र मिश्र धौरहरा (लखीमपुर) बाजार की महंगाई के साथ सेवा क्षेत्र की महंगाई ने भी आसमान छू लिया है। इसकी मार से भारत सरकार की योजना मनरेगा भी कराह उठी है। अब खंड विकास अधिकारी धौरहरा अरुण कुमार सिंह खुद फावड़ा चला कर लोगों को मनरेगा में काम करने के लिए प्रोत्साहित करने उतरे हैं। मनरेगा में काम करने वालों का अकाल पड़ रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 17 Oct 2019 09:28 PM (IST) Updated:Thu, 17 Oct 2019 09:28 PM (IST)
मनरेगा से मजदूरों का पलायन रोकने के लिए बीडीओ चला रहे फावड़ा
मनरेगा से मजदूरों का पलायन रोकने के लिए बीडीओ चला रहे फावड़ा

लखीमपुर : बाजार की महंगाई के साथ सेवा क्षेत्र की महंगाई ने भी आसमान छू लिया है। इसकी मार से भारत सरकार की योजना मनरेगा भी कराह उठी है। अब खंड विकास अधिकारी धौरहरा अरुण कुमार सिंह खुद फावड़ा चला कर लोगों को मनरेगा में काम करने के लिए प्रोत्साहित करने उतरे हैं। मनरेगा में काम करने वालों का अकाल पड़ रहा है। दरअसल जब व्यक्तिगत दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों को रोजाना सौ रुपये मिलते थे, तब मनरेगा में मिलने वाली डेढ़ सौ की दिहाड़ी इन्हीं मजदूरों को लुभाती थी। एक दिन था कि किसानों और व्यापारियों को व्यक्तिगत काम के लिए मजदूर मिलने के लाले थे। निजी क्षेत्र में मजदूरी की दिहाड़ी बढ़ने लगी। इसलिए सरकारी काम करने में मजदूर कन्नी काटने लगे। सरकार ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए और मनरेगा में दिहाड़ी आज 182 रुपये प्रतिदिन है, लेकिन हाल यहां भी वही हुआ जो तकरीबन हर क्षेत्र में सरकारी और निजी तंत्र के कंपटीशन में होता है। आज निजी क्षेत्र में मजदूरों की दिहाड़ी तीन सौ रुपए प्रतिदिन न्यूनतम है। कम दिहाड़ी के बावजूद जो लोग इस सरकारी योजना में काम करते भी हैं, उन्हें उनकी मजदूरी समय पर नहीं मिलती। पैसा बैंक खाते में जाएगा, लेकिन मजदूर को जरूरत नकद की है। मजदूर को दिहाड़ी रोज चाहिए, लेकिन प्रधान जी और सरकारी सिस्टम के चलते ऐसा होता नहीं। मनरेगा से दूर हो रहे लोगों को रिझाने के लिए धौरहरा बीडीओ अरुण कुमार सिंह ने पहल शुरू की है। वह गांवों में जाकर मजदूरों को बता रहे हैं कि मनरेगा उन्हें तब भी काम देती है जब कोई और नहीं देता। मनरेगा का जॉब कार्ड उनकी एक पहचान भी है। बीडीओ लगभग प्रत्येक कार्यस्थल पर जाकर कुछ देर खुद फावड़ा चलाकर मजदूरों के साथ काम भी करते हैं। वह कहते हैं कि मनरेगा के श्रमिकों को अपने घर में काम मिले ये सोंच लेकर वह मैदान में उतरे हैं उम्मीद है कि उनको इस कार्य में सफलता मिलेगी।

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