शहरी क्षेत्र से हर रोज निकलता है 57 मीट्रिक टन कचरा

डंपिग ग्राउंड में होता है कचरे का निस्तारण

By JagranEdited By: Publish:Mon, 10 Aug 2020 10:40 PM (IST) Updated:Mon, 10 Aug 2020 10:40 PM (IST)
शहरी क्षेत्र से हर रोज निकलता है 57 मीट्रिक टन कचरा
शहरी क्षेत्र से हर रोज निकलता है 57 मीट्रिक टन कचरा

लखीमपुर : शहरी क्षेत्र से हर रोज करीब 57 मीट्रिक टन कचरा निकाला जाता है। शहर से करीब छह किलोमीटर दूर आठ माह पहले बनाए गए डंपिग ग्राउंड में इसका निस्तारण किया जाता है। शहर से हर रोज निकलने वाले 57 मीट्रिक टन कचरे में लगभग आधा कचरा पॉलीथिन का होता है। ज्यादातर पॉलीथिन होने से शहर का वातावरण भी दूषित होता है। नगर पालिका क्षेत्र से घरों, निजी व सरकारी कार्यालयों के अलावा इसमें बाजार का भी कचरा शामिल होता है। जिसमें गीला और सूखा दोनों तरह का कचरा होता है। अधिकारी क्षेत्र की बात करें तो पूरे शहर को 30 भागों में बांटा गया है, जहां से लगभग 300 सफाई कर्मी हर रोज काम करके या कचरा निकालते हैं। ------------------------------ नगर पालिका के पास हैं 30 गाड़ियां

सफाई व्यवस्था को मजबूत करने के लिए नगर पालिका परिषद ने शहर के 30 वार्डों में एक-एक छोटा हाथी गाड़ी दे रखी है। इस प्रकार शहर में 30 गाड़ियां हैं। लगभग 300 सफाई कर्मी है। इसमें करीब 100 सफाईकर्मी ठेके पर के हैं। इन सभी के द्वारा शहर के नाला सफाई तथा गलियों की सफाई घरों के साथ बाजार का कचरा भी साफ किया जाता है, जिसमें ज्यादातर पॉलीथिन मिलती है। करीब आधा कचरा पॉलीथिन का होता है

नगर पालिका परिषद में एसएफआइ के पद पर काम कर रहे जितेंद्र सिंह बताते हैं कि 57 मीट्रिक टन में करीब आधा कचरा पॉलीथिन का ही होता है। इसमें ज्यादातर पॉलीथिन बाजार से मिलती है। ऐसे होटल जहां सड़कों के किनारे लोग प्लास्टिक के गिलास और थालियों में खाकर के फेंक देते हैं । इतना ही नहीं शहर के बाजार में लोग झिल्ली पॉलीथिन का प्रयोग करके भी फेंकते हैं। इस तरह पॉलीथिन और प्लास्टिक का कचरा भी काफी होता है वह बताते हैं कि पॉलीथिन या प्लास्टिक आसानी से नष्ट नहीं होती। जमीन में दब जाने के बाद भी अब 300 से 400 वर्ष तक नष्ट नहीं होती। इसको खा लेने से कई बार जानवर भी मर जाते हैं। जलने पर से जो जहरीली गैस निकलती है वह ओजोन परत के लिए खतरनाक होती है। आसपास के वातावरण को भी प्रभावित करती है। इससे सांस के मरीज बढ़ सकते हैं। ज्यादा बेहतर हो कि लोग इसका प्रयोग निजी तौर पर बंद करें। कई बार अभियान के बावजूद इसका प्रयोग नहीं थमा है। सबसे ज्यादा पॉलीथिन खाने पीने की दुकानों से, ठेलों पर से जमीन में फेंकी जाती है।

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