कैंसर ने धावक बनने का तोड़ दिया सपना

बचपन से ही बच्चों में किसी न किसी प्रकार की आकांक्षा को पूरी करने की लालसा होती है लेकिन कभी-कभी जागरूकता के अभाव में ऐसी आपदा आती है कि उनका सपना टूट जाता है। ऐसी ही घटना कड़ा ब्लॉक के हिसामपुर परसखी गांव के मजरा टड़हर के प्रतिभाशाली बालक लेखचंद्र के साथ हुई। जानकारी के अभाव में एक छोटी सी चोट ने कैंसर का रूप धारण किया। अंत में डॉक्टरों ने उसका बायां पैर काट दिया जिससे उसके धावक बनने का सपना चूर-चूर हो गया।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 29 Nov 2020 06:04 AM (IST) Updated:Sun, 29 Nov 2020 06:04 AM (IST)
कैंसर ने धावक बनने का तोड़ दिया सपना
कैंसर ने धावक बनने का तोड़ दिया सपना

टेढ़ीमोड़ : बचपन से ही बच्चों में किसी न किसी प्रकार की आकांक्षा को पूरी करने की लालसा होती है, लेकिन कभी-कभी जागरूकता के अभाव में ऐसी आपदा आती है कि उनका सपना टूट जाता है। ऐसी ही घटना कड़ा ब्लॉक के हिसामपुर परसखी गांव के मजरा टड़हर के प्रतिभाशाली बालक लेखचंद्र के साथ हुई। जानकारी के अभाव में एक छोटी सी चोट ने कैंसर का रूप धारण किया। अंत में डॉक्टरों ने उसका बायां पैर काट दिया, जिससे उसके धावक बनने का सपना चूर-चूर हो गया।

13 वर्षीय लेखचंद्र को लॉकडाउन के समय मई माह में लकड़ी निकालते समय पैर में चोट लग गई। इसे स्वजनों ने गंभीरता से न लेकर घरेलू व स्थानीय इलाज कराया। धीरे-धीरे बच्चे का पैर सूजता गया। घर वाले व डॉक्टर उसे फोड़ा समझ कर इलाज करते रहे, लेकिन जब सितंबर माह में दर्द सहनशीलता से अधिक हो गया, तब स्वजन उसे प्रयागराज के काल्विन अस्पताल ले गए। जहां पर डॉक्टरों ने सर्वप्रथम जांच कराकर कैंसर की पुष्टि होने पर कमला नेहरू अस्पताल जाने को कहा। अक्टूबर माह में भर्ती होने के बाद दवा से न ठीक होने पर डॉक्टरों ने 11 नवंबर को बालक का बायां पैर काटकर अलग कर दिया। कटा पैर देखकर बच्चे के धावक बनने के सारे सपने अधूरे रह गए। स्वजनों का कहना है लेखचंद्र पढ़ने में अच्छा था और स्कूलों में होने वाली प्रतियोगिताओं में हमेशा जीतकर आता था। वर्ष 2018 में संकुल स्तर की दौड़ में प्रथम स्थान हासिल किया था। मां सरिता देवी ने बताया कि बच्चों में लेखचंद्र ही सबसे बड़ा है, उसके बाद बेटी अंजली और छोटा बेटा सर्वजीत है । गरीब को नहीं मिली मदद, छूट गया रोजगार

लेखचंद्र का पिता कमलेश मुंबई में रहकर सिलाई का काम करते थे। उसी से परिवार का भरण पोषण होता था। लॉकडाउन में घर आए। जुलाई माह में मुंबई फिर गए, लेकिन बेटे का पैर ठीक न होने पर घर वापस आ गया और इलाज कराते रहे। रोग की सही जानकारी न होने की वजह से डॉक्टरों ने भी लूट खसोट किया, जिससे धीरे-धीरे कर लाखों रुपये खर्च हो गए और घर की स्थिति खराब हो गई। ऐसे में कुछ रिश्तेदारों को छोड़ किसी से मदद भी नहीं मिली। घर में पैसा भी खत्म हो गया तथा रोजगार भी बंद हो गया। क्षेत्रीय जन प्रतिनिधि से इलाज के लिए मदद का प्रयास किया, लेकिन मुलाकात के अभाव में अपनी बात भी नही रख पाया। शिक्षक भी हुए आहत

लेखचंद्र के साथ हुए इस अप्रत्याशित घटना को सुनकर उसके स्कूल के शिक्षक भी हतप्रभ हैं। उनका कहना है कि लेखचंद्र एक प्रतिभाशाली छात्र है। पढ़ाई के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेता था। इसमें कई बार स्कूल द्वारा उसे पुरस्कृत किया जा चुका है ।

chat bot
आपका साथी